नियति

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मैं उठता हूँ,
उठकर खाता हूँ,
फिर जाता हूँ काम पर,
बेमन से उधर अपनी ज़िंदगी को करता हूँ बर्बाद,
कुछ सिक्को के खातिर,
फिर आता हूँ
फिर खाता हूं और सो जाता हूँ,
बस यही है मेरी दिनचर्या
और यही हूँ मैं
एक चक्र में फँसा हुआ,
खुद को लगातार खत्म होते देखता,
एक इनसान,
कुछ सपने हैं मेरे मगर उन्हें पूरे करने के चक्कर में,
उन्हें पूरा करना ही भूल जाता हूँ
शायद यही है मेरी नियति 
और शायद यही है मेरा जीवन

© विकास नैनवाल ‘अंजान’

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहत हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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0 Comments on “नियति”

  1. कुछ सपने हैं मेरे मगर उन्हें पूरे करने के चक्कर में,
    उन्हें पूरा करना ही भूल जाता हूँ
    शायद यही है मेरी नियति ….,यथार्थ यही है सब के लिए …, सुन्दर सृजन ।

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