राह चलते चलते आपको अचानक से कभी कभार ऐसा विज्ञापन दिख जाता है जो बरबस ही आपकी नज़र अपनी तरफ आकर्षित कर देता है। ऐसा कुछ मेरे साथ कुछ दिन पहले हुआ। मैं बाइक के पीछे बैठा अपने गन्तव्य की तरफ बढ़ रहा था कि एक ऑटोरिक्शा मेरे बगल से गुजरने लगा। सामान्य सा दिखने वाला यह ऑटोरिक्शा उधर मौजूद कई ऑटोरिक्शों की तरह था। अगर आप महानगर में रहते हैं तो इतना तो जानते होंगे कि ऑटोरिक्शा के पीछे का हिस्सा अक्सर विज्ञापनों के लिए इस्तेमाल होता रहता है। जब चुनाव सिर पर थे तो ऑटो रिक्शे के पीछे वाले हिस्से नेताओं के चेहरों से पटे हुए थे। मैं भी इन्ही के चेहरे देखने के आदि था इसीलिए शायद उस विज्ञापन ने मेरी नज़र अपनी तरफ खींची। यह विज्ञापन कुछ अलग सा था।
विज्ञापन ने एक दयनीय व्यक्ति नजर आ रहा था जिसे देखकर लग रहा था कि वह जैसे आपके सामने गिड़गिड़ा रहा हो। तस्वीर के कारण मेरा ध्यान केन्द्रित हुआ और मैं तस्वीर के साथ अंग्रेजी में जो तहरीर दी गयी थी वो पढ़ने से खुद को न रोक पाया। जब इस विज्ञापन का इतना असर मेरे ऊपर हुआ तो मैंने सोच ही लिया था कि इसके विषय में लिखूँगा जरूर।
दयनीय व्यक्ति के बगल में अंग्रेजी में जो लिखा था उसका भावानुवाद था:
मैं एक तम्बाखू का उत्पादन करने वाला किसान हूँ। कृपया मुझे भूखा न मारें। बाज़ार में मौजूद ग़ैरक़ानूनी तरीके से लाई गयी सिगरेट के कारण भारतीय तम्बाखू उगाने वाले किसान की आय में तीस प्रतिशत की कमी आ गयी है।हम अपील करते हैं कि उन सभी गैर सरकारी संगठन की जाँच हों जो भी तम्बाखू उत्पादों के करदर में वृद्धि की माँग कर रहे हैं। क्योंकि इससे तस्करों की चाँदी हो जाएगी और किसान मारा जायेगा।
गूगल करने पर वो तस्वीर भी मिल गयी।
स्रोत: ट्विटर (Vibhor Nijhawan) |
यह पढ़कर मुझे पहले हँसी आई और फिर हैरानी हुई। इन दोनों के पीछे ही अपने कारण थे।
लेकिन उससे पहले इस मामले की जब मैंने थोड़ी जांच गूगल बाबा पर की तो इकनोमिक टाइम्स का निम्न लेख आँखों के सामने से गुजरा:
Tobacco farmers lobby seeks Centre’s intervention to stop cigarette smuggling
इस लेख को चाहें तो आप इनकी साईट पर जाकर भी पढ़ सकते हैं। वैसे इस लेख का सार यह है कि तम्बाखू की खेती करने वाले किसानों की हालत आजकल काफी खराब है। इसका कारण यह है विदेशी कम्पनियाँ बाहर से अपनी सिगरेट की तस्करी करवाती हैं जिसके कारण भारतीय तम्बाखू इस्तेमाल नहीं होता है। सिगरेट इंडस्ट्री के ऊपर वैसे ही इतना ज्यादा कर लगता है और इसके रेगुलेशन पर भी काफी सख्ताई है जिस कारण यह तस्करी तम्बाखू किसानों की हालत पस्त कर देती है। सरकार को चाहिए कि वह इस तस्करी पर लगाम लगायें ताकि किसानों की हालात सुधर सके।
इस मुद्दे को FAIFA नाम की संस्था उठा रही है। यह संस्था किसानों के साथ मिलकर काम करती है और उनसे जुड़े मुद्दे उठाती है। तम्बाखू के आलावा काला चना, मिर्ची, कपास, दालें, गेहूँ, पाल्म आयल जैसे फसलों के साथ जुड़े मुद्दे भी यह संस्था उठाती है। इस संस्था के विषय में पूरी जानकारी आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं।
FAIFA
मामला, विचारणीय है। और उठाने का तरीका भी बेहतरीन चुना है। आज के बाजार में सबसे आसानी से दुःख ही बिकता है। आप रियलिटी शोज को ही देख लें। उन्हें बनाने वालों को पता है कि किसी के दुःख को दिखायेंगे तो दर्शक आसानी से इनके साथ जुड़ाव महसूस करेगा और इनकी बात को सुनेगा। यही कारण है उनमें ऐसे लोग ज्यादा चुने जाते हैं जिनके पीछे कुछ दुखभरी दास्तान हो। फिर उनकी कहानी को, उनके परिवार को और उनके परिवेश को जमकर भुनाया जाता है। सहानुभूति बटोरी जाती है और टीआरपी भी जिसका सीधा फायदा चैनल और कार्यक्रम के प्रोडूसरों को होता है।
यही कारण था कि इस विज्ञापन में ऊपर दी हुई तस्वीर लगी थी जिसमें उस किसान का चेहरे ने मेरे मर्म को छुआ और शायद इस पोस्ट को,लिखने के लिए मुझे बाध्य किया। अभी सोचता हूँ कि अगर वह तस्वीर न लगी होती तो क्या मैं इस पर तवज्जो देता। शायद नहीं।
अब अगर फोटो की बात करें तो पहले तो मुझे थोड़ी सी हँसी आई।आज शायद ही कोई व्यक्ति होगा जो कि तम्बाखू के दुप्रभाव से वाकिफ नहीं होगा। इस कारण जब ऐसा विज्ञापन आप देखते हैं तो सोचते हैं कि ज्यादा सही यह नहीं होगा कि इन किसानों को बोला जाये कि वह कुछ और खेती करें। ऊपर जिस ट्वीट से मैंने यह तस्वीर ली है वह ट्वीट करने वाले भाई साहब भी इसी लाइन में बात करते दिखते हैं। इसके अलावा सबसे पहले मेरे दिमाग में जो ख्याल आया था वो यह था कि इन किसानों की मदद करने के लिए मैं रोज एक आध सिगरेट ले लूँगा और यह सुनिश्चित करूँगा कि यह सिगरेट भारतीय हो, तस्करी वाला नहीं। यह विचार हास्यासपद था क्योंकि मैं खुद सिगरेट नहीं पीता हूँ। फिर ख्याल आया कि क्या हो इसके बाद शराब बेचने वाले भी ऐसी दयनीय तस्वीर लगाकर अपने उत्पाद बेचने लगे कि हमारे उत्पाद खरीदो क्योंकि अगर नहीं खरीदोगे तो बेचारा किसान मारा जायेगा। इन सब बातों के एक साथ दिमाग में आने पर यकायक ही मैं हॅंस पड़ा। मुझे पता है कि अगर मेरे साथ मेरा कोई दोस्त उधर होता तो हम लोग इस बात को खींच कर काफी देर तक हँसते रहते। माना यह संवेदनशील मुद्दा था लेकिन जिस तरह से प्रस्तुत किया था और जिस चीज के लिए प्रस्तुत किया था वह हास्य पैदा कर रही थी। वैसे भी मेरा सेंस ऑफ़ ह्यूमर हमेशा से काफी डार्क रहा है।
खैर, इधर सामान तो नहीं बेचा जा रहा था लेकिन जांच की माँग की जा रही है और इसलिए एक सहानुभूति तो हासिल करने की कोशिश भी हो रही है।
लेकिन फिर यह विज्ञापन विचारणीय भी है। माना कि तम्बाखू सेहत के लिए हानिकारक है लेकिन यह किसान जो भी कर रहे हैं वो गैरकानूनी तो नहीं है। वह लोग कानून के दायरे में ही कर रहे हैं। और इस कारण उनकी बात भी सही है। उन्हें अपनी बात रखने का अधिकार है। अगर कुछ गैरकानूनी तरीके से हो रहा है तो उसकी जाँच भी होनी चाहिए। और इस कारण सरकार को इनकी बात सुननी चाहिए।
रही मेरी बात तो मैं तम्बाखू का उपयोग फिलहाल तो नहीं करता हूँ और आगे भी करने का इरादा नहीं है। मैं आपसे भी कहूँगा कि आप भी इसका उपयोग न करें और उम्मीद करूँगा कि FAIFA तम्बाखू का उत्पादन करने वाले किसानों को तम्बाखू छोड़ कुछ और बेहतर चीज उगाने के लिए प्रेरित करेंगे।
हाँ, आखिर में इस विज्ञापन बनाने वाले व्यक्ति की प्रशंसा करना चाहूँगा क्योंकि यह न होता तो न मुझे इस विषय की जानकारी होती , न FAIFA की और न उनके द्वारा किये जाए दूसरे कार्यों की, जो कि काफी सराहनीय है।
क्या आपने भी ऐसे अजब गजब विज्ञापन देखें हैं जो एकदम से आपको आकर्षित कर दें? और आप उधर से गुजरने के बाद भी उनके विषय में सोचें? बताइयेगा जरूर।
इससे पहले बेतुके विज्ञापनों पर मैंने एक लेख कैसे कैसे विज्ञापन लिखा था। उसे आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
कैसे कैसे विज्ञापन?
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
आपका यह लेख पढ़ते पढ़ते कितने ही ऐसे वाकये जिसमें दुखी बता कर संवेदना बटोरी जाती है ..आँखों के आगे से गुजर गए । टी.वी.रियल्टी शो तो भरे रहते हैं ऐसी घटनाओं से । बेहतरीन लेख ।
जी आभार।
वाह
आभार, दिनेश जी।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 23 नवम्बर 2019 को साझा की गई है……… "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा….धन्यवाद!
जी मेरी रचना को 'सांध्य दैनिक मुखरित मौन में' शामिल करने के लिए हार्दिक आभार।