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©विकास नैनवाल ‘अंजान’
नोट: वैम्पायर ऐसे मिथकीय जीव हैं जो मुझे हमेशा से ही आकर्षित करते आये हैं। ज्यादातर कहानियों में उन्होंने अपने किसी स्वार्थ के चलते कुछ किया जिससे वह इस रूप में परिवर्तित हुए। लेकिन अगर सोचा जाए इससे उन्हें अक्षयता और वैभव तो मिला लेकिन उसके साथ ही तिरस्कार, एकाकीपन और छुपकर रहने का अभिशाप भी मिला। ऐसे में क्या यह अक्षयता उस चीज के बराबर था जिसे खोकर उन्होंने इस अमरता को पाया है? शायद नहीं।
इसी चीज को दूसरे तरीके से देखा जा सकता है। हमारे यहाँ भी कुछ वैम्पायर हैं। यह सभी शोषक वर्ग हैं जो कि अपने स्वार्थ और लालच के चलते अपने लिए ऐश्वर्य और धन सम्पत्ति करने में इतने मशगूल हो जाते हैं कि वह यह सब करते हुए कितने लोगों का खून चूस रहे हैं इसका उन्हें ख्याल तक नहीं रहता है। लेकिन फिर इन वैम्पायर का अंत भी ज्यादातर ऐसा ही होता है। इतिहास इसका गवाह रहा है। तो अगर आपको वैम्पायर पर यकीन न हो तो आप वैम्पायर की जगह उन शोषकों को और जिंदा इनसान की जगह शोषितों को रख सकते हैं। इस रचना पर दोनों ही चीजें लागू होंगी।
मेरी दूसरी कवितायेँ आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
कविता
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना बुधवार ६ नवंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर…
आप भी सादर आमंत्रित हैं…धन्यवाद।
जी पोस्ट पर मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार।
सच वैम्पायर की कोई कमी नहीं आज हमारे इर्द-गिर्द
बहुत अच्छी कविता और नोट में उसके बारे में जानकारी अच्छी लगी
लाज़वाब….सत्य आज के युग में व वैम्पायर भी ज़िन्दा इंसान ही है
बहुत ही सुंदर और सार्थक रचना
आभार,सुजाता मैम….
आभार, अश्विनी जी…
आभार, कविता मैम…
सटीक विषय पर सार्थक सृजन
जी, आभार अनीता जी।
शोषक और शोषित की कल्पना वैम्पायर और उसके शिकार व्यक्तियों से ..तुलना की दृष्टि से लाजवाब करती बहुत उम्दा रचना विकास जी ।
जी, आभार मैम।
Isko Padh kar toh rongte khade hogye, aap isko Pocket FM par audio mein record bh krskte hain. Aur logo ko suna skte hain.
आभार,कोशिश करूंगा।
सबसे बेहतर यह होगा कि हर एक व्यक्ति अपने में वेम्पायरत्व को न घुसने देने के लिए सजग रहे. हर मिनट.
जी, सही कहा सर।
Bohot badhiya Rachna hai.
https://www.pocketfm.com/
आभार…