वैम्पायर की प्यास

वैम्पायर की प्यास
Image by Pete Linforth from Pixabay

कभी धुंधलके रस्ते से
कभी अँधेरे कोनो से
कभी किसी झुरमुटे से
वह देखता रहता है
और करता है इंतजार
किसी ज़िंदा इनसान का
घात लगाकर

पहुँचा है वो इधर
अपनी आत्मा बेचकर
अपने को मारकर 
ताकत,उम्र,जवानी,दौलत
न जाने कितनी चाहतों
कितनी इच्छाओं
के चलते
चुना था उसने यह रास्ता
पर अब जब
पाई है मंजिल
तो हुआ है उसे अहसास
अपने एकाकीपन का
अपने होकर भी न होने का
ज़िन्दगी को खोने का
और इसलिए
वह मौका देखकर
चूस लेता है खून
उन ज़िंदा इनसानों का
इस उम्मीद से
कि उनके नसों में
दौड़ता गर्म रक्त
भर देगा
उसके मरे ठंडे पाषाण हृदय में
ज़िन्दगी की गर्माहट
करा देगा 
उसे फिर से एहसास 
कि कैसा होता था 
जिंदा होना 
पर 
है नहीं ये मुमकिन
जानता है वो
पर मानना नहीं चाहता
इसलिए
पीता जाता है
रक्त ज़िंदा इनसानों का
सदियों से
अनवरत 
और 
होता है हैरान
कि क्यों मिटती नहीं
उसकी प्यास!!
क्यों मिलता नहीं उसे चैन
क्यों पूरी नहीं होती उसकी आस

©विकास नैनवाल ‘अंजान’

नोट: वैम्पायर ऐसे मिथकीय जीव हैं जो मुझे हमेशा से ही आकर्षित करते आये हैं। ज्यादातर कहानियों में उन्होंने अपने किसी स्वार्थ के चलते कुछ किया जिससे वह इस रूप में परिवर्तित हुए। लेकिन अगर सोचा जाए इससे उन्हें अक्षयता और वैभव तो मिला लेकिन उसके साथ ही तिरस्कार, एकाकीपन और छुपकर रहने का अभिशाप भी मिला। ऐसे में क्या यह अक्षयता उस चीज के बराबर था जिसे खोकर उन्होंने इस अमरता को पाया है? शायद नहीं।  


इसी चीज को दूसरे तरीके से देखा जा सकता है। हमारे यहाँ भी कुछ वैम्पायर हैं। यह सभी शोषक वर्ग हैं जो कि अपने स्वार्थ और लालच के चलते अपने लिए ऐश्वर्य और धन सम्पत्ति करने में इतने मशगूल हो जाते हैं कि वह यह सब करते हुए कितने लोगों का खून चूस रहे हैं इसका उन्हें ख्याल तक नहीं रहता है। लेकिन फिर इन वैम्पायर का अंत भी ज्यादातर ऐसा ही होता है। इतिहास इसका गवाह रहा है। तो अगर आपको वैम्पायर पर यकीन न हो तो आप वैम्पायर की जगह उन शोषकों को और जिंदा इनसान की जगह शोषितों को रख सकते हैं। इस रचना पर दोनों ही चीजें लागू होंगी।


मेरी दूसरी कवितायेँ आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
कविता

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहत हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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0 Comments on “वैम्पायर की प्यास”

  1. सच वैम्पायर की कोई कमी नहीं आज हमारे इर्द-गिर्द
    बहुत अच्छी कविता और नोट में उसके बारे में जानकारी अच्छी लगी

  2. शोषक और शोषित की कल्पना वैम्पायर और उसके शिकार व्यक्तियों से ..तुलना की दृष्टि से लाजवाब करती बहुत उम्दा रचना विकास जी ।

  3. सबसे बेहतर यह होगा कि हर एक व्यक्ति अपने में वेम्पायरत्व को न घुसने देने के लिए सजग रहे. हर मिनट.

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