कौसानी ट्रिप 3 – रानीखेत से कौसानी

कौसानी ट्रिप
यह यात्रा 5 दिसम्बर 2019 की शाम से 8 दिसम्बर 2019 तक की गयी 


छः दिसम्बर 2019


इस यात्रा वृत्तांत को शुरुआत से पढने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक करें:
कौसानी यात्रा 1


पिछली कड़ी में आपने पढ़ा। हम रानीखेत पहुँच चुके थे लेकिन कौसानी जाने की आखिरी बस हमसे छूट गयी थी। हम परेशान खड़े यह सोच रहे थे कि आगे क्या करेंगे? अब आगे:


मैं कैसे पूछूँ?
हम लोग रानीखेत में खड़े एक दूसरे का मुँह ताक रहे थे। हमारे अगल बगल से गाड़ियाँ इधर से उधर जा रही थी। दोनों के दिमाग में यह चल रहा था कि आगे क्या होगा?

क्या गाड़ी बुक करके आगे जायेंगे ? लेकिन यह तो महंगा पड़ेगा? क्या आज रानीखेत में रुका जायेगा? यह भी हो सकता था। हम लोग घूमने तो आये थे। इधर रुक भी जाते तो अगले दिन कौसानी के लिए चल सकते थे?

ऐसे प्रश्न मेरे दिमाग में घूम रहे थे। राकेश भाई के दिमाग में भी यही प्रश्न शायद चल रहे थे।

“क्या किया जाए?”, राकेश भाई ने पूछा।
“किसी टैक्सी वाले से पूछें?”, मैंने झिझकते हुए बोला।
“महंगा होगा”, राकेश भाई ने कहा।
“होगा तो सही लेकिन पूछने में जाता क्या है?” मैं बोला।
“सही है पूछो फिर?” राकेश भाई मुस्कराते हुए बोले। वह जानते थे कि मेरे लिए सबसे ज्यादा मुश्किल काम अनजान लोगों से बात करना है।
“मैं!!” मैं हैरानी का प्रदर्शन करते हुए बोला  – “मैं कैसे पूछूँ ?”
“पूछो। मैं इन्क्वायरी पर पता करने गया था।” राकेश भाई ने नहले पर दहला मारा।
मैंने थूक घूँटा और खुद को किसी अनजान से बात करने के लिए तैयार ही किया था कि एक सूमो वाला हमारे सामने रुका और बोला – “भाई जी किधर जाना है आपको?”


शायद उसने हमारे कंधे पर टाँगे बैग और चेहरे पर टाँगी परेशानी के भाव समझ लिए थे। उसकी आवाज़ ने मुझे थोड़ी राहत पहुँचाई। अब मैं इससे बात कर सकता था और अगली टैक्सी  वाले से पूछने की बारी राकेश भाई की होती। मैंने खुद की किस्मत की दाद दी और ड्राईवर को सम्बोधित किया – “कौसानी जाना है भाई जी।”

“ओह!” ड्राईवर बोला – “मैं उधर तो नहीं जा रहा हूँ लेकिन बिनता तक आपको छोड़ सकता हूँ। वहाँ से सोमेश्वर जाने का बन्दोबस्त कर दूँगा। सोमेश्वर से आगे कौसानी के लिए मिल जाएगी गाड़ी।” कहकर वह रुका और हमे देखने लगा।

मैंने राकेश भाई को देखा। उन्होंने कंधे उचकाये। ये एक बेहतर विकल्प था। कम से कम रानीखेत से आगे हम बढ़ रहे थे। आगे हमारी किस्मत थी। जब यहाँ से आगे जाने का जुगाड़ हो गया तो सोमेश्वर से आगे बढ़ने का मौक़ा भी मिल ही जाता। हमने एक दूसरे को देखा और बीच वाली सीट पर अपना सामान डाल कर उस पर बैठ गये।

ड्राईवर साहब ने गाड़ी आगे बढ़ा दी और हम उनसे बात करने लगे। थोड़ा आगे बढ़े ही ही थे कि एक जगह पर गाड़ी रोकी गयी। आस पास देखकर लग रहा था कि शायद आस पास कोई मेला था। उधर एक दूल्हे राजा भी दिखे जो अपनी दुल्हन के साथ बैठे हुए थे। वहीं एक स्त्री अपनी बच्ची के साथ टैक्सी में चढ़ी। थोड़ी देर बाद वह फोन पर शायद अपने पति से बात करने लग गयी थी। उस बच्ची ने अपने पिताजी से बात की और मुझे बचपन की याद आ गयी। पापा चूँकि सी आर पी ऍफ़ में थे तो अक्सर उनसे बात फोन पर होती थी। बच्ची के पिता भी दूर ही रहते थे। वह उससे वही बातें कर रहे थे जो कि मेरे पिताजी हमसे उस वक्त करते थे। घर की,स्कूल की और फिर इधर उधर की बातें। थोड़ी देर में उनकी बातें खत्म हो गयी थी।

आगे का सफर ऐसे ही चलता रहा। बीच में और सवारियाँ भी टैक्सी में बैठ गयीं। गाड़ी आगे बढती रही और सवारी बैठती रही। मैं आस पास के नजारे देख रहा था। सड़क के दोनों तरफ पेड़ थे और हरियाली के बीच से हम गुजर रहे थे।  कुछ सवारियां हमे सोमेश्वर तक की भी मिल गयी थी तो ड्राईवर साहब ने यह तय कर लिया था कि वह हमे सोमेश्वर तक छोड़ आयेंगे। गाड़ी ऐसे ही चलती जा रही थी।

हम लोग जैसे ही बिनता पहुँचे तो ड्राईवर साहब ने गाड़ी रोक दी। आगे से एक बस आ रही थी। उन्होंने हमे उस बस में जाने को बोला। उन्होंने बताया कि यह बागेश्वर ही जायेगी जो हमे कौसानी छोड़ देगी। यह सुनकर हम खुश हो गये। हमारी काफी मुश्किलें इसके कारण हल हो चुकी थी।

अब हमे सोमेश्वर से आगे के लिए कुछ सवारी लेने का झंझट नहीं था। हमने उन्हें धन्यवाद दिया और पैसे अदा करके बस में चढ़ गये। बस भरी हुई थी। हम भी एक जगह जाकर खड़े हो गये। हमारे साथ वो भाई भी बस में बैठ गये थे जिन्हें सोमेश्वर जाना था। बस चलने लगी थी और मैं काफी खुश था। आखिर कौसानी तक पहुँचना अब तय जो था।

ड्राईवर साहब सवारियों का इन्तजार में बाहर थे और हम लोग भीतर से फोटो खीच रहे थे

गरूड कब आएगा? कब आएगा ये गरूड?


बस चल रही थी और हम लोग खड़े हुए थे। रह रहकर एक भाई की हरकतें मेरा ध्यान उनपर खींच रही थी। जैसी ही कोई सीट खाली होती वो किसी न किसी को सीट देने का इसरार करने लगते। मुझे लग गया था कि वह चार्ज होकर ही बस में चढ़े हैं। उनकी बातें गजब होती। जैसे जैसे बस आगे बढ़ती जाती वो अगल बगल वाले को पूछते कि उन्होंने किधर जाना है। वो बेचारा जवाब दे देता तो वो कहते कि उन्हें गरूड़ जाना है और फिर पूछते कि गरूड़ कितने बजे तक पहुँच जायेगी।

पाँच मिनट बाद वही प्रश्न दोहराते। प्रश्न सुनने वाला झेंप सा जाता। ऐसे ही चीजें चलती जा रही थी और वो एक बुजुर्ग से बार बार वही प्रश्न पूछते और फिर उत्तर पाने पर कहते कि कितना वक्त रह गया? कहाँ जाना है? हालत ऐसी हो गयी कि वो बुजुर्ग  भी झल्ला गये।

बुजुर्ग – “तमीज से रहो।”
वो व्यक्ति – “अरे चाचा जी क्यों परेशान हो रहे हैं? आपको देखकर मुझे लगता है आप पॉवरफुल आदमी हैं। क्या आप प्रधान रह चुके हैं?”
बुजुर्ग – “हाँ, दो बार प्रधान रह चुका हूँ।”
वो व्यक्ति – “तभी।  फिर तो आपको आईडिया होगा कि गरूड कितने बजे पहुँच जाएगी यह गाड़ी? ”
व्यक्ति से पांचवी बार यह प्रश्न सुनने के बाद वह बुजुर्ग झल्लाता हुआ- ” जो पूछना है कंडक्टर से पूछो।”
कंडक्टर ने अपना नाम सुना तो एक बार ऐसे देखा जैसे बुजुर्ग से कह रहे हों कि अरे चाचा मुझे क्यों फँसा रहे।
वो व्यक्ति – “आप तो प्रधान रहे हैं इधर।अच्छा आपको तो आस पास की चीजों का पता होगा।”
बुजुर्ग – “हाँ पता है।”
वो व्यक्ति – “यह तो अच्छी बात है। जानकर अच्छी लगा। अच्छा आपका गरूड़ जाना होता रहा होगा?”
बुजुर्ग – “हाँ। जाना होता है।”
वो व्यक्ति चेहरे पर एक कुटिल मुस्कराहट लाते हुए- “यह तो बहुत अच्छा है चाचाजी। फिर तो आप यह जानते होंगे कि गरूड़ पहुँचने में कितना वक्त लगेगा?”
बुजुर्ग – “देखो तमीज से रहो। तुम्हारे जैसे मैंने बहुत ठीक किये हैं। यह मत समझो गुंडा गर्दी इधर चलेगी। चुप चाप बैठ जाओ। जो पूछना है कंडक्टर से पूछो।”
बस में सभी की नजर उस व्यक्ति और बुजुर्ग पर थी। अगर आपका पिए हए व्यक्ति से पाला पड़ा है तो यह समझते होंगे कि उन्हें जितना इंगेज करोगे उतना वो परेशान करेंगे। एक आध शब्द ही कहोगे तो खुद ही चुप हो जायेंगे। बुजुर्ग उनसे जितनी बात करते वह उतना ही उनसे बातें करते।
वो व्यक्ति – “अच्छा जी आपने सबको ठीक किया है। ये तो अच्छी बात है। इसका मतलब आपकी इधर काफी चलती है।”
बुजुर्ग खुश होते हुए – “हाँ चलती है तुम भी तमीज से रहो।”
वो व्यक्ति -“ठीक कहा चाचा जी। जब आपकी इतनी चलती है तो मैं आपसे ठीक ही रहूँगा। मुझे नहीं पता था कि आप इतने बड़े आदमी हैं। आप इतने बड़े हैं। आपकी इधर चलती है। फिर आपको यह तो पता होगा कि मुझे गरूड जाना है?”
बुजुर्ग – “हाँ, वही तो बता रहे थे तुम?”
वो व्यक्ति- “बहुत दिनों बाद जा रहा हूँ मैं उधर। मेरा गाँव है उधर। अच्छा जब आपको इतना कुछ पता है तो यह तो पता ही होगा कि यह बस कितने बजे गरूड़ पहुँचा देगी?”
बुर्जुग का यह प्रश्न सुनना था कि मुझे ऐसा लगा जैसे वो अपने बाल नोच देंगे। लेकिन उन बुजुर्गवार की किस्मत अच्छी थी कि उसी वक्त आगे से कोई व्यक्ति गाड़ी से उतरे और बुजुर्गवार उनके द्वारा खाली की गयी सीट पर बैठ गये।

मैं यह सब देख रहा था और हँस रहा था। शराबी अगर गाली गलोच न करें तो ज्यादातर कॉमेडी जरूर करते हैं। जो उनके फंदे में फँसता है उसके लिए झेल होती है, जैसे बुजुर्गवार के लिए थी क्योंकि वो चिढ रहे थे, लेकिन आसपास के लोगों के लिए यह मुफ्त का मनोरंजन था जिसमें शायद हानि किसी की नहीं थी।

वह व्यक्ति पिए हुए था लेकिन कोई बदतमीजी नहीं कर रहा था लेकिन बार बार पूछते प्रश्नों से वह किसी का भी दिमाग खराब कर सकता था। उसके साथ उसकी बीवी और बच्चे भी थे जो कि आगे की सीट में थे। बीवी उसकी आदत से परेशान लग रही थी और गुस्सा और झल्लाहट उसके चेहरे पर दिखाई दे रही थी। इतना तो तय था कि वह अभी मजे ले रहा है लेकिन नशा उतरने के बाद उसकी पत्नी उसकी बहुत तरीके से खबर लेने वाली थी।

बुजुर्ग को छोड़कर उसने फिर किसी को पकड़ने की कोशिश की लेकिन सभी ने उसे नजरंदाज किया। एक बार तो  भाई ने मुझे भी अपनी बगल की सीट पर बैठाना चाहा लेकिन मैं भी इस निमन्त्रण पर नहीं फँसा वरना मैं भी उन्हें गरूड आने में कितना वक्त रह गया है यह बताने को मजबूर हो गया था। एक दो बार कंडक्टर ने जरूर उनकी जिज्ञासा शांत की लेकिन फिर वो भी नई सवारी का बहाना करके निकल लेते थे। फिर वो भाई ऐसे ही चुप हो गये या अपने साथी के साथ कुछ न कुछ बातें करने लगे।

घुमावदार सड़कों, जिनके दोनों और हरे भरे पेड़ उगे हुए थे, को हम पार करते जा रहे थे। सफर अच्छे  से कट रहा था। मुझे भी कुछ देर में सीट मिल गयी थी और मैं खिड़की से आस पास के नजारे देखने में व्यस्त था। फोटो खींचने का अवसर मुझे नहीं मिला लेकिन नजारों को मैं अपने मानस पटल पर अंकित किये जा रहा था। सफ़र चलता रहा और हम लोग सीधा सोमेश्वर घाटी आकर रुके।

बग्वालीपोखर, अल्मोड़ा
सोमेश्वर मार्केट

नमकपारे,चाय की तलाश और एक गायब आदमी 

सोमेश्वर में गाड़ी रुकी और एक जगह लग गयी। हम ग्यारह बजे के करीब रानीखेत से निकले थे और डेढ़ बजे के करीब हम सोमेश्वर में विश्राम कर रहे थे। मैंने राकेश भाई को नीचे आने को कहा लेकिन वो नहीं उतरे। मुझे चाय की तलब थी और लघु शंका भी जाना था तो मैं नीचे उतर गया।

नीचे उतरकर पहले मैंने एक शौचालय ढूँढा जिसके लिए मुझे काफी चलना पड़ा लेकिन फिर इस शंका का निवारण करके और हाथ वगेरह धोकर मैं बस के नजदीक लौटा। बस जिस होटल के सामने खड़ी थी उधर चाय का बन्दोबस्त नहीं था। पर उधर मुझे नमकपारे दिख गये। चाय के साथ नमकपारे मुझे बेहद पसंद है। मेरा कुछ खाने का मन कर रहा था। बस में जब भूख लगती तो मैं राकेश भाई से पेड़े मांग लिया करता जिन्हें खाकर मुझे तो आनन्द आ जाता। अब नमकपारे देखकर उन्हें लेने का मन करने लगा। वैसे भी मैं अब जब भी सफर में जाता हूँ तो यह सुनिश्चित करता हूँ कि पैकेट में बंद चीजों के बजाय ऐसी चीजें लूँ जो उधर के होटल वाले या दुकान वाले बनाते हैं। नमकपारे, सेल नमकीन,मट्ठी इत्यादि की जोड़ी चाय के साथ मुझे पैकेट में बंद चीजों से ज्यादा लुभाती है। मैंने बीस के नमकपारे पैक करने को कहा और  फिर चाय की तलाश करने लगा। सड़क पार करके मुझे एक होटल मिल गया जहाँ से मुझे चाय मिलने के आसार दिखने लगा तो मैंने नमकपारे के पैसे चुकाए और फिर चाय वाले होटल की तरफ बढ़ गया। मेरा अंदेशा सफल हुआ और मुझे चाय मिली। मैंने चाय पी और ताजगी का अनुभव करने लगा।

चाय का आनन्द लेने के बाद मैं बस की तरफ गया और नमकपारे राकेश भाई को पकड़ाए। मैं थोड़ी देर बाहर ही रहा और आस पास की चीजें देखता रहा। मार्किट देख कर लग रहा था कि आस पास के गाँवों के लिए यह मुख्य बाज़ार है। वहीं कुछ हैंडी क्राफ्ट्स की दुकान भी थी। कई जगह सड़क के किनारे ऐसी दुकाने थी जहाँ से प्लास्टिक की चीजें और औरतों का सजने सँवरने का सामान मिल रहा था। जब तक कंडक्टर महोदय नहीं आये तब तक मैं बाहर ही रहा। जैसे वो आये तो अंदर बैठे।

गाड़ी चलने लगी तो एक महिला बोली। अरे अभी रुकिए मेरे पति नहीं आये हैं वो बाहर गये हैं। महिला घबराई हुई लग रही थी। लोगों ने उन्हें फोन करने के लिए कहा तो वो अपने ब्च्ची को फोन करने के लिए कहने लगी। लेकिन फोन मिला नहीं। किधर गये किधर गये का शोर बस में होने लगा? बस आगे पीछे हिचकौले खाने लगी। अब सभी को उनके गायब पति का इंतजार था जिन्होंने बाहर जाने का यह वक्त ढूँढा था।

जहाँ बस खड़ी थी उधर खड़ी नहीं रह सकती थी तो दस मिनट इन्तजार के बाद बस को थोड़ी देर आगे बढाया गया। इस दौरान महिला अपने पति को गाली देती रही और उन्हें कोसती रही कि यह उनके रोज का काम है। बस आगे लगी ही थी कि जिस व्यक्ति का इन्तजार था वह झूमते हुए और चेहरे पर बड़ी मुस्कराहट लेकर एक तरफ से आ रहा था।

कन्डक्टर ने उन्हें आते देखा तो कहा – “भाई जी किधर रह गये थे।”
वह झेपता हुआ सा बोला – “अरे बस इधर ही चले गया था।”
वह व्यक्ति आया तो उसकी पत्नी ने उसे झाड़ सुनाई जिसे उसने मुस्कराते हुए सुना और फिर अपनी सीट पर बैठ गया। ये वही गरूड़ वाले व्यक्ति थे। जब वो अपनी सीट पर बैठने जा रहे थे तो कंडक्टर ने एक फिकरा सा उनकी तरफ उछाला था – “भाई जी आपको जल्दी गरूड़ पहुँचना है और आपने ही पन्द्रह मिनट आपने ही लेट कर दी गाड़ी।”
वह व्यक्ति इस बात का जवाब दिए बिना ही पीछे बैठ गया था।

अब सब सेटल हो गये थे। हमने नमकपारे खोल लिए थे और उसे खाने लगे थे। बस आगे बढ़ने लगी। लगभग एक घंटे का सफर इसके बाद हमने तय किया। घाटी से कौसानी ऊँचाई पर है तो सर्पदार सड़कों पर हमारी गाड़ी झूमती हुई बढती रही। कौसानी में हम दाखिल हुई तो खिली हुई धुप और डीजे की आवाज़ ने हमारा स्वागत किया।

बस ने हमे बीच चौक में उतार दिया था और हम इधर उधर देख रहे थे। आखिर हम अपनी मंजिल पर पहुँच चुके थे। हमने सफर रात के आठ बजे शुरू किया था और अब अगले दिन के दिन के ढाई बज रहे थे। लगभग 18 घंटे का सफर हमने किया था और इसमें चार गाड़ियाँ बदली थी। दिल्ली से हल्द्वानी, हल्द्वानी से रानीखेत, रानिखेत से बिनता और बिनता से कौसान। लेकिन अब हम अपनी मंजिल पर पहुँचकर अच्छा महसूस कर रहे थे। हम दोनों सड़क पर खड़े थे और मैंने एक गहरी साँस ली। पहाड़ की शुद्ध हवा को मैं अपने शरीर हर हिस्से में सोख लेना चाहता था। मुझे लग रहा था जैसे मैं घर पहुँच गया हूँ।

हरे भरे पहाड़
खिड़की से खींची एक तस्वीर
खेत खलियान और पहाड़
पहुँच गये कौसानी

                                                                           क्रमशः 

कौसानी यात्रा की सभी कड़ियाँ:
कौसानी ट्रिप 1
कौसानी ट्रिप 2
कौसानी ट्रिप 3
कौसानी ट्रिप 4
कौसानी ट्रिप 5
कौसानी ट्रिप 6
कौसानी ट्रिप 7
कौसानी ट्रिप 8

© विकास नैनवाल ‘अंजान’
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About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहता हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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0 Comments on “कौसानी ट्रिप 3 – रानीखेत से कौसानी”

  1. गरुड़ कब आएगा किस्सा पढ़ना बढ़िया रहा। अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा

  2. चलिए बस निकल गई तो कुछ इन्तजाम तो हुआ और कौसानी तक पहुँचने में अधिक परेशानी नहीं उठानी पड़ी । गरूड़ वाले किस्से ने बरबस हँसा दिया और ऐसे ही एक किस्से की याद भी दिला दी । बहुत सुन्दर यात्रा वृतांत ।

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