मेरा अधकचरापन

 

मेरा अधकचरापन - कविता - विकास नैनवाल 'अंजान'
Image by A_possitive_guy from Pixabay

मेरा अधकचरा पन 
मुझे बनाता है मैं 
मेरा बेढंगापन 
मुझे बनाता है मैं 
इनके बिना क्या रहूँगा मैं, मैं?

मैं हूँ ऊबड़ खाबड़ 
जैसे होती है
पहाड़ी जमींन 
जिससे  निकलते हैं फूटकर 
पेड़, झाड़ियाँ और जंगली फूल 
जो न बंधे हैं नियमों में 
जो न सजे हैं करीने से 
जो हैं स्वतंत्र, बिखरे हुए से 
और इसी स्वंत्रता और बिखराव में ही है उनकी खूबसूरती
मैं न बनना चाहता हूँ 
चिकना कंक्रीट सा 
या रोंदे गये सीने वाले खेत सा
जो दिखाई तो देते हैं खूबसूरत
सजे हुए करीने से
पर जिसके नीचे होती है 
दफन कई लाशें 
सम्भावनाओं की 
इच्छाओं की 
जो कि मार दी गयी 
बनाने के लिए उन्हें वो 
जो चाहती थी दुनिया 
अपने खुद के स्वार्थ के लिए 
इसलिए 
‘गर चाहते हो तुम किसी को 
तो स्वीकार करो 
उसे उसके ऊबड खाबड़ से 
स्वरूप के साथ 
क्योंकि 
इन ऊबड़ खाबड़ सी सतहों को समतल बनाने के चक्कर 
में न जाने कितनी बार मार दिया जाता है
उसे जिसे ही शायद तुमने 
चाहा था

©विकास नैनवाल ‘अंजान’

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहता हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

View all posts by विकास नैनवाल 'अंजान' →

0 Comments on “मेरा अधकचरापन”

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (09-12-2020) को "पेड़ जड़ से हिला दिया तुमने"  (चर्चा अंक- 3910)   पर भी होगी। 
    — 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    — 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर…! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *