कहानी की कहानी: ‘बारिश’

भावांकुर पत्रिका में प्रकाशित कहानी। तस्वीर के लिए कोई कुछ नहीं कहेगा। मुझे याद नहीं  क्या सोच कर ये सीरीअल किलर वाले लुक के साथ फोटो खिंचवाई थी और ये नहीं पता कि पत्रिका वालों ने मेरे अंदर क्या गुण देखा कि इस तस्वीर को लगाने की ठानी

कुछ दिनों पहले जब खबर मिली कि मेरी कहानी भावांकुर पत्रिका में प्रकाशित हुई है तो वही खुशी मिली जो तब होती है जब आपको अचानक से किसी किताब के सफहों के बीच या कपड़ों की जेबों में ऐसी कीमती वस्तु मिल जाती है जिसे आप वहाँ रखकर भूल चुके हो। वो होती तो आपकी ही है लेकिन अचानक से जब वह आपके समक्ष आती है तो आपको लगता है जैसे आपको खजाना मिल गया हो और हृदय इतना प्रफुल्लित हो जाता है जितना शायद तब न हो जब आपने वह खरीदी हो या आपके पास पहली दफा वो आई हो।

बारिश के छपने की खबर मिली तो उससे जुड़ी यादें भी ताजा हो गईं। यह कहानी मैंने पिछले वर्ष सितंबर के महीने में लिखी थी और उसके कुछ दिनों बाद ही पत्रिका में प्रकाशित होने के लिए भेज दी थी।
वैसे तो मैं कोई कहानी तभी लिखता हूँ जब मेरे मन में कोई विचार या कोई चित्र उभरकर आता है। लिखने के लिए लिखने का काम मैं करना तो चाहता हूँ लेकिन मुझसे हो नहीं पाता है या यूँ कहे कि मेरा करने का मन नहीं करता है। लेकिन उन दिनों काफी वक्त  से कोई कहानी नहीं लिखी थी (पूरी तो इस वर्ष भी कोई नहीं की है हा हा सब अधर में छोड़ रखी हैं) तो लिखने को कुछ मन कर रहा था। फिर मित्र देवेन्द्र प्रसाद, जो कहानियाँ प्लेटफॉर्म के साथ उस वक्त नए नए जुड़े थे, ने प्लेटफॉर्म के लिए कुछ लिखने को कहा था।
मैं दुईबात के लिए पहले 300-600 शब्दों की लघु-कथाएँ लिख चुका था जिन्हें बाद में मैंने एकत्रित कर एक शाम तथा अन्य रचनाएँ नाम से किंडल पर प्रकाशित भी किया था। ऐसे में कहानियाँ के लिए अपनी पहली रचना भी इतने ही शब्दों की लिखना चाहता था।  इसलिये मैंने इस बार बिना कुछ सोचे समझे लिखने की कोशिश करने का फैसला किया। साथ ही मैंने फ्री स्टाइल ही लिखने का फैसला किया। यानि सीधे वेबसाईट के एडिटर पर लिखने का फैसला किया क्योंकि मैं जानता था कि 600 शब्दों की लघु-कथा लिखने के बाद उस पर ज्यादा एडिटिंग करना संभव नहीं होता है तो सीधे अपने एडिटर पर काम करके फिर उसे कॉपी करके कहानियाँ पर चिपकाने का कोई तुक मुझे नहीं दिख रहा था। खैर, मैंने एडिटर खोला और उसे ताकने लगा।
एक शाम तथा अन्य रचनाएँ
किताब लिंक: किंडल
जैसे आजकल बारिश हो रही है उन दिनों भी आसमान से पानी बरस रहा था। बाहर पानी बरसता रहा और मैं स्क्रीन को टकटकी लगाकर देखता रहा। जिस कमरे में  मैं बैठा हुआ था उसकी छत टिन की है तो बारिश होने पर वह बजती काफी है। बाहर बारिश का शोर तो था ही साथ ही टिन पर पड़ती बारिश की बूंदे भी टन टन की आवाज पैदा कर रही थी जिससे मुझे चिढ़ होने लगी। मुझे ध्यान आया कि कैसे कुछ समय पहले ही ये बारिश मुझे खूबसूरत लग रही थी और मैंने अपने दोस्तों को बारिश से भीगे पहाड़ों और खेतों की तस्वीर भेजी थी। उस वक्त इस आवाज में मुझे एक तरह का संगीत सुनाई दे रहा था।  यह विचार तो मन में आया लेकिन लेखन में प्रगति नहीं हुई। कर्सर खाली पृष्ठ पर ऐसे झिलमिलाता रहा मानो कोई धावक भागने के लिए तैयार हो अपने पाँव आगे पीछे करता हुआ  बस गोली दगने का इंतजार कर रहा हो। मेरा कर्सर भी भागने को तैयार था लेकिन मैं था कि उसे भागने ही नहीं दे रहा था।

जब काफी देर तक मुझे कुछ नहीं सूझा तो मैंने एडिटर पर झल्लाते हुए लिख दिया ‘मूसलाधार बारिश थी कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी।’ और यह लिखते ही कुछ देर पहले मेरे मन में आए उस विचार पर मैं पुनः मंथन करने लगा। कुछ देर पहले जो बारिश मुझे आनंद दे रही थी वह अभी मेरे अंदर चिढ़ पैदा कर रही थी। बारिश वही थी लेकिन मनस्थिति बदलने से उसका असर मेरे ऊपर बदलने लगा था। यह विचार कोई नया नहीं है ये मैं जानता हूँ लेकिन मैंने लेखन में कभी कुछ नवीन लाने की जद्दोजहद नहीं की है। कोई चीज मुझे स्ट्राइक करती है, उसका मैं अनुभव करता हूँ या अनुभव करने की कल्पना करता हूँ तो उसे ही लेखन में शामिल करता हूँ। लेखन के जरिए मैं किसी को चमत्कृत नहीं करना चाहता हूँ बल्कि जो कुछ मन में उभरा उसे उसी कोमलता उसी सरलता से दर्ज करना चाहता हूँ। सरल चीजें सुंदर होती हैं ये मेरा मानना है। कई बार हम जटिलता को सुंदरता समझ लेते हैं लेकिन मुझे कभी वह चीज न जमी।  शायद यही कारण है मुझे ज्यादा अलंकृत भाषा पसंद नहीं आती है। वह मुझे कृत्रिम लगती है। खैर, ये मेरी अपनी पसंद है आपकी अलग हो सकती है। बहरहाल उसी बारिश के पड़ते अलग-अलग प्रभाव का विचार जब मेरे मन में आया तो फिर उँगलियाँ अपने आप इस एडिटर पर चलने लगी और कहानी खत्म करके ही रुकी। ये अच्छा भी था क्योंकि जिन कहानियों पर मेरी उँगलियाँ खत्म करने से पहले रुकी हैं वो कहानियाँ कभी खत्म ही नहीं हुई। ऐसे न जाने कितने टुकड़े मेरे वापस उस दुनिया में जाने की राह देख रहे हैं और मैं ढीठ सा उन फ़ोल्डरों को खोलकर भी नहीं देखता हूँ।  खैर, जो कहानी मैंने 600 शब्द की लिखने की सोची थी वो बढ़कर अब उससे लगभग दोगुने से ज्यादा 1300 शब्दों के करीब हो चुकी थी।
हाँ, मैंने कहानी में आनंद से चिढ़ की जगह चिढ़ से आनंद की तरफ की यात्रा करने की ठानी। वही कहानी को जानबूझ कर मुंबई में बसाया क्योंकि मैं मुंबई में तीन साल रहा हूँ और उस शहर को अपनी कहानियों में इस्तेमाल करने की मेरी इच्छा है। शायद यह उधर बसाई मेरी तीसरी कहानी होगी।  हो सकता है कभी उपन्यास भी हो पर उसमें दिल्ली दूर है।
चूँकि कहानी बड़ी थी तो मैं इसे प्रकाशित करने से पहले मैं इत्मीनान से अगले दिन एडिट करना चाहता था। इसलिये मैंने वो कहानी कहानियाँ के एडिटर से हटाई और उसे अपने एडिटर पर सेव कर लिया।
अगली बार जब उसे एडिट किया तो काफी वक्त गुजर चुका था और कहानियाँ में उसे प्रकाशित करने का विचार मन से जा चुका था। उन्हीं दिनों एक बार व्हाट्सप्प में भावांकुर पत्रिका के संपादक शोभित गुप्ता के संदेश मैं देख रहा था। उस वक्त उनकी पत्रिका के शायद शुरुआती अंक ही निकला था। या एक दो अंक आ चुके थे। शोभित भाई को मैं पहले से जानता था तो मैंने जब उन्हें अपनी कहानी भेजने को कहा तो उन्होंने उसे ईमेल करने को कहा। 17 सितंबर 2020 को वह कहानी मैंने शोभित भाई भेजी और कहा कि अगर प्रकाशन योग्य लगे तो प्रकाशित कर लीजिएगा। कुछ दिनों बाद ही उन्होंने मुझे कहा कि वह प्रकाशन योग्य है। इसके बाद मैं भी दूसरी चीजों में मशरूफ़ हो गया और फिर उसे भूल गया।
जब पिछले बुधवार यानि 29 सितंबर 2021 को उन्होंने अचानक संदेश भेजकर कहा कि मेरी कहानी भावांकुर पत्रिका के सितंबर अंक में प्रकाशित हुई है तो मन आह्लादित हो गया। सोचा आप लोगों से भी यह बात साझा की जाए और चूँकि इस कहानी की रचना प्रक्रिया मेरे लिए अलग थी तो सोचा आपके साथ वो भी साझा करता चलूँ।  उम्मीद है यह कहानी की कहानी आपको यह पसंद आई होगी। आगे भी कुछ विशेष कहानियों के बनने की कहानियाँ भी आप तक लाता रहूँगा।
तब तक आप बारिश कहानी निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
भावांकुर पत्रिका – सितंबर अंक | दुईबात
कहानी के प्रति आपकी राय का इंतजार रहेगा।

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहता हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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9 Comments on “कहानी की कहानी: ‘बारिश’”

  1. बहुत रोचक पोस्ट। कहानी की कहानी भी मूल कहानी जितनी ही मनोरंजक है।

    आप भविष्य में भी अपनी कहानियां या कविताएं भावांकूर ई पत्रिका को bhavankur@ashoshila.in पर भेज सकते हैं।

  2. बहुत रोचक। लेकिन कहानी बारिश का लिंक खुलने पे भावांकुर पत्रिका खुल रही है। कहानी नही मिली।

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