हाल में ही पौड़ी अपने गृह कस्बे जाना हुआ तो लेखक मनोहर चमोली से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। लेखक मनोहर चमोली गढ़वाल के जाने माने लेखक हैं और बाल साहित्य के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। वह न केवल लेखन कर रहे हैं बल्कि बच्चों की साहित्य में रुचि बढ़ाने की दिशा में भी कार्य कर रहे हैं। नैशनल बुक ट्रस्ट, एकतारा प्रकाशन जैसी संस्थाओं से उनकी पुस्तकें आई हैं। वह पेशे से शिक्षक हैं और शिक्षण में आने से पहले पत्रकारिता में भी हाथ आजमा चुके हैं। वह काफी वर्षों से पौड़ी में ही है लेकिन यह पहली बार हुआ कि मैं उनसे मिला।
उनसे अपने गढ़वाल प्रवास के दौरान दो बार मिलने का मौका लगा। पहली बार 1 सितंबर को और दूसरी बार 15 सितंबर को। यह दोनों ही मुलाकातें पौड़ी के प्रसिद्ध होटल फ्रंटियर में हुई थी जहाँ चाय की चुसकियों में काफी बाते हुईं।
इन दो मुलाकातों में सहज स्वभाव और मृदु भाषी मनोहर जी के विषय में न केवल जाना बल्कि साथ ही उनके लेखन, आने वाले प्रोजेक्ट्स, प्रकाशन से जुड़ी बातें, समस्याएँ, रॉयल्टी के मुद्दे और गढ़वाल में पठन पाठन की स्थिति पर भी विचार हुआ। इसके साथ ही लेखक के कार्यों की ऑनलाइन मौजूदगी और उसके महत्व पर भी बात हुई जिसमें उन्होंने बताया कि कैसे उनकी कई कहानियाँ प्रकाशन ने ऑनलाइन प्लैटफॉर्म से पढ़कर ही चुनी थी। इस अनुभव ने ऑनलाइन पोर्टल्स के प्रति उनके नजरिए को भी बदला है।
पहली मुलाकात की तस्वीर। खींचने वाले होटल में कार्यरत व्यक्ति ही थे। |
हमारे बीच बाल और किशोर उपन्यासों की कमी और इस साहित्य में विविधता की कमी पर भी बातचीत हुई। जहाँ अंग्रेजी में बाल और किशोर वर्ग के लिए विपुल साहित्य और हर तरह का साहित्य फिर चाहे वो रहस्यकथाएँ, विज्ञानकथाएँ, फंतासी, हॉरर या शिक्षापद्र कथाएँ ही क्यों न हो सब मौजूद है लेकिन हिंदी में अभी ऐसा नहीं है। शिक्षापद्र कहानियाँ तो बहुत हैं लेकिन मनोरंजक साहित्य की भारी कमी है।
यही नहीं गढ़वाल की पृष्ठभूमि पर रचे बाल उपन्यासों के विषय में बातचीत हुई और काफी सोचने विचारने के पश्चात भी ऐसे किसी उपन्यास या उपन्यासों का नाम हमारे जहन में न आ पाया। फिर विचार बना कि इस विषय पर कार्य होना चाइए। उम्मीद है जल्द ही इस पर् भी काम पूरा होगा।
पौड़ी में पुस्तक प्रदर्शनी के विषय में भी बात हुई जिसमें उन्होंने अपनी संस्था और अपने प्रयासों और इसमें आ रही दिक्कतों के विषय में बताया। मैं पौड़ी की साहित्यिक दुनिया से इतना परिचित नहीं हूँ लेकिन मनोहर जी परिचित हैं और उनसे काफी कुछ जानकारी मुझे भी प्राप्त हुई।
पुस्तकों का आदान प्रदान भी हमारे बीच हुआ। उन्होंने कुछ पुस्तकें मुझे उपहार स्वरूप दीं और मैने भी साहित्य विमर्श की चांद का पहाड़ और अपने पुस्तकालय में मौजूद एनिड ब्लाइटन की सीक्रेट सेवन शृंखला का एक उपन्यास उन्हें दिया। ऐसे उपन्यासों की अभी हिंदी में कमी ही है। चूँकि ऊपर बाल उपन्यासों की बात हुई थी और
पुस्तकों का आदान प्रदान |
यह दो मुलाकातें रोचक रही। तीसरी मुलाकात की योजना तो बनी थी लेकिन घर में काम आ जाने की वजह से वह योजना योजना ही रही। खैर, अगली बार फिर मुलाकात होगी और यकीनन साझा करने हेतु काफी नये अनुभव भी होंगे।
मनोहर चमोली जी अपना ब्लॉग भी चलाते हैं और उनकी कहानियाँ गद्यकोश पर पढ़ी जा सकती हैं। उनकी कहानियाँ किंडल पर भी हैं। अगर आप किंडल अनलिमिटेड सेवा का प्रयोग करते हैं तो आप उधर से ही उनकी कहानियाँ पढ़िएगा।
वाह ! आनंद आ गया ! शानदार थी मुलाकात ।
जी सही कहा। अगली मुलाकात की प्रतीक्षा है।
मनोहर चमोली जी के विषय में जानकर बहुत अच्छा लगा। उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व से परिचित करवाने हेतु आपका आभार। यह भी अत्यन्त उपयोगी सूचना है कि उनकी रचनाएं पठन हेतु गद्य कोश पर उपलब्ध हैं।
जी लेख आपको पसंद आया ये जानकर अच्छा लगा। उनकी रचनाओं के प्रति आपकी टिप्पणियों की प्रतीक्षा रहेगी।