यक्ष प्रश्न 2024

यक्ष प्रश्न 2024

गहन वन में भटकते पथिक का प्यास के मारे बुरा हाल था। कई घंटों से वह भटक रहा था। अब उसका गला सूखने लगा था। ऐसे लगने लगा था जैसे वहाँ काँटे उग आए हों। जीभ रबड़ समान मोटी सी लगने लगी थी। होंठ पर पपड़ी जम गयी थी। कदमों को घिसटते घिसटते वो बढ़ा जा रहा था। रास्ता ऊबड़ खाबड़ था। कहाँ कदम रख रहा था इसका उसे होश नहीं था।

ऐसे ही अर्ध बेहोशी की हालत में वह बढ़ता चला रहा था कि अचानक उसके कानों में बहते पानी की आवाज सी आयी। वह ठिठक सा गया। उसने अपने सिर को झटका। उसे लगा था जैसे उसे मतिभ्रम हो गया है। एक दो बार सिर झटकने के बाद भी जब पानी की आवाज आती रही तो वह उस दिशा में आगे बढ़ गया।

झाड़ियों को हटाता वो धारा की आवाज की तरफ बढ़ा चला जा रहा था। जैसे जैसे वह आवाज के स्रोत के नजदीक पहुँच रहा था उसे अपने अशक्त होते शरीर में पुनः ऊर्जा का बहाव होता महसूस हुआ। फिर वो पल भी आया जब उसने आखिर झाड़ी हटाई और उसे वह बहती धारा अपने सामने दिखी। धारा का बहता निर्मल पानी चमक सा रहा था। वह आँखें फाड़े कई पलों तक उस पानी को देखते रहा। उसे लगा जैसे उसकी आँखें अब अपने कटोरों से बाहर को निकल पड़ेगी। फिर उसने भागना शुरू किया।

वह गिरता पड़ता उस बहती धारा के किनारे पहुँचा। वह झुका, उसने पानी को अपनी अंजुली में भरा और उसे मुँह के पास ही ले जाने वाला था कि उसे एक झटका सा लगा। उसे अपना शरीर उड़ता हुआ सा लगा और फिर उसकी आँखों के आगे अँधेरा छा गया। कुछ समय बाद जब उसे होश आया तो उसने अपने को नदी से कुछ दूरी पर पाया और फिर जो चीज उसने देखी वह उसकी अक्ल हैरान करने के लिए काफी थी।

नदी के ऊपर विशालकाय व्यक्ति तैरता सा प्रतीत हो रहा था। जंगल के सबसे ऊँचे पेड़ के बराबर उसकी ऊँचाई थी। सिर पर उसके सोने का मुकुट था। बड़ी बड़ी उसकी मूँछे थी। हृष्ट पुष्ट शरीर था।

पथिक ने उस जीव पर नजर मारी और अपने आप को देखा। उसे अपना पूरा शरीर उस व्यक्ति के हाथ से भी छोटा लगा। तभी एक गड़गड़ाहट सी हुई। गड़गड़ाहट फिर हुई तो पथिक को समझ आया वह विशालकाय व्यक्ति बोला था।

उसने कान लगाकर सुना तो उससे कहा जा रहा था, “मूर्ख.. यहाँ से जल पीने की दुस्साहस क्यों किया?”

“अ.. आप कौन, महाराज?”, व्यक्ति कँपकँपाते हुए बोला।

“मैं यक्ष हूँ। कथा नहीं पढ़ी क्या?”, यक्ष ने गर्जना सी की। ऐसा लगा उसके इस गर्जन से पूरा जंगल शांत हो गया है।

“जी पढ़ी तो थी। पर लगा नहीं इस कालखंड में दर्शन के सौभाग्य मिलेंगे।”, पथिक एक कंपनी में इंजीनियर था। टीम लीडर और मैनेजर को मक्खन मारे का उसका काफी अनुभव था। इसलिए वह अपनी सूख चुकी जबान में मिश्री सा घोलता हुआ सा बोला।

“हम कालखंड के बंधक नहीं है। समझा”, यक्ष गुर्राया।

पथिक ने पूरी ताकत बटोर कर अपनी मुंडी ऊपर नीचे की।

“जल पीना है तो प्रश्न का उत्तर देना होगा”, यक्ष अब कदरन नरम लहजे में बोला।

“म..महाराज.. जबान सूखकर रबड़ हो चुकी है। बोला नहीं जाएगा। क्या पानी पीकर जवाब नहीं दे सकता। थोड़ी ऊर्जा मिल जाएगी।”, पथिक वैसे ही बोला जैसे उसने सीखा था। तेज तर्रार बॉस रहे तो मक्खन लगाओ और थोड़ा सज्जन बॉस हो तो उसके कंधे पर चढ़ जाओ। वह अब तक इसी सूक्ति का पालन करते आया था।

“क्या कहा?” यक्ष चिंघाड़ा। ऐसा लगा जैसे आसमान में कई सारी बिजलियाँ आसपास गड़गड़ाई हों। यक्ष की दोनों आँखें शोलों के समान जलने लगी। उसके फड़कते नथुनों से तेज हवा सी निकली जिसके बहाव में पथिक उस खुदरीली जमीन पर कुछ फुट दूर तक घिसटता चले गया। उसे लगा जैसे उसका पहले से क्षत विक्षित शरीर अब कई जगह से कट फट गया था।

पथिक के तिरपन काँप गए। वोअगर वो इतना प्यासा न होता तो उसे पक्का यकीन था कि वह अपनी पैंट गीली ही कर देता। ‘फिर न जाने ये क्या कर देता।’, उसने सोचा। उसने उस दिन को कोसा जिस दिन से उसे वैंडरलस्ट के कीड़े ने काटा था। उसने पहली बार अपने शरीर में हो चुकी पानी की कमी के लिए अपने इष्ट को धन्यवाद दिया और अपने चेहरे को दयनीय बनाया।

“जितना तूने बोला है उतने में तो जवाब दे देता। और चीज इस्तेमाल करने के बाद कौन किसी को पूछता है? नेता वोट मिलने के बाद पूछते हैं? दोस्त उधार मिलने के बाद पूछते हैं? तू भूल रहा है ये कलियुग है और मैं अपनी गलतियों से सीख चुका हूँ। अब जल्दी से प्रश्न का उत्तर दे वरना तेरे जैसे कई मैंने गायब किए हैं। क्या समझा?”

पथिक ने मुंडी हिलाई।

“क्या बकरे से मुंडी हिला रहा है? दे?”, यक्ष दहाड़ा।

“म.. महाराज.. प्रश्न?”, पथिक मिमियाया।

“हम्म। देख तूने मुझे ही भुला दिया।”, यक्ष पथिक के मैनेजर की याद दिलाता सा अपनी गलती का दोष उस पर मढ़ते हुए बोला।

“जी।”, पथिक ने हथियार डाल दिए।

“बता! धैर्य क्या है?”, यक्ष गरजा।

पथिक का दिमाग घूमने लगा। पहले तो उसे लगा कह दे। इतनी देर से आपकी गर्जना सुन रहा हूँ। वही धैर्य है। पर ऐसा करके उसके यक्ष के विशालकाय मुँह में समाने की संभावना थी और फिलहाल उसका किसी के पेट में जाने का विचार नहीं था। वह अपनी रही सही ऊर्जा बटोर कर दिमाग के घोड़े दौड़ाने लगा। फिर उसकी आँखें चमकी।

“महाराज, छोटे केंट की ऐसी आवाज, जिसे सुनकर उसका गला घोंटने का मन करे, को भी लगातार दिन के दो तीन घंटे अपनी संतान के चलते सुनते जाना ही धैर्य है।”, पथिक बोला। आजकल के माता पिता की तरह उसके पुत्र को भी यूट्यूब का चस्का था। वर्क फ्रॉम होम के चलते वह यूट्यूब पर अपने बेटे के पसंद के कार्टून देखने को मजबूर सा था।

पथिक का बोलना था कि यक्ष की भृकुटी पहले तनी और फिर एक तेज रोशनी हुई।

कुछ पल के लिए पथिक की आँख चुँधिया सी गयी।

फिर उसे लगा कोई बड़े प्यार से उसके बाल सहला रहा है। उसके फटे होंठों के नजदीक कोई अंजुलि सी आई और उसमें से पानी पीने लगा। आँख बंद किए वह न जाने कब तक पानी पीता रहा। अंजुली से पानी खत्म नहीं हो रहा था। जब वो जी भर कर पानी पी चुका था तो उसने हाथ के मालिक को देखा। वह यक्ष था जो अब साधारण आकार में उसके सामने झुककर बैठा उसे पानी पिला रहा था। उसके चेहरे के भाव समझने में पथिक को दिक्कत नहीं हुई।

“कितने हैं?”, उसने पूछा।

“दो”, यक्ष बुदबुदाया। पथिक जान चुका था यक्ष भी उसी नाव का सवार था जिसका वो था।

“क्या क्या देखते हैं?”

“छोटा केंट, नटखट बोबो, नानी तेरी मोरनी,ऊपर.. पंखा..”, यक्ष की आवाज बोलते बोलते अटकी।

पथिक ने अपना हाथ उठाकर यक्ष के कंधे को सांत्वनापूर्ण थपथपाया। फिर यक्ष और पथिक उठे। यक्ष नदी की तरफ बढ़ गया और पथिक जंगल से निकलने की दिशा में। उन्हें घर पहुँचना था। लिटल केंट, नटखट बोबो इत्यादि उनकी प्रतीक्षा जो कर रहे थे।

– विकास नैनवाल ‘अंजान’

नोट: आजकल श्वे महाराज (मेरे पुत्र) यूट्यूब में कुछ चीजें पसंद करने लगे हैं। उनमें से एक है छोटा केंट। इसकी आवाज मुझमें बड़ी खीज पैदा करती है लेकिन चूँकि श्वे को पसंद है तो लगा रहता है। मुझे ही धैर्यवान बनना पड़ता है। आज ऐसे ही इस चीज को लेकर ऊपर लिखा ख्याल आया तो सोचा लिख ही दिया जाये। बताइएगा आपको यह कथा कैसी लगी? छोटे बच्चों एक माता पिता इस चीज से तो जुड़ाव महसूस कर ही लेंगे।

अगर नहीं कर पा रहे तो आपको भी छोटे केंट से मिलवा देते हैं।

हेडर तस्वीर स्रोत: ओपन ए आई से इमेज बनाई जिसे कैनवा का प्रयोग करके प्रयोग किया है।

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहता हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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2 Comments on “यक्ष प्रश्न 2024”

  1. Haha, that’s interesting. And relatable. However I haven’t heard of Chhota Kent. I know Chhota Bheem. And the way Shinchan speaks is so annoying.

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