लेखक वेद प्रकाश कांबोज लोकप्रिय साहित्य के मजबूत स्तम्भ थे। 6 नवंबर को उनका निधन हो गया। वह 85 वर्ष के थे। अपने जीवन काल में उन्होंने 450 से ऊपर उपन्यास लिखे और अपने किरदारों और उपन्यासों के माध्यमों से कई पाठकों का न केवल मनोरंजन किया बल्कि उनके दिल में एक स्थान भी पाया। व्हाट्सएप पर मैंने भी एक समूह में अपने विचार लिखे थे। फिर वो लिखने के बाद लगा कि कुछ रह गया है जो कहना था जो कहा नहीं गया है। तो उस लेख के साथ जो बाकी के विचार हैं उन्हें यहाँ साझा कर रहा हूँ।
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वेद प्रकाश कांबोज जी से मेरा पहला परिचय डेली हंट के समय हुआ था। मुझे याद है उन दिनों मैं अनिल मोहन, राज भारती, रीमा भारती, सुरेंद्र मोहन पाठक, ओम प्रकाश शर्मा (नॉट जनप्रिय) की विक्रांत श्रृंखला का एक उपन्यास, केशव पंडित का शादी करूंगी यमराज, वेद प्रकाश शर्मा का एक उपन्यास विकास और मेकाबर पढ़ चुका था। कांबोज जी के उपन्यास बाजार में मुझे दिखे नहीं थे या उन दिनों (2013,2014, 2015 के करीब) बाजार में उपलब्ध नहीं थे। मुंबई की विरार चर्चगेट लाइन में, जहाँ मेरा आना जाना था, उपलब्ध नहीं ही थे। खैर, डेली हंट आया और उसमें उपन्यास लेने का सिलसिला चालू हुआ। डेलीहंट ने उन दिनों शायद आई पी एल के वक्त एक सेल चलाई थी जिसमें उपन्यास दस से बीस रुपए में मिल रहे थे। मुझे इतना पैसे देने में गुरेज नहीं था तो मैंने एक उपन्यास खतरे की खोपड़ी लिया। टाइटल ने मेरा ध्यान आकर्षित किया था। वैसे तो आम तौर पर खोपड़ी और हड्डियाँ खतरे का निशान होता ही है लेकिन ये कैसी खोपड़ी है जो खतरे की है। यह विचार शायद मन में भी आया था। मुझे हॉरर उपन्यास भी पसंद रहे हैं तो ऐसा भी लगा था कि इसमें हॉरर एलिमेंट्स भी हों। यही सब सोचकर सेल का फायदा उठाते हुए मैंने ये उपन्यास खरीद डाला था।
पर फिर जैसा अक्सर होता है मैं उपन्यास खरीद कर रख देता हूँ और उन्हें पढ़ने का वक्त नहीं निकाल पाता हूँ। तो ये उपन्यास भी कुछ सालों तक मेरे फोन पर पड़ा फोन की मेमोरी बढ़ाता रहा और मैं वेद प्रकाश कांबोज और उनके काम से अछूता रहा।
लेकिन इस दौरान उनके बारे में पढ़ चुका तो उनके उपन्यास ऐसे ही अमेजन पर तलाशता था। ऐसे में शिलालेख से आए कुछ उपन्यासों पर नजर पड़ी और उनके द्वारा किया अनुवाद लावारिस और उपन्यास रेल गाड़ी का भूत ले लिया और लेकर रख दिया। अगले साल दांव खेल और पासे पलट गए भी खरीदा।लेकिन पढ़ा इनमें से एक भी नहीं।
फिर 2020 में मैंने किसी वक्त खतरे की खोपड़ी पढ़ने को निकाला तो पढ़कर लगा कि इन लेखक को तो पढ़ना चाहिए। उपन्यास में हॉरर तो नहीं था लेकिन कुछ कॉमेडिक सीन थे जो मुझे पसंद आए थे। उपन्यास में कॉमेडी हो कहानी थोड़ा कमजोर भी हो तो मेरे लिए चल जाता है। यह उपन्यास तो मनोरंजक था और कॉमेडी ने इसकी क्वालिटी को बढ़ा दिया था।
हाँ, ये मेरी काहिली ही है कि पढ़ना चाहिए सोचने के बाद भी मैंने इसके बाद वेद जी को तब पढ़ा जब नीलम जासूस से उनके उपन्यास आने शुरू हुए। विजय श्रृंखला के उपन्यास पढ़े। दांव खेल और पासे पलट गए भी 2023 में जाकर पढ़ा। लावारिस और रेल गाड़ी का भूत तब तक नहीं पढ़ पाया था और अभी तक भी नहीं पढ़ पाया हूँ लेकिन जल्द ही पढ़ने का इरादा है। रेल गाड़ी का भूत तो इस माह ही पढ़ लूँगा।
हाँ, अपने झिझकने वाले स्वभाव के चलते मैं कभी उनसे मिलने न जा सका। बस इस बात का मलाल है।
बस आखिर में इतना ही कहूँगा कि वेद जी अभी में अपनी किताबों के जरिए मेरे आस पास हैं और अगर आप उनके पाठक हैं तो आपके भी होंगे।
(व्हाट्सएप में सुबह लिखी पोस्ट)
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सुबह लिखने को लिख दिया था कि आखिर में इतना ही कहूँगा लेकिन फिर सोचा क्या सचमुच पूरा कह दिया है? शायद नहीं। ये सच था कि मैं वेद जी से मिला नहीं था लेकिन उनके विषय में काफी कुछ सुना था। लेखक राम पुजारी जी से हुई बातचीत में सुना था, लेखक योगेश मित्तल जी, लेखक पराग जी से भी सुना था।
दिल्ली पुस्तक मेला जब होता था तो मन में ये खयाल आता था कि मिलना होगा पर एक तो झिझकने के स्वभाव के चलते और दूसरा टाइम टेबल के चलते कभी मिलने का मौका नहीं लगा। मैं जिस दिन पुस्तक मेले होते तो पता लगता कि वो एक दिन पहले आकर चले गए। कुछ बार तो ऐसे भी हुआ कि मैं सप्ताहांत में जाता था और वो भीड़ के चलते सप्ताह के बीच में ही पुस्तक मेले में आकर चले जाते थे।
वैसे तो उनके साथ साक्षात मिलने का मौका तो नहीं ही लगा पर उनके साक्षात्कारों के माध्यम से उनको जानने का मौका मिला।
सबसे पहला मौका जो याद आता है वो लेखक अमित खान की किताब बिच्छू का खेल पर इसी नाम की वेब सीरीज का प्रमोशन था। इस सीरीज के प्रमोशन के लिए सीरीज में लेखक का किरदार निभा रहे कलाकार दिव्येंदु शर्मा ने वेद प्रकाश कांबोज जी से बातचीत की थी। इस बातचीत में भी लेखक की सहजता देखते ही बनती थी। उन्होंने कलाकार के कई सवालों के जवाब देते हुए लेखकीय जीवन के ऊपर कई बातें बताई थीं।
इसके अतिरिक्त एक बार कव्वों का हमला के लेखक अजय कुमार जी वेद जी से हुई बातचीत का ऑडियो साझा किया था। उन्होंने अपने ब्लॉग पर ये ऑडियो साझा किये थे जिसमें लेखन पर काफी बातें थी हूससे काफी कुछ सीखने को मिला था।
वेद जी के कुछ छोटे मोटे वीडिओ नीलम जासूस कार्यालय द्वारा भी समय समय पर साझा किये जाते थे। वहीं लेखक राम पुजारी की पुस्तक काम्बोजनामा: किस्सा किस्सागो के माध्यम से ही उनके जीवन से जुड़े कई महत्वपूर्ण पहलुओं को भी जाना था।
इस सबके माध्यम से यही लगता था कि उनसे मिलना हो रहा है। उनसे सीखा जा रहा है। जैसे एक वृद्ध अपनी आगे वाली पीढ़ी को राह दिखाता है वो भी इन माध्यमों से ऐसे राह दिखाते थे ही। यहाँ तक की जिस दिन वह दुनिया से गए उसी दिन उनका दिया एक आखिरी इंटरव्यू आया।
उस इंटरव्यू में उन्होंने अपने जीवन का फलसफा दिया कि नेवर कंप्लेन एण्ड नेवर एक्स्प्लैन यानी कभी शिकायत न करो और कभी कोई तुम्हारे बारे में कुछ गलत भी कहे तो कोई स्पष्टिकरण न दो। मैंने जो समझा वो ये था कि आप अपना काम करते रहो। निंदा करने वाले तो करते रहेंगे। आप उसमें खुद को जाया न करो। आखिर में आपका काम और आपका व्यवहार ही आपकी पहचान बनेगा। आपको किसी को कुछ कहने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
इस आखिरी इंटरव्यू में लेखक अपने गुरुजनों को ही अपने लेखन का श्रेय देते नजर आए और उन्होंने बताया कि कैसे हर कोई लेखक का गुरु होता है। वह दूसरा लेखक भी हो सकता है और कोई ऐसा अंजान व्यक्ति भी जिसके उचारे कुछ अलफाज कान में पड़ने पर जब लेखक ने उसे अपने किरदार के लिए प्रयोग किया तो वह सम्बोधन यानी प्यारे तुलाराशी प्रसिद्ध हो गया। यह लेखक के व्यक्तित्व को ही दर्शाता है कि वह इस प्रसिद्ध संबोधन का श्रेय खुद ले सकते थे लेकिन सहजता से वह आज भी उस अंजान व्यक्ति को याद रखते हैं। वह अपनी गलतियों को भी स्वीकारते हैं और जवानी में की गयी थोड़ा तल्ख बातों को याद करते हुए कहते हैं कि ऐसा नहीं कहना चाहिए था। अंग्रेजी में कहते हैं वॉक द टॉक यानी कथनी और करनी में फर्क न होना। वेद जी वॉक द टॉक करते दिखते हैं।
वेद जी भरा पूरा जीवन जीकर गए हैं। जाते हुए भी वह अपने अनुभवों से अर्जित मोती इन साक्षात्कारों और अपनी पुस्तकों के माध्यम से छोड़ गए हैं कि वो हमारे इर्द हमेशा रहेंगे। इन सब वीडियो को साझा करने बाद आखिर में एक और वीडियो को साझा करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूँ। यह वीडियो काफी पहले बनाया गया था और इसमें उनके प्रशंसकों ने उनके विषय में बातें की थीं। मुझे लगता है यह भी आपको देखना चाहिए।
विकास नैनवाल ‘अंजान’, 8/11/2024
विनम्र श्रद्धांजलि।
भावभीनी श्रद्धांजलि।