
तुम क्या समझोगे
इस रचना की बात की जाए तो इस रचना की शुरुआत तब हुई थी जब 23 मई 2025 को ये अपना कॉमिक्स ग्रुप नामक व्हाट्सएप ग्रुप में ये बतकही के दौरान लिखी थी। उस समय ग़ज़ल के मकता (आखिरी शेर) से मैं संतुष्ट नहीं था।
तुम क्या समझोगे Read Moreकिस बात की जल्दी है तू ठहर जरा, बैठ चाय पीते हैं दो बातें करते हैं
इस रचना की बात की जाए तो इस रचना की शुरुआत तब हुई थी जब 23 मई 2025 को ये अपना कॉमिक्स ग्रुप नामक व्हाट्सएप ग्रुप में ये बतकही के दौरान लिखी थी। उस समय ग़ज़ल के मकता (आखिरी शेर) से मैं संतुष्ट नहीं था।
तुम क्या समझोगे Read Moreअकेले हैं इधर, बुलाएँ हम किसको Image by Pam Patterson from Pixabay जी रहे हैं कैसे ये बताएँ हम किसको घाव अपने ये दिखाएँ हम किसको रात है काली, और दिखता कुछ …
अकेले हैं इधर, बुलाएँ हम किसको Read MoreImage by Iatya Prunkova from Pixabay एक हसीं अफसाना लिख रहा हूँ, दिल का एक तराना लिख रहा हूँ, दिल के टुकड़े तो कई हो चुके मेरे, मैं दिल …
लिख रहा हूँ Read Moreउग आया टहनियों पर आफताब हो जैसे दिखता है वो, एक ख्वाब हो जैसे उग आया टहनियों पर, आफताब हो जैसे आये छत पर, तो हो जाते खुश इस तरह …
उग आया टहनियों पर, आफताब हो जैसे Read MoreImage by Gerd Altmann from Pixabay हो मुझसे अलग, यह तुम्हारा एक वहम है, करोगे गौर तो पाओगे, फर्क बहुत कम है रंग,भाषा,देश,भेष हो भले ही जुदा-जुदा है खुशी एक …
हो मुझसे अलग, यह तुम्हारा एक वहम है Read Moreमेरे इश्क़ का सब हिसाब दे जा तू, बेवफा सही फक़त ख़िताब दे जा तू, आया दिसंबर, ठिठुर रहा हूँ मैं, गर्म साँसों का अपने अलाव दे जा तू, हो …
हिसाब दे जा तू Read MoreImage by Public Affairs from Pixabay ज़ख्मो पर अपने मलहम लगाना सीख लिया, गम में भी मैंने मुस्कराना सीख लिया रात स्याह हो तो हुआ क्या भला, बन जुगनू मैंने …
ज़ख्मो पर अपने मलहम लगाना सीख लिया Read MoreImage by Free-Photos from Pixabay इन फिजाओं में ये क्या पड़ा हुआ है, क्यों नकाब हर चेहरे पर चढ़ा हुआ है, दफन करने पड़ते हैं सवाल भी हमें, ज़बाँ पर …
इन फिजाओं में ये क्या पड़ा हुआ है, Read Moreसोशल मीडिया में आजकल चिल्लाने का चलन बढ़ चुका है। कभी कभी अपनी फीड देखता हूँ तो हर कोई चिल्लाता ही मालूम होता है। ऐसा नहीं है कि एक ही …
हुआँ हुआँ वो देख हमे चिल्लाता है, Read Moreटूट टूट कर बार-बार मैं बनता रहा हूँ,इंसा हूँ गिर गिर कर सम्भलता रहा हूँ गमो के लिहाफ में लिपटी थी मेरी ज़िन्दगी,मैं गमों पर अपने बेसाख्ता, हँसता रहा हूँ …
इंसा हूँ गिर गिर कर सम्भलता रहा हूँ Read More