डर

डर - विकास नैनवाल 'अंजान' | हिंदी कविता

डर है
कि वो न निगल जाए हमें
डर है कि वो न चबा जाये हमें 

न हथिया ले हमारी सम्प्पति
न मार दे वो हमारे जवानों को
न लूट ले हमारी बहु बेटियों की अस्मत,
ये डर है हम सभी को

और इसलिए हम करते हैं वार उन पर ,
हम हथिया लेते हैं उनकी सम्प्पति,
लूट लेते हैं अस्मत उनकी बहू बेटियों की,
मार देते हैं उनके जवान आदमी

हम हैं इनसान,
रहे हैं सदियों से ऐसे ही
जिस से डरते हैं
अंत में हो जाते हैं
उनके जैसे ही

 ©विकास नैनवाल ‘अंजान’

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहता हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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