लेकिन आज बात आज के दौर के कुछ विज्ञापनों की हो रही है जिसने मुझे यह लिखने के लिए प्रेरित किया।
पहला विज्ञापन मैंने कुछ दिनों पहले देखा। मैं एक हिन्दी चैनल पर एक हिन्दी नाटक देख रहा था। तभी यह विज्ञापन मुझे पहली बार दिखा।यह ‘गूगल होम’ का विज्ञापन है। यह गूगल का एक नया उत्पाद है। यह एक तरह का स्पीकर है जिसे आवाज़ से संचालित किया जाता सकता है। एक तरह का सहायक जिसे आप आवाज़ के माध्यम से कुछ निर्देश दे सकते हैं और वो अंतर्जाल से ढूँढकर उस निर्देश को पूरा करता है।
एक पिता है जो सो रहा है। उसकी बच्ची सामने बैठी है और उसकी माँ के हाथ में भी बच्चा है। बच्ची माँ को देखती है और उसकी आँखे माँ से कहती हैं कि पापा तो कहानी सुनाते सुनाते खुद सो गये। मुझे कौन सुलाएगा। माँ पिता को सोते हुए देखती है तो कहती है कि story सुनानी थी snoring नहीं (कहानी सुनानी थी खर्राटे नहीं) और फिर गूगल को अंग्रेजी में आदेश देती है कि ‘Old Mcdonald’ गाने को बजाए।
विज्ञापन आप इधर देख सकते हैं:
गूगल होम ऐड इंडिया
यह गूगल इंडिया का विज्ञापन है जो काफी हिन्दी में है। गूगल का टैग लाइन आता है कि Make google do it यानी यह काम गूगल से करवाओ।
अब आपका तो मुझे नहीं नहीं पता परन्तु मुझे यह विज्ञापन अटपटा लगा। अगर विज्ञापन पूर्णतः अंग्रेजी में होता तो शायद यह इतना अटपटा नहीं होता। पर विज्ञापन हिन्दी में है और माँ गूगल से अंग्रेजी में बात करके अंग्रेजी में गाना सुनाने को कहती है। क्या यह थोड़ा अटपटा नहीं है? गूगल अपनी तकनीक को आम जन तक पहुँचाना चाहता है तो क्या उसे पहले यह बात सुनिश्चित नहीं कर लेनी चाहिए कि जिस बाज़ार तक वह पहुँचना चाह रहा है उस बाज़ार की भाषा में तकनीक काम करती हो। इससे संदेश तो यही जायेगा कि गूगल से बात करनी है तो अंग्रेजी आना जरूरी है। क्या यह गूगल के लिए सही है? यह विज्ञापन देखते हुए मैं यही सोच रहा था कि गूगल दूसरे देश यानी कोरिया, जापान इत्यादि में गूगल होम के विज्ञापन कैसे दे रहा होगा। शायद उन्ही की भाषा में दे रहा होगा। उधर अंग्रेजी का इतना प्रचार तो नहीं है।
चलो यह भी नहीं हो पा रहा है तो कम से विज्ञापन में यह दिखलाया जा सकता था कि माँ हिन्दी का कोई गाना सुना रही है। बात छोटी है लेकिन सोचिये इससे बच्चे पर क्या असर पड़ेगा। वैसे ही युवा हिन्दी बोलने पढ़ने में ऐसे शर्म करते हैं जैसे गुनाह कर रहे हों। क्या ऐसे विज्ञापन उस हीन भावना को और नहीं बढ़ाएंगे।
मैं इधर यह भी नहीं कह रहा की पूरे भारत में हिन्दी वाला चलाओ। इस विज्ञापन में केवल बैक ग्राउंड में आवज़ हैं। माँ सोचती है और गाना चलाने को बोलती है। अलग अलग राज्यों में अलग अलग डबिंग हो सकती है। अलग अलग गाने बज सकते हैं। गूगल के पास इतना पैसा है। वो कर सकता है।
आपको क्या लगता है?
ऐसे ही दूसरा विज्ञापन जिसे देखकर मुझे परेशानी हुई वह डाबर के शहद का विज्ञापन है। इसमें कुछ लड़कियाँ हैं जो अपने वजन से परेशान हैं। एक कहती है उसकी फोटो न खींचा करें, एक कहती है सीट छोटी हैं,एक वजन की मशीन को बदलने को कहती है। ऐसी ही कई लडकियाँ है जो अपने वजन से परेशान हैं। फिर एक चमचमाती बॉलीवुड की अदाकारा आती हैं और वो कहती हैं बहाने न बनाओ। कसरत के साथ डाबर हनी लो और वजन कम करो। विज्ञापन इधर देखिये।
ऐसे ही एक बार ग्रीन टी का भी विज्ञापन था। उसमें लडकियां अपना उभरा हुआ पेट छुपाती हैं। फिर दूसरी अदाकारा कहती हैं की पेट का फैट कम करने के लिए ग्रीन टी पियो और एक्सरसाइज करो। यह वो विज्ञापन है।
शहद चीनी से बेहतर विकल्प है इसमें कोई दो राय नहीं है। उसमें पौष्टिक तत्व होते हैं जबकि चीनी से हमे कैलोरी तो मिलती है लेकिन कोई पौष्टिक तत्व नहीं मिलते हैं। इसलिए शहद फायदेमंद है। वजन के लिए शहद का उपयोग खाली एक नुस्खा है। एक स्टडी में पाया गया कि surcose को शहद से बदल दो तो वजन बढ़ने की गति घटेगी। वहीं दूसरी स्टडी में पाया गया कि ऐसे हॉर्मोन को एक्टिवेट कर सकती है जिससे भूख कम हो जाये या न लगे। लेकिन यह सब इतने बड़े दर में नही होता कि वजन कम हो।
स्रोत : healthline
लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि शहद के कोई फायदे नहीं है। कुछ फायदे शहद के ये रहे:
1. अच्छी गुणवत्ता वाले शहद में एंटी ऑक्सीडेंटस होते हैं जो हार्ट अटैक,स्ट्रोक और कुछ तरह के कैंसर होने की सम्भावना कम होती है।
2. शुगर के मरीजों के लिए यह साधारण चीने से कम नुकसानदायक है।
3. इसमें मौजूद एंटी ऑक्सीडेंट से ब्लड प्रेसर कम हो सकता है और यह बुरे कोलेस्ट्रोल को भी कम करता है।
4. बच्चों में यह खाँसी में यह राहत भी देता है।
स्रोत:हेल्थ लाइन
यही चीज ग्रीन टी के लिए भी कही जा सकती है। उसमें भी काफी ऐसी चीजें होती जो सेहत के लिए फायदेमंद हैं। कुछ फायदे ग्रीन टी के ये रहे:
1. कुछ मामलों में पाया गया है कि ग्रीन टी कर्क रोग में फायदा देता है। ऐसा भी देखा गया है कि जिधर लोग ग्रीन टी ज्यादा पीते हैं उधर के लोगों में कैंसर कम होता है। लेकिन यह बात प्रमाणित नहीं हुई है कि यह ग्रीन टी से होता है या उनकी जीवन शैली से।
2.ग्रीन टी के अंदर ऐसे कंपाउंड होते हैं जो हृदय के लिए अच्छे होते हैं
3.ग्रीन टी से कोलेस्ट्रॉल भी कम होता है,याददाश्त के लिए भी फायदेमंद है।
4. कुछ स्टडीज में वजन कम भी हुआ है लेकिन प्रतिशत इतना कम है कि खाली ग्रीन टी से हुआ जो यह कहना मुश्किल है।
बाकि और फिर फायदे आप नीचे लिखे लेख में पढ़ सकते हैं।
स्रोत: मेडिकल न्यूज़ का आर्टिकल
यानी शहद और ग्रीन टी फायदेमंद जरूर हैं लेकिन यह कोई जादू की छड़ी नहीं है जिसके सेवन से वजन कम होने लगे। अगर आप ऐसा सोचकर पी रहे तो यकीन मानिये खुद को बेवकूफ ही बना रहे हैं।
मेरी परेशानी यही है कि ये विज्ञापन शहद और ग्रीन टी से सेहत में होने वाले लाभ के विषय में बात नहीं करते हैं। विज्ञापन औरतों की अपने शरीर के प्रति जो असुरक्षा की भावना है उसे कैश करने की कोशिश करते है। इन विज्ञापनों में आपको मर्द नहीं दिखेंगे। औरतों को ही एक खाँचे में डाला गया है। क्योंकि उन्हें पता है कि वजन के प्रति असुरक्षा की भावना मर्दों के मुकाबले औरतों में ज्यादा होती है।
डाबर के विज्ञापन में जितनी भी महिलाएं हैं, मुझे व्यक्तिगत तौर पर नहीं लगता की उनका वजन ज्यादा है। पर मैं फिर भी चाहूंगा वो व्यायाम करे क्योंकि व्यायाम से शरीर स्वस्थ रहता है। शरीर ज्यादा देर तक और ज्यादा परिश्रम कर सकता है। रोज मर्रा के काम से थकावट नहीं होती है और वैज्ञानिकों ने माना है की व्यायाम से शरीर ऐसे हॉर्मोन्स रिलीज़ करता है जिससे आदमी को बेहद अच्छा अहसास होता है। इन्हे फील गुड हॉर्मोन्स भी कहते हैं। यह सब व्यायाम करने के कारण हैं। जब मेरी बहन ने मुझसे सलाह मांगी थी तो मैंने उसे यही कहा था की व्यायाम को जीवन शैली बनाओ। खाली वजन कम करने का जरिया न बनाओ।
ज्यादा वजन होना हानिकारक है। इसमें कोई दो राय नहीं। पर खाली वजन घटाने से ही सेहत नहीं सुधरती। और शहद और पानी से वजन शायद ही घटता हो। यह एक घरेलु नुस्खा है। जिसके काम करने का कोई प्रमाण शायद ही है। ग्रीन टी पर भी शोध हुए हैं। यह थोड़ा बहुत फर्क पैदा करता है लेकिन अगर पोषण और व्यायाम नहीं है तो इसका भी असर नहीं पढ़ेगा। आपकी डाइट और व्यायाम ठीक हैं तो इन चीजों की जरूरत नहीं है। मैंने खुद 15 किलो से ऊपर का वजन केवल बिना इन टोटकों के घटाया है।
2015 में 97 किलो |
2018 में 80 किलो। अब बॉडी बिल्डिंग शुरू की है। वजन बढ़ाया है। 77 से 80 किलो किया है। |
जब डाबर और लिप्टन जैसी बड़ी कम्पनी इन उत्पादों के सेहत वाले पहलू को छोड़कर उसे खाली वजन घटाने के औजार की तरह मार्किट करती है तो हैरत होती है। उन्हें अपनी ज़िमेदारी समझनी चाहिए। और इस तरह औरतों की असुरक्षा की भावना को कैश करने से बचना चाहिए। वही बात इन अदाकाराओं पर लागू होती हैं। दोनों ही फिटनेस फ्रीक हैं। उन्हें पता है कि यह सब बेमानी है। डाइट और व्यायाम ही जरूरी है। फिर भी वो पैसों के लिए ऐसे विज्ञापन करती है। कम से कम उन्हें तो कहना चाहिए की विज्ञापन ऐसे हो जो सेहत वाले तत्वों के ऊपर बात करें न कि औरतों को नुस्खे बेचें और उनकी असुरक्षा की भावना को कैश करें।
तीसरा विज्ञापन जो था वो हाल फिलहाल तो नहीं देखा था लेकिन उसे देखकर हँसी आई थी। एक युवा स्वालम्बी होना चाहतीं है। अकेले रहना चाहती है। उसकी माँ घबराती है कि जिस बच्चे को नज़ाकत से पाला उसे दूर कैसे जाने दे। वो कहती है जब एक ही शहर में रह रही है तो अलग रहने की जरूरत क्या है? और फिर वो लड़की एक मैगी बनाकर यह दिखाती है कि वो स्वंत्रता के लायक है। वो खुद का ख्याल रख सकती है। सच कहूं उस विज्ञापन को देखकर अपनी माँ याद आई थी । मैं अपनी माँ से यह बात करता तो वो मेरे लिए और चिंतित हो गई होती। या मेरी बेवकूफी पर हँसी होती। उनकी सबसे बड़ी चिंता ही यही थी कि मैं ऐसे फ़ास्ट फ़ूड को अपने दैनिक उपभोग की वस्तु में न बदल दूँ। उन्हें पता है ये सेहतमंद विकल्प नहीं है। जो लोग इस विज्ञापन में हैं उन्हें भी पता है, जो बना रहे हैं उन्हें भी पता है लेकिन फिर भी ऐसे दिखाया जा रहा था। मैगी तैयार होती है तो विज्ञापन में मौजूद माँ ऐसे राहत की सांस लेती है जैसे बेटी ने न जाने क्या कर दिया हो। और फिर बेटी गर्व से कहती भी है कि अगर माँ आपको भूख लगे तो आप इधर आ आना। यानी आपको भी मैगी ही खिलाऊँगी।
अभी भी वो विज्ञापन याद आता है तो बेसाख्ता हँसी आ जाती है।
आप विज्ञापन इधर देख सकते हैं।
मुझे समझ नहीं आया कि ऊपर के विज्ञापन बनाते हुए लोग क्या सोच रहे थे? या कुछ सोच रहे थे भी या नहीं? मैं तो नहीं समझ पाया हूँ। क्या आप समझ पाए हैं।
आपने कुछ ऐसे विज्ञापन देखें हैं जिन्हें देखकर आप भी सोचे कि कैसे कैसे विज्ञापन? अगर हाँ तो बताइए।
तर्कसंगत तथ्य हैं आपके लेख में । बहुत सुन्दर ।
शुक्रिया,मैम।
Great analysis.
Absolutely right.
शुक्रिया,सर। बड़ी कम्पनीज को भ्रामक विज्ञापनों से बचना चाहिए। इससे उनकी ही साख गिरती है।
बहुत अच्छा सोचा,ये विग्यापन मुझे भी अच्छे नही लगते, बिना सिर पैर की बात होती है।
जी सही है। मन में यही विचार आया था कि अपने उत्पाद बेचने के लिए क्या क्या कर सकते हैं ये लोग? विज्ञापन ढंग के भी बनाये जा सकते हैं लेकिन लोगों कि insecurities को निशाना बनाकर बेचा जा रहा है जो कि नैतिक रूप से गलत ही है।
बिलकुल सही बात पकड़ी है, आजकल के विज्ञापन का न तो सर होता है न ही पाव
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शुक्रिया।
विकास जी, बहुत तथ्यात्मक आलेख लिखा हैं आपने। आज विज्ञापन ऐसे बन रहे हैं कि कई बार तो देख कर हंसी ही नहीं अचंभा भी होता हैं कि अपना उत्पाद बेचने के लिए लोग कितना झूठ बोल सकते हैं। खैर, सुंदर प्रस्तूति।
जी आभार। मैं भी देखकर परेशान हो गया था कि ये लोग इतना खर्चा करते हैं तो कुछ सोचते क्यों नहीं हैं।
जी बहुत ही शानदार विश्लेषण, यही विचार मुझे कोलगेट और डेटॉल के विज्ञापन को देखकर आता है , जिसमे भारतीय माँ को डराने की कोशिश की जाती है बच्चों का सहारा लेकर।
जी यही चीज कई बार परेशान कर देती है कि लोग असुरक्षा की भावना का दोहन करते हैं।
सही point पकड़ा है , विज्ञापन वाले कुछ भी दिखाते है।
जी आभार…
Oh God, there are so many ridiculous/illogical ads. I used to tweet about them, but I seldom watch TV these days, so not aware of new ads. The third one is the best in this category. I haven't seen this ads but the mother is relieved that the daughter can cook Maggi and will be eating it every day…wow.
True…Sometimes they are so ridiculous that I think how were these things passed by the company in the first place…It just boggles my mind…