मैं ज़बाँ से कुछ न कहता होऊँ मगर,
तू न सोच कि दिल में मेरे जज्बात नहीं,
कहने को तो कह दूँ मैं हाल ए दिल,
पर अभी सही वक्त और हालात नहीं,
क्यों भीगी हैं तेरी पलके,क्यों है उदास तू,
यकीं कर अपनी ये आखिरी मुलाकात नहीं,
क्यों चलना छोड़ मैं बैठ जाऊँ ज़मी पर,
ज़िन्दगी में अभी इतनी भी मुश्किलात नहीं,
हुआ है जो इंसाँ इंसाँ के लहू का प्यासा,
न बता मुझे यह कोई सियासी खुराफात नहीं
है कौन तू और क्यों आया है यहाँ ‘अंजान’,
समझ आये आसानी से ये वो मामलात नहीं
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
हर अशआर अपने आप मेंं पूर्णता लिए…., लाजवाब सृजन ।
बहुत शानदार
बहुत खूब
वाह बहुत उम्दा अस्आर।
बेहतरीन 👌
इस का शीर्षक ही इतना खूबसूरत और अर्थ समेटे हुए है कि रचना पढ़े बिना नहीं रह सकता…सुन्दर रचना
जबरदस्त
बेहतरीन, मनमोहक
शुक्रिया, मैम।
धन्यवाद शोभित भाई।
आभार प्रशांत भाई।
शुक्रिया, मैम।
आभार, मैम।
आभार सर।
शुक्रिया, हितेश भाई।
हार्दिक आभार सर।