मैं ज़बाँ से कुछ न कहता होऊँ मगर

मैं ज़बाँ से कुछ न कहता होऊँ मगर | विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं ज़बाँ से कुछ न कहता होऊँ मगर,
तू  न सोच कि दिल में मेरे जज्बात नहीं,

कहने को तो कह दूँ मैं हाल ए दिल,
पर अभी सही वक्त और हालात नहीं,

क्यों भीगी हैं तेरी पलके,क्यों है उदास तू,
यकीं कर अपनी ये आखिरी मुलाकात नहीं,

क्यों चलना छोड़ मैं बैठ जाऊँ ज़मी पर,
ज़िन्दगी में अभी इतनी भी मुश्किलात नहीं,

हुआ है जो इंसाँ इंसाँ के लहू का प्यासा,
न बता मुझे  यह कोई सियासी खुराफात नहीं

है कौन तू और क्यों आया है यहाँ ‘अंजान’,
समझ आये आसानी से ये वो मामलात नहीं

© विकास नैनवाल ‘अंजान’

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहत हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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