सीख लिया है

सीख लिया है | ग़ज़ल | विकास नैनवाल 'अंजान'

कल ऑफिस से आ रहा था तो एक दोस्त की पोस्ट देखी। दोस्त का नाम अरुण यादव है। वो दिल्ली आया था और अब वापस जाते हुए उसने पोस्ट लिखी थी। उसी पोस्ट में कमेन्ट के दौरान इसका कुछ भाग लिखा था। फिर कुछ पंक्तियाँ और जुड़ने लगीं। वो मैं भूल न जाऊँ इसलिए ऑफिस से रूम की तरफ आते आते मैंने फेसबुक में उन पंक्तियों  को लिखकर डाल दिया। अब इसे ये स्वरुप देकर इधर ब्लॉग में डाल रहा हूँ। अभी उम्मीद है कि कुछ वर्षों बाद इधर आऊँगा और फिर इसे सम्पादित करूँगा।

हर हाल में मुस्कराना सीख लिया है,
ज़िन्दगी को है कैसे जीना सीख लिया है,

खुश रहने लगा हूँ  मैं अब ,
पुराने गम को भुलाना सीख लिया है,

कैद था जज़्बातों के पिंजरे में अब तलक,
तोड़कर पिंजरा, अब पंख फैलाना सीख  लिया है,

कभी करा करता था ऐतबार आँख मूंद कर,
मुखोटा चेहरे से मैंने  हटाना सीख  लिया है

चुप रहना है मुजरिम होने की निशानी यहाँ,
झूठ चिल्ला चिल्लाकर कहना सीख  लिया है

टूट कर बिखरा था कभी ‘अंजान’,
समेट कर खुद को बनाना सीख  लिया है

©  विकास नैनवाल ‘अंजान’

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहत हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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0 Comments on “सीख लिया है”

  1. हर हाल में मुस्कराना सीख लिया है,
    ज़िन्दगी को है कैसे जीना सीख लिया है,
    बहुत खूब….,बहुत भावपूर्ण सृजन ।

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