बता रक्खा है | विकास नैनवाल ‘अंजान’

बता रक्खा है | ग़ज़ल | विकास नैनवाल 'अंजान'

काम काज को धता बता रक्खा है,
जनता को सरकार से खफा बता रक्खा है

जमा के मजमा ज़माने भर का
नेता ने खुद को खुदा बता रक्खा है,

सी कर ज़बाँ वो रहता है चुप चुप,
लोगो ने उसको शिकवा बता रक्खा है,

रख दे अपने ये लब मेरे लबों पर,
हकीम ने बोसे को तेरे दवा बता रक्खा है

लौट आये  बिना मिले  तुमसे, जो वो अंजान
सुना, रुसवा दुनिया ने उन्हें तुमको बता रक्खा है,

विकास नैनवाल ‘अंजान’

बोसा – चुम्बन, रुसवा – बदनाम

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहत हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

View all posts by विकास नैनवाल 'अंजान' →

0 Comments on “बता रक्खा है | विकास नैनवाल ‘अंजान’”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *