आवारा ख्याल

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12/3/2019


हेल्लो,
क्या हाल हैं? आप इसे पढ़ रहे हैं तो मुझे इतना तो यकीं है कि कोई छोटा मोटा राब्ता हमारे बीच होगा ही। कुछ तो रहा होगा जिस वजह हम आपस में जुड़े और आप ये पढ़ पा रहे हैं। ये जुदा बात है कि हमने कभी बात न की होगी। या शायद आगे भी कभी न कर पाए। लेकिन फिर भी आप अपनी ज़िंदगी के बहुमूल्य पल देकर इसे पढ़ रहे हैं। ये एक बहुत बड़ी बात है।

अब सवाल आता है कि मैं ये सब क्यों लिख रहा हूँ? तो इसका जवाब है एक ख्याल के चलते। ख्याल जो कभी भी आपके पास आ जाता है और कहता है बरखुरदार! क्या हाल हैं। मेरा और ख्यालों का अजीब सा नाता रहा है। कभी भी कोई भी आकर टकरा जाता है। कभी कभी इसके कारण लेने के देने पड़े हैं।

एक बार की बात है ग्यारवीं में था। फाइनल पेपर होने वाले थे और फिजिक्स के सर ने पढ़ने को बुलाया था। हम नहीं गए। हमारे लिए आर्ट्स वालों के साथ रूम क्रिकेट खेलना जरूरी था। फिर जब टीचर बुलाने आये तो हम होस्टल के छत पर चढ़ कर छुप गए और तब तक न निकले जब तक फिजिक्स के टीचर थक कर वापस न चले गए। प्रिंसिपल सर से शिकायत हुई। हमारी हाजरी लगी। प्रिसिपल सर डाँट रहे थे कि मेरे दिमाग में अजय देवगन का ख्याल आया।

अजय साहब अपने चिरपरिचित अंदाज में गर्दन टेढ़ी करके कह रहे थे- ‘पाजी, कदि हँस भी दिया करो।’ उसके बाद हँसी रोकने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी। इस कोशिश में असफल भी रहा क्योंकि प्रिसिपल सर ने तगड़ी क्लास लगाई।
पूछा – ‘क्यों हँस रहे हो?’

अब मैं भला क्या बताता। कहता अजय देवगन ने हँसवया तो और डाँट पड़ती। खैर, प्रिंसिपल सर का पारा सातवें आसमान पर था। उन्होंने रिसेप्शन से मैम को बुलवाया और कहा इन्हें होस्टल से निकालने का लेटर टाइप करो। लेटर टाइप हुआ, तो थोड़ा गिड़गिड़ाना पड़ा। थोड़ा रोना पड़ा और प्रिंसिपल सर पिघले लेकिन सजा के तौर पर घर फोन लगवाया गया।

पापा को बुलाया गया। पापा आये। सर से बात करी। फिर मेरे होस्टल के कमरे में आये और मुझे किनारे ले जाकर कहा ‘तेरे दोस्त इधर नहीं होते तो तुझे कुत्ते की तरह मारता।’

उस दिन पिताजी पर बहुत गर्व हुआ।(वैसे पिताजी पर गर्व मुझे बहुत बार हुआ है। हाँ, उन्हें मुझ पर गर्व करने का मौका मैं कम ही दे पाता हूँ।) मेरा सीना गर्व से दो चार इंच चौड़ा हो गया होगा। मेरी इज्जत की परवाह मुझसे ज्यादा उन्हें थी।  उसके बाद पिताजी को कहीं मेरे वजह से ऐसे न आना पड़े इस बात का मैं खास ख्याल रखता था।

खैर, बात ये थी कि ख्याल कभी भी आ जाते है। और मेरे मामले में अटपटे वक्त में ये आते जाते रहे हैं। कई किस्से हैं जब इनके कारण मैंने मुसीबतें झेली हैं।

तो अभी आफिस से निकलते हुए आज एक आवारा ख्याल आया। उस वक्त मैं रास्ते में मौजूद कीचड़ से बचने के लिए एक पत्थर से दूसरे पत्थर पर फुदक रहा था। बोलो वो कोई वक्त था ख्याल आने का। लेकिन क्या कर सकते हैं। वो आया और उसने मुझे यह सब लिखने को मजबूर किया।

ख्याल ये था कि यह ज़िन्दगी वाकई कितनी खूबसूरत है। हर रोज कुछ न कुछ ऐसा होता है जो यकीन दिलाता है कि हम कितने भाग्यशाली हैं जो ये ज़िन्दगी हमे मिली है।

आज ही की बात ले लें।

कल इधर बारिश हुई थी। और गुरुग्राम में बारिश हो और रास्ते में तलाब न बने ये हो नहीं सकता। तालाब के साथ कीचड़ इधर कॉम्पलेमेंट्री होता है। ऐसे ही एक रास्ते से मैं कीचड़ से बचते हुए आफिस जा रहा था कि गली से एक बच्चा भागते हुए आते दिखा। गली के मुहाने पर पहुँचने से पहले वो फिसला, गिरा, उठा और फिर उसकी और मेरी नज़र टकराई। थोड़ी देर उसने मुझे देखा। मैंने उसे देखा। फिर मैं मुस्कराया। वो थोड़ा रिलैक्स हुआ और उसके चेहरे पर एक मुस्कान आयी। हम दोनों ही अपनी अपनी हँसी कंट्रोल कर रहे थे। फिर वो हँसा और जिस रफ्तार से आया था उसी रफ्तार से शर्माते हुए वापस भाग गया। उसके जाने के बाद मैं काफी दिनों बाद मैं स्वच्छन्द हँसा। बचपन में कई बात मैं ऐसे गिरता पड़ता रहा हूँ। वो मुस्कराता बच्चा दुनिया की सबसे खूबसूरत चीजों में से एक था।

अक्सर ज़िन्दगी की भागदौड़ में हम इतने मसरूफ रहते हैं कि ऐसी नियामतों को नजरअंदाज कर देते हैं। खुशियों के पीछे भागते हैं और खुशियाँ हमारे अगल बगल में हमारा मुँह तकती रहती हैं लेकिन अपनी दौड़ में हम उन्हें देख ही कहाँ पाते हैं।सकारात्मक चीजों पर ध्यान देने की जगह नकारात्मक चीजों को ज्यादा तरजीह देने लगते हैं। प्रेम को पोसने की जगह नफरतों को पालने लगते हैं। और जो खूबसूरत होता है वो दूर चला जाता है। काफी दिनों से मेरी डिजिटल दुनिया में ऐसा ही हो रहा है।

अब आप सोच रहे होंगे कि मेरा ये सब लिखने का औचित्य क्या है? बस इतना ही कि जब आप लेख में यहाँ तक पहुँचे तो अपनी आँखें बंद करें और सोचे कि आज आपके साथ ऐसा क्या हुआ जिससे आपको लगा कि यह दुनिया वाकई खूबसूरत है। आप इस ज़िन्दगी को पाकर खुद को भाग्यशाली महसूस करते हैं। वह कोई साधारण घटना भी हो सकती है और कोई असाधारण भी। मसलन बारिश के बाद के पेड़ मुझे बहुत खूबसूरत लगते हैं। अभी आसमान में बादलों के पीछे से झाँकता चाँद देखकर भी मेरा मन आनंदित हुआ जाता है। एक निश्छल हँसी भी होंठों पर मुस्कान का कारण बन जाती है। आपके साथ भी आज ऐसा कुछ हुआ होगा। पोस्ट में कॉमेंट करना जरूरी नहीं है।

बस उस घटना के विषय में सोचिएगा और उस आनन्द को महसूस कीजियेगा।

आखिर में ख्याल रखने वाली बात ये है कि हमारे बीच धार्मिक, राजनीतिक,वैचारिक मतभेद हो सकते हैं। वो रहेंगे भी। लेकिन अंत में हम सभी लोग एक खूबसूरत दुनिया चाहते हैं। बस इतना ध्यान रखिये कि आप ऐसे काम करें कि अगर कोई आपके विषय में सोचे तो बस उसके मुँह से ये निकले- बन्दा/बंदी मस्त है यार वो। खुशमिजाज है। कोई आँखें बंद करे और इस विषय में सोचे कि क्यों वाकई ज़िन्दगी खूबसूरत है तो कभी आप भी खूबसूरती का कारण बन सकें। आखिर में हम लोग किसी न किसी की याद बनकर रह जाने वाले हैं। और फिर कोई उस याद को एक खूबसूरत याद माने इससे ज्यादा क्या चाहत हो सकती है एक इनसान की।

बाकी जो है ,सो है।

विकास नैनवाल  ‘अंजान’

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहत हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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0 Comments on “आवारा ख्याल”

  1. जिन्दगी वाकई मेंं खूबसूरत है ….,बस अहसास करने की जरुरत भर है । बहुत अच्छा सकारात्मक नजरिया पेश करता उम्दा लेख ।

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