ग़मों की गठरी सीने में दबाकर लाया हूँ,
अश्कों को अपने, तबस्सुम में छुपाकर लाया हूँ
सुना, है बिकती इस जहाँ में हर एक चीज,
सो जज़्बात अपने, मैं आज उठाकर लाया हूँ
बेशर्त इश्क पर हुआ करता था कभी यकीन,
शर्तों की भट्टी से मैं खुद को जलाकर लाया हूँ
होता था दर्द कभी तेरे न मिलने से मुझे,
देख दिल को अब पत्थर सा बनाकर लाया हूँ
रोज़ की आपाधापी में इतना हूँ खोया अंजान,
रूह छोड़ कहीं, केवल जिस्म उठाकर लाया हूँ,
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
वाह
एक बेहतरीन पोस्ट.. गाने को जी कर रहा है
जी आभार दिनेश जी।
जी आभार संजय जी।