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ज़ख्मो पर अपने मलहम लगाना सीख लिया,
गम में भी मैंने मुस्कराना सीख लिया
रात स्याह हो तो हुआ क्या भला,
बन जुगनू मैंने टिमटिमाना सीख लिया,
दिल टूटा था कभी मेरा,हुआ था दर्द भी,
दर्द ए दिल को अब आशारों में ढालना सीख लिया
ये भागमभाग ये रोज की अफरा तफरी,
रख किनारे,वक्त खुद के लिए निकालना सीख लिया
फिरा करता हूँ तबस्सुम लिए होठों में मैं अंजान,
मुश्किलों से मैंने डट कर टकराना सीख लिया
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
रात स्याह हो तो हुआ क्या भला,
बन जुगनू मैंने टिमटिमाना सीख लिया,
बहुत खूब ……, मर्मस्पर्शी सृजन ।
जी आभार।