ज़ख्मो पर अपने मलहम लगाना सीख लिया

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ज़ख्मो पर अपने मलहम लगाना सीख लिया,
गम में भी मैंने मुस्कराना सीख लिया

रात स्याह हो तो हुआ क्या भला,
बन जुगनू मैंने टिमटिमाना सीख लिया,

दिल टूटा था कभी मेरा,हुआ था दर्द भी,
दर्द ए दिल को अब आशारों में ढालना सीख लिया

ये भागमभाग ये रोज की अफरा तफरी,
रख किनारे,वक्त खुद के लिए निकालना सीख लिया

फिरा करता हूँ तबस्सुम लिए होठों में मैं अंजान,
मुश्किलों से मैंने डट कर टकराना सीख लिया

© विकास नैनवाल ‘अंजान’

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहत हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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0 Comments on “ज़ख्मो पर अपने मलहम लगाना सीख लिया”

  1. रात स्याह हो तो हुआ क्या भला,
    बन जुगनू मैंने टिमटिमाना सीख लिया,
    बहुत खूब ……, मर्मस्पर्शी सृजन ।

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