भूख और प्यास

भूख और प्यास
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मैं देखता हूँ
अपने चारों तरफ तो 
पाता हूँ इनसान भूखे और प्यासे
कुछ हैं जिन्हें है भूख रोटी की और मांगते हैं रोटी
कुछ को है भूख शरीर की और नोचते हैं उन्हें,
कुछ को है भूख पैसे की ,नाम की और भागते हैं इसके पीछे
सुनते हैं झिड़कियाँ बॉस की,
मिलता है मौका तो लेते हैं घूस,
लेकिन आदमी की नियति है भूखा रहना,
कितना भी खा ले
ये भूख नहीं होती है शांत,
वही हाल है प्यास का,
एक दूध मुँह बच्चा
लगाकर मुख एक कृशकाय से तन वाली स्त्री के स्तन से पी रहा होता है उसके प्राण,
उसे प्यास है जीवन की,
वही किसी के पास है सब कुछ लेकिन फिर भी है 
उसे अवसाद 
उसे प्यास है प्रेम की,अपनत्व की
किसी की महंगी गाड़ी मांगती है तेल, उसका जीवन मांगता है आराम जो भी है इस दुनिया में 
और वो पीता है खून लोगों का,
ये न जाने कैसी है प्यास जो बुझती है रक्त से इनसानों के
वहीं है एक ऐसा भी व्यक्ति जो ताकता है साफ पानी की ओर,
इसी चाह में कि अगर एक घूँट मिल जाये
तो वो बुझा ले अपनी प्यास
यही है शायद जीवन
भूख और प्यास के चक्र में फँसा हुआ
कभी सोचता हूँ 
गर न होती यह भूख और प्यास 
तो क्या होती दुनिया ऐसी
जैसी अब है 
लेकिन फिर सोचता हूँ कि 
गर न होती यह भूख और प्यास 
तो क्या होती मौजूद यह दुनिया भी

© विकास नैनवाल ‘अंजान’

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहत हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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0 Comments on “भूख और प्यास”

  1. "यही है शायद जीवन
    भूख और प्यास के चक्र में फँसा हुआ'
    बहुत सुन्दर….,

  2. बहुत ही उम्दा रचना। भावनाओं की अभिव्यक्ति बख़ूबी झलक रही है।

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