भक्षक – जी ए मोरिस की कहानी कार्निवोर का हिन्दी अनुवाद

लेखिका के विषय में:

कैथरीन मैकलीन एक अमेरिकी विज्ञान गल्प लेखिका थीं जिन्हें १९५० के दशक में लिखी गयी अपनी विज्ञान गल्प कहानियों के लिए जाना जाता है। १९४७ में जब वो लैब तकनीशियन के पद पर काम कर रही थीं तभी उन्होंने विज्ञान गल्प की कहानियाँ लिखना प्रारम्भ कर दिया था। 

उन्हें अपने लघु उपन्यास ‘द मिस्सिंग मैन’ के लिए १९७१ के नेबुला पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। 


कैथरीन मैकलीन की यह कहानी कार्निवोर  जी ए मोरिस  के छद्म नाम से गैलेक्सी साइंस फिक्शन मैगज़ीन के अक्टूबर अंक में प्रकाशित हुई थी।



लेखिका के विषय में विस्तृत जानकारी आप उनके विकिपीडिया पृष्ठ में जाकर प्राप्त कर सकते हैं:
कैथरीन मैकलीन

अंग्रेजी में मूल कहानी प्रोजेक्ट गुटेनबर्ग में मौजूद है। आप निम्न लिंक पर जाकर इसे अंग्रेजी में पढ़ सकते हैं:
कार्निवोर


न जाने क्यों वो लोग इतने परेशान लग रहे थे? यह उनकी गलती नहीं थी कि वह पृथ्वी में बहुत देर से आये थे।

वे जीव मेरे बिस्तर के चारों ओर खड़े थे। उनके शरीर पर मौजूद परिधान स्कीइंग करते वक्त पहने जाने वाले परिधानों की तरह दिखाई दे रहे थे। उनके सिर पर मौजूद हेलमेट ऐसे लग रहे थे जैसे उन्होंने मछली रखने के लिए इस्तेमाल में लाये जाने वाले कटोरों को उल्टा करके पहन लिया था।ऐसा लग रहा था जैसे यह कोई फैंसी ड्रेस पार्टी हो जिसमें वो लोग अजीबों गरीब पोशाकों और मजेदार नकाबों को ओढ़ कर आये हों।

मुझे मालूम था कि वह नकाब उनके चेहरे थे, लेकिन मैं उनसे बहस कर रही थी और यह सोचकर बहस कर रही थी कि उन नकाबों के पीछे इनसान ही हैं। वो लोग ही हैं कोई पराग्रही नहीं। मैं व्यक्तियों के मन को पढ़ सकती हूँ और मैं उन्हें पसंद करूँगी या नहीं इस बात का पता इस चीज से लगाती हूँ कि वह किस तरह से उठते बैठते हैं और किस तरह से बातें करते हुए उत्तेजित हो जाते हैं। मुझे इन लोगों से बातचीत करते हुए इस बात का अहसास हो रहा है कि इन लोगों के तरफ मेरी पसंद माता-सदृश्य ही है। शायद आप इन्हें एक माँ की तरह ही चाह सकते हो।

यह लोग मुझे रोनी की याद दिलाते हैं। रोनी एक डॉक्टरी की पढ़ाई करने वाला छात्र था जिससे बरसों पहले मेरी जान पहचान हुआ करती थी। वह छोटा सा, गोलू मोलू सा और हमेशा उत्साहित रहने वाला व्यक्ति था। आप उसे पसंद करे बिना नहीं रह सकते थे लेकिन उसको संजीदगी से नहीं लिया जा सकता था। वह शांतिवादी(अमनपसंद) अतिभावुक व्यक्ति था जो कि कवितायें लिखता था और उन्हें मौके बेमौके पढ़ा करता था। जब वह तेज बोलने की कोशिश करता था तो वह हकलाने लगता था।

ये लोग बिलकुल उसी की तरह हैं – डरे हुए और सौम्य।

मैं ही ऐसी एकलौती इनसान नहीं हूँ जो कि बच गयी थी। उन्होंने मुझे यह बात बताई है। परन्तु मैं ही वह पहली इंसान हूँ जो उन्हें मिली थी और मैं ही अब तक उन्हें मिले लोगों में ऐसी थी जिसे इस त्रासदी में सबसे कम शारीरिक नुकसान पहुँचा था। यही कारण है कि उन लोगों ने मुझे मानव जाति के प्रतिनिधित्व के लिए चुना है। वे लोग मेरे बिस्तर के चारों तरफ खड़े हैं और मेरे प्रश्नों का उत्तर देते जाते हैं। मैं उनसे बहसबाजी भी करती हूँ लेकिन फिर भी वे मेरे साथ विनम्रता से पेश आते हैं।

अगर उस समूह की बात करूँ तो वह समूह एक तरफ तो कई राष्ट्रों के प्रतिनिधि मंडल की तरह लगता है और दूसरी तरफ उसे देखकर नोहा की नाव की याद आती है। इस समूह में हर तरह के जीव हैं: बड़े, छोटे,मोटे,पतले, चार हाथ वाले, पंख वाले, विभिन्न आकार के और हर रंग के त्वचा, पंख या रोयें वाले।

वे लोग इतने शिष्ट हैं कि मैं कल्पना कर सकती हूँ कि किस तरह वह लोग अपनी दुनिया के संयुक्त राष्ट्र में व्यवहार करते होंगे। वो अपनी अलग अलग भाषाओं में अपने संयुक्त राष्ट्र में भाषण देते होंगे। वे एक दूसरे की परेशानियों को न समझते हुए भी संयम से बिना ऊबे हुए शिष्टाचार के साथ एक दूसरे की बात सुनते होंगे।

वे इतने ज्यादा शिष्ट हैं कि कभी कभी मुझे लगने लगता है कि वे लोग मुझसे डरते हैं और मैं उन्हें आश्वस्त करना चाहती हूँ कि उन्हें मुझसे घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है।

लेकिन मैं जब बात कर रही हूँ तो मेरे बोलने के तरीके से ऐसा प्रतीत होता है जैसे मैं बहुत रुष्ट हूँ। मैं अपने वाणी में इस क्रोध के आने को रोक पाने में अक्षम हूँ क्योंकि मुझे पता है कि अगर चीजें थोड़ी सी भी बदली हुई होती तो शायद….
“आप लोग जल्दी क्यों नहीं आये? आप लोगों ने इस त्रासदी को होने से पहले ही रोकने की कोशिश क्यों नहीं की। अगर ये भी आपके बस में नहीं था तो आप लोग इस भीषण त्रासदी के होते ही क्यों नहीं आ गये…” मैं उनसे पूछना चाहती हूँ। 

अगर वे लोग उस जगह वक्त पर आ जाते जहाँ नेवाडा पॉवर पाइल के मजदूर अपनी सीसे के सुरक्षित दीवारों के पीछे धीरे धीरे भूख से अपने प्राण त्याग रहे थे- अगर उन्होंने और जल्दी पृथ्वी के राष्ट्रों द्वारा फैलाये हुए मौत के गुब्बार से बचे हुए लोगों की तलाश  शुरू की होती तो शायद जॉर्ज क्रैग अभी ज़िंदा होता। वह इन लोगों के आने से पहले ही मर चुका था। वह मेरा सहकर्मचारी था और मैं उससे मोहब्बत करती थी।

हम दोनों साथ साथ स्वचालित दरवाजों, जो कि कारखाने की सुरक्षा के लिए लगाये थे, से होते हुए नीचे बने हुए तलों में गये थे। यह सुरक्षा दरवाजे बाहर मौजूद रेडियो एक्टिव खतरे से मनुष्यों को बचाने के लिए लगाये गये थे। परन्तु बनाने वालों को क्या पता था कि विज्ञान से उत्पन्न खतरे से बड़ा राजनीति के नाकामयाब होने का खतरा था। उन्होंने असफल होती राजनीति के इस खतरे को सुरक्षा व्यवस्थाओं में नहीं गिना था। हम उस वक्त काफी गहराई में थे जब हवा में मौजूद रेडियोएक्टिविटी के कारण यह स्वचालित दरवाजे अपने आप बंद हो गये थे और हम बाहरी दुनिया से कट गये थे।

हम उधर सुरक्षित थे। और हम लोग उधर भूखे मरने के लिए अभिशप्त थे।

“तुम लोग जल्दी क्यों नहीं आये?” मैं सोच रही हूँ कि क्या उन्हें पता है या वो मेरे मन में उठते इन प्रश्नों का अनुमान लगा सकते हैं। मेरे सवाल वाजिब  नहीं हैं लेकिन फिर भी मुझे उनसे इनके विषय में पूछना ही पड़ेगा। वह मर चुका है। मेरा प्रेमी अब इस दुनिया में नहीं है।  मैं उन्हें डाँटना नहीं चाहती हूँ। उन्हें देखकर पता लगता है कि उनके मन में मेरे लिए कोई द्वेष नहीं है। वे लोग दयालु हैं और मेरा भला ही सोच रहे हैं लेकिन फिर भी मुझे लगता है कि अगर मुझे पता लगे कि ऐसा क्यों हुआ तो शायद… शायद वह सब रुक जाए और किसी तरह मैं काल के चक्र को उल्टा घुमा सकूँ और कुछ ऐसा कर सकूँ कि जो कुछ हुआ वो कभी न हुआ हो। अगर मैं उन्हें किसी तरह संकेत कर पाती तो हो सकता था कि वो थोड़ा जल्दी आ जाते।

वे लोग एक दूसरे को देखते हैं। उनके अजीब से दिखने वाले चेहरे संकोच और व्यग्रता से आगे पीछे हिल रहे हैं लेकिन किसी की भी जुबान खुलने का नाम नहीं ले रही है। ऐसा लगता है सभी ने अपने मुँह में दही जमा ली है।

दुनिया मर चुकी है। मेरा जॉर्ज मर चुका है….मैं उसे याद करती हूँ। आखिरी बार जब मैंने उसके हाथों को छुआ था तो हम लोग साथ बैठे हुए थे और वो एक हड्डी के ढाँचे से ज्यादा नहीं रह गया था। हम उम्मीद कर रहे थे कि ऊपर मौजूद लोगों को हमारी  याद आएगी और वो हमे लेने आयेंगे। हमने यह बात सपने में भी नहीं सोची थी कि ऊपर पूरी दुनिया खत्म हो चुकी होगी। सभी कुछ रेडियोएक्टिव मौत के कफन में ढका होगा। राजनीति ने सबको मौत की सजा सुना दी होगी।

ये जीव जो मुझे घेरे हुए खड़े हैं वे यह सब होता देख रहे थे। वे जानते थे कि हमारी दुनिया के साथ क्या होने वाले है। वे सौर मण्डल के दूसरे ग्रहों में बनी अपनी छोटी छोटी बस्तियों में अपने रेडियो के माध्यम से हमारे अंत को होता देखा रहे थे। उन्होंने इस त्रासद अंत को होते देख लिया था। ये लोग ऐसी विस्मयकारी  सभ्यताओं के प्रतिनिधि थे जो कि काफी ताकतवर और तकनीकी  ज्ञान से परिपूर्ण थे। इनकी जनसंख्या की तुलना में हमारी जनसंख्या एक गाँव के सामान ही थी। ये हम लोगों से काफी ताकतवर थे लेकिन तब भी उन्होंने हमारे लिए कुछ भी नहीं किया था।

“तुम लोगों ने हमे रोका क्यों नहीं? तुम हमे रोक सकते थे।” मैं चीखती हूँ।

एक खरगोश जैसे दिखने वाला जीव जो सभी की तुलना में मुझसे ज्यादा नजदीक खड़ा था ने थोड़ा सा पीछे होकर यह इशारा किया कि वो किसी और को इन प्रश्नों का उत्तर देने का अवसर देना चाहता था। पर यह करता हुआ वह कसूरवार सा लगता है और मेरे से अपनी बड़ी बड़ी और गोलाकार आँखें मिलाने से कतराता है। मुझे अभी भी कमजोरी महसूस हो रही है और चक्कर आ रहे हैं। यह चीज मुमकिन तो नहीं लगती लेकिन मुझे ऐसा अहसास हो रहा है जैसे वो मुझसे कुछ छुपा रहे हैं।
एक हिरण जैसा जीव झिझकता हुआ मेरे बिस्तर के करीब आता है कहना जारी करता है। “हमने इस विषय के ऊपर चर्चा की थी… ह..हमने मतदान किया था…” वह अपने हेलमेट में मौजूद माइक से थोड़ा तुतलाहट के साथ बोल रहा है। उसका तुतलाना शायद उसके चेहरे की बनावट के कारण है। उसकी एक थूथन है जिस पर हिरन के जैसे बड़े और मुलायम होंठ है जिन्हे देखकर लगता है जैसे कि वह भोजन के रूप में कोंपलों और मुलायम टहनियों को कुतरता हो।

“हम डर गये थे”, एक भालू जैसा दिखने वाला जीव अपनी बात हिरण जैसे जीव की बात के साथ जोड़ता है

“हमे भविष्य बहुत ही खौफनाक लग रहा था”, एक ऐसे जीव ने कहना चालू किया जिसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वह पेंगुइन जैसे किसी बड़े जीव का वंशज हो।”बहुत भयावह… तुम्हारे हथियार इतने खतरनाक थे।” कहते हुए उसके शरीर में कंपकंपी सी दौड़ जाती है।

अब वे सभी लोग एक साथ बोल रहे हैं। मेरे बिस्तर पर भीड़ लगाते हुए खड़े होकर माफ़ी मांगते हुए से मुझे कहते हैं। “मृत्यु का ऐसा तांडव। सोचकर ही मन दुखी हो जाता है परन्तु तुम लोगों को शायद इससे फर्क नहीं पड़ता था।तुम्हारे लिए यह आम सी प्रतीत होती थी।”

“हम भयभीत थे।” वो कहते हैं।

“फिर अपने गल्प में”, हिरन जैसे जीव ने तुतलाहट के साथ कहा, “,जैसा कि मैंने तुम्हारी मनोरंजन के लिए बनाई गयी मशीन में प्रसारित होते नाटको में देखा था, तुम लोग अक्सर यह दर्शाते थे कि अन्तरिक्ष में मौजूद जीवों की खोज ही तुम लोगों का युद्ध रोक सकती थी। लेकिन यह युद्ध इसलिए नही  रुकता क्योंकि तुम लोग हमे दोस्ती का प्रास्ताव लेकर आने देते या शांति  का पाठ सिखाने देते। बल्कि तुम लोग अपनी आपसी लड़ाई केवल इसलिए छोड़ते ताकि एक जुट होकर हम से नफरत कर सको। मानवजाति अपने आपसी मतभेद भुलाकर हमारे साथ एक ज्यादा भयावह युद्ध की शुरुआत कर देती हैं।”वह मिमियाता सा बोलता हुआ मुझसे अपनी नज़रें चुरा देता है।

“तुम लोग अन्तरिक्ष में आने वाले थे। हम तुम लोगों से छुपे रहने का उपाय सोचने लगे थे!”यह एक तेज रफ्तार से बोलने वाला जीव है जो कि आकार से किसी के बच्चे के समान लगता है। उसे देखने से ऐसा लगता है जैसे कि वह किसी चमगादड़ का वंशज रहा होगा। उसके बड़े नोकीले चेहरे पर हल्के भूरे रंग के रोयें हैं और बड़ी बड़ी आँखें ऐसी लगती हैं जैसे बनी ही इसलिए हैं ताकि उनसे रात को आसानी से देखे जा सके।उसके बड़े बड़े कान हैं जो कि बहुत संवेदनशील प्रतीत होते हैं। उसकी पीठ पर एक कूबड़ सा भी मौजूद है जो कि उसकी एयर सूट से साफ़ झलकता है। यह कूबड़ शायद उसके मुड़े हुए पंखों के कारण रहा होगा।”हम अपने ठिकानों को छुपाने की कोशिश कर रहे थे ताकि मानव हम लोगों के विषय में न जान पाएं और हमे ढूँढने ना आने लगे।”

वे अपने इस डर से शर्मिंदा सा महसूस कर रहे हैं क्योंकि इसी डर के कारण उन्हें अपनी सभ्यता के दयालु कानूनों को तोड़ना पड़ा। मैं उनके अन्दर जो तरस और सौम्यता देखी है उन्हें उसे रोकना पड़ा और उन्होंने हमे खुद को बर्बाद करने दिया।

मैं अब ज्यादा सजग महसूस कर रही हूँ और मुझे अब सब कुछ साफ़ साफ़ दिखाई देने लगा है। मैं अब समझ सकती हूँ कि वो लोग क्यों डरे हुए हैं।

वे शाकाहारी हैं। मुझे अब उनके आकारों का अर्थ समझ आने लगा है। विकासक्रम में घास खाने वाले, फल खाने वाले और जड़ खोदकर खाने वाले काफी जीव हुए हैं। उनके चेहरे और गर्दन का आकार उनकी इस जरूरत को पूरा करने के लिए बने हैं। उनकी बड़ी बड़ी आँखें इसलिए बनी हैं ताकि वो शिकारियों को आसानी से देख सके और वो उनसे झटपट दूर भाग सकें। उनके वंशीय इतिहास में उन्होंने कभी भी किसी को खाने के लिए मारा नहीं है। उन्हें ही या तो मारा और खाया गया है या वे भागने में सफल हुए हैं और इस कारण अपनी बुद्धिमता के कारण विकसित हुए हैं। उनके वंश के वही लोग जिंदा रहे जो कि माँसाहारी जीवों जैसे शेर, बाज और मानवों से बचकर भागने में सफल हो सके।

मैं उनके तरफ देखती हूँ तो वो व्याकुलता और शर्म से अपनी आँखें और सिर इधर उधर घुमाकर मुझसे अपनी नजरे मिलाने से कतराते हैं। खरगोश जैसा दिखने वाला जीव मेरे सबसे ज्यादा नजदीक है। मैं अपने हाथ  बढाते हुए उसे छूने का प्रयास करती हूँ क्योंकि अपने हाथ पाँव हिलाने लायक ताकतवर महसूस कर रही हूँ और इस बात से प्रसन्न हूँ। मैं उसके तरफ देखती हूँ और उससे प्रश्न करती हूँ – “क्या आप लोगों के बीच कोई माँसाहारी- यानी माँस खाने वाले जीव भी हैं?”

वह झिझकते हुए अपने होंठों को हिलाता है जैसे वह ऐसे मौके में कहे जाने लायक सही शब्दों की तलाश कर रहा हो। “हमने कभी ऐसे माँसाहारी नहीं देखे जो कि सभ्य रहे हों। हमने उन्हें अक्सर गुफाओं में, तम्बुओं में एक दूसरे से लड़ते हुए ही पाया है। कभी कभी हमने उन्हें शहरों के भग्नावेषों के बीच में लड़ते हुए पाया है लेकिन हमेशा से वो जीव असभ्य ही रहे हैं।”

भालू जैसे जीव ने एक लम्बी साँस छोड़ते हुए कहता है, “ऐसा हो सकता है कि माँसाहारी जीव जल्दी विकसित होते हैं और उनकी बौद्धिक क्षमता ज्यादा गति से विकसित होती है क्योंकि हमे या तो अक्सर रेडियोएक्टिव ग्रह ही मिले हैं जहाँ से जीवन का नामोनिशान मिट चुका है या हमे ग्रहों के ऐसे बिखरे हुए टुकड़े ही मिले हैं जिसे तुम लोग क्षुब्दग्रह घेरा कहते हो जिसे देखकर अंदाजा लगा सकते हैं कि ग्रह विस्फोट के कारण टूटकर बिखर चुका है। हमे लगता है अक्सर” उसने मुझे अनिश्चितता से देखा और शब्दों को झिझकते हुये कहा- “ह…हमे लगता है…”

“हमे तुम्हारी ही प्रजाति ऐसी मिली थी जो कि सभ्य थी और जिसका विज्ञान इतना उन्नत था कि वह अन्तरिक्ष में आने में सक्षम था।”- हिरन जैसे जीव ने भालू जैसे जीव की बात काटते हुए कहा। “हम इस बात को लेकर डरे हुए थे।”

वह अपने किसी कृत्य के लिए मुझसे माफ़ी माँगते हुए से लगे।

खरगोश जैसा जीव, जिसे देखते हुए यह लग रहा था जैसे उसे मुझसे बात करने के लिए नेता के रूप में चुना गया हो, ने कहा -”हम आपको वह सब कुछ देंगे जो आप चाहते हैं। वह सब कुछ जो हम लोग आपको देने में सक्षम हैं।”

मुझे मालूम है वह यह चीजें केवल कहने के लिए नहीं कह रहे हैं। वह इन बातों पर अमल भी करने का इरादा रखते हैं। हम बचे हुए लोगों को कई विशेषाधिकार प्राप्त होंगे। हमे सब कुछ मुफ्त में मिलेगा और हमें सभी शहरों में जाने की आज़ादी होगी। उनकी यह निष्ठा अद्भुत तो है लेकिन मुझे यह थोड़ा उलझन में भी डालती है। क्या वह किसी ऐसी चीज का पश्चताप कर रहे हैं जो उनकी नजरों में अपराध था? क्या उन्हें इस बात की ग्लानि है कि उन्होंने पूरी मानवजाति को खुद को खत्म करने दिया और इस वजह से इस ब्रह्मांड ने एक जाति की समृद्धि और सम्पन्नता को खो दिया? क्या वह खुद को इसके लिए दोषी मानते हैं? क्या यह कारण हैं कि वह इतनी उदारता से पेश आ रहे हैं?

मुझे लगता है शायद वो अब मानव जाति की दोबारा से विकसित होने के लिए मदद करेंगे। इस त्रासदी में हमारे दस्तावेज नष्ट नहीं हुए हैं। हमारा बहुत सा ज्ञान सुरक्षित है। कुछ बचे हुए लोग ही दोबारा से इस धरती पर मानव जाति को फिर से आबाद कर सकते हैं। इन शांतिप्रिय जातियों के संरक्षण में, बिना विभिन्न राष्ट्रों में बँटने के दबाव में हम लोग जाति के रूप में फिर यहाँ फलेंगे फूलेंगे। मेरा कोई भी वंशज फिर चाहे वो भविष्य की किसी भी पीढ़ी का हो फिर कभी युद्ध का आगाज़ नहीं करेगा। इस त्रासदी से हमने कम से कम यह शिक्षा तो ले ही ली थी।

इन शर्मीले जीवों को इस बात का अहसास नहीं है कि मानव जाति ने न जाने कब से शांति की चाह रखी है। उन्हें नहीं पता कि हमको न चाहते हुए भी पुरानी संस्थाओं के द्वारा मजबूर करके या धोखा देकर राजनीति के ऐसे जाल में फँसा दिया था जिसका कोई जवाब हमारे पास नहीं था। हम प्राकृतिक रूप से बर्बर नहीं रहे हैं। हममें से ज्यादातर लोगों को अगर कोई अकेले मिले तो उनके प्रति हम बर्बर नहीं होंगे। शायद उन्हें भी इस बात का अहसास है, लेकिन फिर भी उनके भीतर एक डर सा जरूर है, शायद यह डर प्राकृतिक है जो कि इसलिए पैदा होता है क्योंकि हम लोगों ने हमेशा ही उनके डरे हुए पूर्वजों का शिकार ही किया है।

मुझे यकीन है कि मानव जाति इनके लिए एक अच्छा साथी साबित होगी।मैं ज्यादा दिन भूखे रहने के कारण हुई कमजोरी से उभर रही हूँ लेकिन फिर भी मैं अपने अन्दर एक तरह की ऊर्जा महसूस कर सकती हूँ। एक ऐसी ऊर्जा जो इन लोगों के भीतर नहीं है। मेरे और मेरी जाति के बर्बरता एक रचनात्मक चीज है क्योंकि हम लोग जो पढ़े लिखे हैं अपनी बर्बरता को नियंत्रित कर सकते हैं। हम लोग इस बर्बरता का इस्तेमाल मुश्किलों और दिक्कतों से सामना करने के लिए ही करना पसंद करते हैं। हमने इससे कभी लोगों को हानि नहीं पहुंचानी चाही है। अगर कोई इन्सान मानव जाति को उसके विकासक्रम के खूनी शैशव काल से विरासत में मिली इन राजनितिक परम्पराओं से बाहर पैदा हुआ है तो उसका व्यवहार उतना ही मैत्रीपूर्ण और वह इन जीवों से मैत्री के लिए उतना ही इच्छुक होगा जितनी की मैं हूँ। मैं कभी भी इन प्यारे कोमल जीवों को नुकसान नहीं पहुँचाऊँगी।

“हम अपनी गलती की भरपाई करने के  लिए सब… मेरा मतलब है…. हम आपकी मदद करने की पूरी कोशिश करेंगे।” खरगोश जैसे दिखने वाला जीव अपनी टूटी फूटी मगर सभ्य, दोस्ताना और दया से भरी हुई अंग्रेजी भाषा में कहता है।

मैं अचानक से उठ कर बैठ जाती हूँ और आवेग से उससे हाथ मिलाने के लिए आगे बढती हूँ। अचानक से डरकर वह पीछे को कूद जाता है। सभी के सभी अपनी अपनी जगहों से पीछे हो जाते हैं। पीछे जाते हुए अपने पीछे एक नज़र मारकर यह सुनिश्चित करते है कि उनके पास भागने के लिए रास्ता है या नहीं। उनकी बड़ी बड़ी चमकीली आँखों में डर साफ दिखाई दे रहा है और वो कभी मुझे तो कभी दरवाज़े की तरफ देखते रहते हैं।

उन्हें शायद लग रहा होगा कि मैं  अभी बिस्तर से कूद कर उन पर झपट्टा मार दूँगी और उन्हें कच्चा चबा जाऊँगी। मुझे उनकी इस सोच पर हँसी आती है और मैं उन्हें आश्वस्त करना चाहती हूँ कि मुझे केवल उनकी दोस्ती की ही दरकार है कि तभी मुझे अपने पेट पर एक टीस का अनुभव होता है। मैं अपने कपड़ों के नीचे हाथ डालकर उस जगह को एक हाथ से छूती हूँ।

वह एक जख्म का निशान है जो कि अब लगभग ठीक हो चुका है।ऐसा लगता है जैसे कि मेरा एक ऑपरेशन हुआ था। यह कमजोरी जिससे मैं उभर रही हूँ वह केवल इतने दिनों तक भूखे रहने से  उत्पन्न हुई कमजोरी नहीं है।

क्षण के आधे हिस्से तक तो एक बार को तो मैं समझ ही नहीं पाती हूँ लेकिन फिर मुझे यह बात समझ में आ जाती है कि वह लोग क्यों इतने शर्मिंदा लग रहे थे। वह लोग क्यों मुझसे आँखें नहीं मिला पा रहे थे।

उन्होंने एक जाति के खात्मे का निर्णय लिया था।

जितने  भी मानव इस त्रासदी में बचे हैं उन्हें उनके आदेश से बाँझ बना दिया गया है। उन्होंने यह सुनिश्चित कर दिया है कि अब हम लोगों के मरने के बाद फिर कोई मानव नहीं होगा। मानव जाति हम लोगों के अंत के साथ ही विलुप्त हो जाएगी।

मैं जड़ हो गयी हूँ। मेरा हाथ अभी भी उस खरोगश जैसे जीव से हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ा हुआ है और मेरी आँखें उसके भाव टटोल रही हैं, और मेरे लबों पर उभरते हुए उसे आश्वस्त करते शब्द अभी भी निकलने को तैयार हैं।

क्रोध और दुःख के लिए बाद में वक्त होगा लेकिन इस वक्त मैं उनकी भावनाओं को समझ सकती हूँ।  वो शायद कुछ हद तक सही हैं।

हम माँसाहारी हैं। भक्षक हैं।

मुझे इस बात का अहसास है क्योंकि इस पल में मेरे अंदर उनके प्रति नफरत की ऐसी ज्वाला धधक रही है जिसमें जलाकर मैं उनका सर्वनाश कर सकती हूँ। मैं उन्हें कच्चा चबा सकती हूँ। 

समाप्त 

यह कहानी जब मैंने पढ़ी थी तो मुझे इसके पीछे की सोच पसंद आई थी। हाँ, मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ कि माँसाहारी जीव ही दुनिया का अंत करेंगे। मुझे लगता है धरती पर संतुलन बनाने के लिए माँसाहारी जीव होना बेहद जरूरी है। वो नहीं होंगे तो शाकाहारी जीवों की जनसंख्या इतनी बढ़ जाएगी कि वो सब कुछ नष्ट कर देंगे।इसी कारण मैंने इस कहानी का अनुवाद माँसभक्षी या माँसाहारी नहीं किया। मैंने भक्षक किया क्योंकि भक्षक वो होता है जो अपने स्वार्थ के लिए किसी का सर्वनाश कर देता हो। यह काम माँसाहारी भी कर सकता है और शाकाहारी भी। इस कहानी में भक्षक कौन थे? मानव या वो जीव जिन्होंने पूरी मानवजाति को नष्ट करने का फैसला ले लिया? यह आपको तय करना है।

यह अनुवाद आपको कैसा लगा? मुझे अपने विचारों से जरूर अवगत करवाईयेगा ताकि मैं आगे भी ब्लॉग पर ऐसे अनुवाद आपके लिए पेश करता रहूँ।

© विकास नैनवाल ‘अंजान’

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहता हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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0 Comments on “भक्षक – जी ए मोरिस की कहानी कार्निवोर का हिन्दी अनुवाद”

  1. बेहतरीन अनुवाद । इससे पूर्व भी आपके ब्लॉग पर कई कहानियां पढ़ी हैं । कहानी के प्रवाह में कहीं कोई रुकावट नही । उम्मीद है ऐसी ही और भी कहानियां पढ़ने को मिलेंगी ।

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