बुक लवर | लघु-कथा | विकास नैनवाल ‘अंजान’

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कुछ देर के लिए फोन साइड में रखकर वह एक तरफ को बैठ गया।

पर मन था कि फोन की तरफ ही लगातार जा रहा था।

उसने अपना हाथ फोन की तरफ बढ़ाया और फिर खींच लिया।

फिर उसने अपनी बगल में रखी किताब उठाई और खोल कर उस पृष्ठ पर पहुँच गया जो पिछले आधे घंटे से खुला था।

उसने किताब का एक सफ़हा पढ़ा और दूसरे पर पहुँचा। पढ़ते पढ़ते वह ठिठक गया। उसने उस सफहे पर दर्ज लिखाई को दो चार बार पढ़ा। लेखक ने जिस तरह उस बात को लिखा था वो उसके मन को भा चुकी थी। वह मुस्कराया।

उसने किताब के उस सफहे पर पहली उंगली रखकर इस तरह बंद की कि अब किताब उसके अंगूठे और उसकी दूसरी उंगली के बीच फंसी हुई थी। थोड़ी देर तक वह यूँ ही बैठा रहा।

उसने बेड से बुकमार्क उठाया और उठाकर उसे किताब के बीच रख दिया।

फिर एक नजर ऊपर चलते पंखे पर डाली।

एक बार फिर उसकी नजर फोन पर गई। कुछ देर तक फोन को तकने के बाद आखिरकार उसने एक लंबी सी साँस छोड़ी और किताब में बुकमार्क फँसाकर किताब साइड मे डाल दी। उसने फोन लपका और फट से फेसबुक खोल दिया। फिर वह किताब तक गया और उसने वह सफ़हा खोल दिया जहाँ पर बुक मार्क था। उसने पास रखे ग्लास से पेपरवेट का काम लेते हुए एक सफा दबाया और वो अंश फोन पर टाइप करने लगा जो उसे भाया था। टाइप करते हुए उसे यकीन था कि इसमें 50 लाइक और बीस कमेन्ट तो जरूर ही आएँगे। वहाँ लोग उसे एक अच्छे बुक लवर की तरह जो पहचानते थे। लाइक्स और कमेन्ट की कल्पना के चलते उसके चेहरे पर एक मुस्कराहट तैर गई।

उसने अंश टाइप किया और किताब बंद कर उसे पोस्ट कर दिया। फिर उसकी नजर नोटिफिकेशन बॉक्स पर चली गई जहाँ लाल रंग के नोटिफिकेशन उसकी राह तक रहे थे। वो नोटिफिकेशन तक गया और उसने अपने मतलब के नोटिफिकेशन देखे और उधर अपनी प्रतिक्रिया देने लगा। ये सब करते करते कब  पंद्रह मिनट गुजरे उसे भान ही न हुआ था।

अपनी इस प्रक्रिया से फारिग हुआ तो फेसबुक से बाहर निकला।

फिर उसके नजर किताब पर गई जो अभी भी उसका इंतजार कर रही थी।

उसने फोन एक तरफ रखने की सोची और किताब की तरफ एक बार हाथ बढ़ाया तो उसका बढ़ा हाथ एकदम से रुक गया।

ये अंश तो छोटा सा था। इसे ट्वीट भी तो किया जा सकता था।

ये ख्याल आते ही एक बार फिर उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ गई। लाइक्स और रीट्वीट्स उधर भी मिल सकते थे। वह उधर भी बुक लवर की तरह पहचाना जाता था।

और किताब!

वो बेचारी बेड के बगल में रखी उसका इंतजार करती रही। जैसे कि पिछले कई हफ्तों से करती हुई आ रही थी। और न जाने कितने हफ्तों तक उसे करना था।

© विकास ‘अंजान’ (24/5/2025)

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहत हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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4 Comments on “बुक लवर | लघु-कथा | विकास नैनवाल ‘अंजान’”

  1. Haha, very interesting and true. This is what I do. Whenever I read a lovely quote, I feel like sharing on Twitter. However, if the book is really engrossing, then I go back to the book.

    But yes, social media is really distracting, addictive and too time consuming. I deleted my Facebook account. Deactivated my Instagram (maybe, I’ll delete it too), but I really like Twitter. Plus I find it professionally useful, so I can't bring myself to delete my Twitter account.

    Enjoyed reading this post, wasn't expecting that. 🙂

  2. Yeah, that's the case for most of the readers right now. I too was suffering from it. More than the book my mind used to be on the comments that i would be receiving on the section that i have posted. I have found out that removing the apps from the phone does the trick. I don't have facebook on my phone so i visit it just once or twice a day when my laptop is on. Otherwise i don't go there. Glad you enjoyed the post!!

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