हाथों के साथ हमे दिमाग में मौजूद जाले भी साफ़ करने की जरूरत है

न दिनों सभी की जुबान पर एक ही नाम है कोरोना। पूरा विश्व ही इस कोरोना नामक महामारी से जूझ रहा है। भारत में भी अब 21 दिनों का लॉकडाउन शुरू हो चुका है। संघर्ष जारी है देखना है कि हम कब तक इस मुसीबत पर पूर्ण रूप से विजय प्राप्त कर पाएंगे।

भारत में पिछले हफ्ते जहाँ कोरोना चर्चा पर रहा वहीं निर्भया मामला भी चर्चा के केंद्र में रहा। इस लेख में मैंने दोनों के ऊपर बात करूँगा।

सबसे पहले निर्भया की बात करें तो भले ही कछुए की गति से लेकिन आखिरकार इन्साफ हुआ। 20 मार्च को लगभग आठ साल बाद गुनाहगारों को सजा हुई। अपराधियों ने चूहों की तरह कानून में मौजूद छेदों से बचने की कोशिश जरूर की लेकिन वह आखिरकार अपने कर्मों की सजा  पा ही गये। एक माँ की लड़ाई का अंत हुआ।


लेकिन इस मामले से हमे कुछ चीजें सीखनी होगी। एक दुर्दांत अपराधी  केवल इसलिए छूट गया क्योंकि वो उस वक्त व्यस्क नहीं था। व्यस्क होने के लिए उसे केवल कुछ महीने शेष थे। सबसे पहले तो इसी चीज को देखने की जरूरत है। अगर अपराध जघन्य है तो मुझे लगता है उस व्यक्ति को एक व्यस्क की तरह ही देखा जाये। उसे कैद में तो कम से कम रखा जाए। वही जो व्यस्क अपराधी थे उन्होंने भी कानून में मौजूद इन छेदों से बचने की भरपूर कोशिश की। इसको देखते हुए  इन छेदों को बंद करने की पहल करनी होगी जिनके माध्यम से इन अपराधियों ने अपनी सजा को इतनी देर तक लटकाए रखा।  यह नहीं हुआ तो जनता हैदराबाद जैसे न्याय को माँगने लगेगी जिसके परिणाम आगे चलकर भयावह हो सकते हैं।

इसके आलावा हमे दिमाग में मौजूद गंदगी भी साफ़ करनी होगी। मैं निर्भया को इन्साफ मिलने से खुश था जब अपराधियों के अधिवक्ता का एक बयान मेरी नजरों से गुजरा। उस विडियो में वह निर्भया के चरित्र पर ऊँगली उठाते दिखते हैं क्योंकि वो रात को अपने मित्र के साथ घूमकर लौट रही थीं। यह हमारे समाज की बहुत पुरानी रवायत रही है। उनकी उस बात से मुझे उस धोबी की याद आ गयी जिसने सीता माँ के चरित्र पर ऊँगली उठाई थी। वकील साहब शायद पढ़ लिख कर ही वकील बने होंगे लेकिन उनके इस कथन से यह साबित हो जाता है कि पढ़ने लिखने से ही जाहिलपना नहीं जा सकता। अगर कोई व्यक्ति बाहर घूम रहा है तो अपराधियों को आप यह कहकर नहीं छोड़ सकते कि वो रात को क्यों घूम रहा था। वह व्यक्ति घूमने के लिए स्वतंत्र है। आप अपराधियों का यह कहकर बचाव नहीं कर सकते हैं क्योंकि वो बाहर थी तो उसका चरित्र खराब है और इसलिए अपराधियों को लाइसेंस है उसके साथ कुछ भी करने का। सोचिये जब एक पढ़ा लिखा व्यक्ति ऐसी बात करता है तो समाज में यह कुत्सित सोच कितने गहरे तक व्याप्त होगी कि स्त्री बाहर है तो मतलब चरित्रहीन है।

निर्भया एक व्यस्क थी उसका अधिकार था वह किसी के भी साथ कितने भी वक्त तक घूमे। वह उसका व्यक्तिगत मामला था। इतनी सी बात समझने के लिए पढ़ाई लिखाई की भी आवश्यकता नहीं होती है लेकिन न जाने हम कब यह बात समझने लायक होंगे। लड़की बाहर घूम रही है तो उसके चरित्र पर ऊँगली उठाना मेरी नजर में एक नम्बर का जाहिलपना है। आप वकील हैं, आपने किसी की पैरवी कर रहे हैं आप कीजिये लेकिन अक्ल की बात कीजिये। हमे यह बात समझने में न जाने कितनी सदियाँ गुजरेंगी की स्त्रियों की मर्जी का सम्मान होना चाहिए। उस वकील के शब्दों से दुःख हुआ था लेकिन एक दिलासा भी मिला कि उधर मौजूद एक महिला ने उसका प्रतिरोध किया था। ऐसा प्रतिरोध होना जरूरी है। वहाँ मौजूद पत्रकारों द्वारा और अन्य व्यक्तियों द्वारा भी प्रतिरोध करना चाहिए था।

देश में दूसरा मामला जो छाया हुआ है वह कोरोना वायरस का प्रकोप है। पूरा विश्व इससे जूझ रहा है। जान और माल दोनों ही काफी हानि हो चुकी है। पर इसे लेकर हमारे लोगो की हरकतों की जैसी खबरे आयीं उन्हें देखकर समझ न आया कि इन अक्ल के दुश्मनों की हरकत देखकर क्या प्रतिक्रिया दूँ। एडवाइजरी जारी हो गयी हैं और सरकार द्वारा सभी को यह सूचित भी किया गया है कि क्या करने से बचाव हो सकता है। बार बार हाथ धोएं। खाँसते हुए चेहरे को ढंके। भीड़ भाड़ में न जाए। यह बिमारी सम्पर्क में आने से फैलती है तो अगर आप बाहर से आये हैं तो खुद को अलग रखें। सेल्फ क्वारंटाइन करें। यह सब ऐसी मामूली बातें है जो बच्चे को भी समझ आ जाएगी। कुछ  भी कठिन नहीं है। लेकिन जैसी खबरे और लोगों हरकतें देखने को मिल रहे हैं उससे लगता है इंसानी दिमाग में जाले इतने लग गये हैं कि सबसे पहले एक  सैनीटाईजर इन्हें ही साफ करने के लिए लाना पड़ेगा। पढ़े लिखे लोग बाहर से आकर सुरक्षाकर्मियों को छकाकर भाग रहे हैं। उन्हें अकेला रखने को बोला जा रहा है लेकिन वो लोगों से घुल मिल रहे हैं। इसमें एक गायिका का नाम भी आया है लेकिन वह भी उन्ही पढ़े लिखे लोगों की जमात में शामिल हैं जो ये हरकत कर रहे हैं। क्योंकि वो प्रसिद्ध हैं तो इसलिए नाम उभर कर आ गया। इससे यह भी जाहिर होता है कि पैसे और प्रसिद्धि से अक्ल नहीं आती।

मेरे घर, उत्तराखंड, से भी ऐसी ही खबरे आ रही थी।  लोग पुणे बेंगलुरु राजस्थान इत्यादि से घर आ रहे थे। अब  जहाँ से वो आये हैं न जाने वहाँ से क्या क्या लेकर आये होंगे। उम्मीद है कुछ न लेकर आये हों।

बेवकूफियाँ यही नहीं थमी हैं। अब कुछ बेवकूफ लोग उत्तर पूर्वी भारतीयों को कोरोना कोरोना कहकर प्रताड़ित कर रहे हैं। उनसे बेहूदगी कर रहे हैं। नस्लभेद किस हद तक हमारे अंदर व्याप्त है यह दिखा रहे हैं। कई लोग तो इसे सकरार की साजिश बताकर अलग से बेवकूफी कर रहे हैं। अभी हमे अक्ल से काम लेने की जरूरत है। लेकिन न जाने अभी कितनी और बेवकूफी देखने को मिलेगी। इस तरह की बेवकूफियों से बचें।

अभी के लिए तो इतना ही कहूँगा कि घर में रहिये सुरक्षित रहिये। एडवाइजरी जारी हो गयी है। 21 दिन का लॉक डाउन है। उसका सख्ती से पालन कीजिये। उम्मीद है कि हम इस मुश्किल घड़ी से उभर जायेंगे।

हमारे पास ये इक्कीस दिन हैं। आत्ममंथन कीजिये। हाथ तो साफ कीजिये ही लेकिन यह भी सोचिये कि किस तरह  दिमाग के जाले भी साफ किये जाये। ऐसा होना जरूरी है। न हुआ तो कोरोना से तो हम बच जाये लेकिन समाज में जो जहर हमने घोला हुआ है उनसे न बच पाए।

धैर्य रखिये, सोचिये,समझिये, विचारिये। अफवाहें फैलाने से बचिए। जिस बात की सत्यता न पता हो वो आपके सोच और पूर्वाग्रह को कितना भी पोषित करती हो उसे आगे न बढ़ाये।  अगर ऐसी कोई अफवाह आप तक आती भी है तो उसे अपने तक ही रोक कर रखिये। समाज को कोरोना और अफवाहें दोनों से ही बचाने की आवश्यकता है। साथ कोशिश करेंगे तो यह मुमकिन है।

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© विकास नैनवाल ‘अंजान’

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहत हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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0 Comments on “हाथों के साथ हमे दिमाग में मौजूद जाले भी साफ़ करने की जरूरत है”

  1. बिलकुल सही बिन्दु उठाए आपने इस लेख में .जहाँ भी हैं सजग रहिए व ध्यान रखिये अपना भी और स्वजनों का भी .

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