शब्द निकले/ मन के कोने से ऐसे/ चन्द्र बदरी से जैसे

शब्द निकले
मन के कोने से ऐसे
चन्द्र बदरी से जैसे
कभी दिखे
कभी छुपे
तड़पाये मुझे कुछ ऐसे  
नटखट शिशु हो जैसे
शब्द निकले
मन के कोने से ऐसे
चन्द्र बदरी से जैसे 
मैं जाऊँ तलाश में
तो पा न पाऊँ उन्हें
जो बैठ करता रहूँ कोई काम
तो वो चले आएं
अचानक मिलने कुछ ऐसे
हों भूले बिसरे मित्र मेरे जैसे
शब्द निकले
मन के कोने से ऐसे
चन्द्र बदरी से जैसे
पा जाऊँ इन शब्दों को
तो मिले वो खुशी
मैं जाऊँ झूम
 मुस्कराऊँ कुछ ऐसे
मिली  कोई सम्पदा हो जैसे
शब्द निकले
मन के कोने से ऐसे
चन्द्र बदरी से जैसे
© विकास नैनवाल ‘अंजान’

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहत हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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