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हो मुझसे अलग, यह तुम्हारा एक वहम है,
करोगे गौर तो पाओगे, फर्क बहुत कम है
रंग,भाषा,देश,भेष हो भले ही जुदा-जुदा
है खुशी एक सी, एक सा अपना गम है
हैं जख्म कुछ तेरे, कुछ जख्म हैं मेरे भी
प्यार-मोहब्बत ही इन जख्मों का मरहम है
हो बानी1 इस दुनिया के, तुम ही ‘अंजान’
चाहो तो जन्नत यहीं,गर चाहो तो जहन्नम है
विकास नैनवाल ‘अंजान’
1.बानी : बनाने वाला,
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© विकास नैनवाल ‘अंजान’
अद्भुत !! जीवन दर्शन पर बहुत भावपूर्ण भावाभिव्यक्ति।
जी आभार….
जी चर्चा अंक में मेरी रचना को शामिल करने के लिये हार्दिक धन्यवाद…
वाह
जी आभार….
उम्दा प्रस्तुति ।
जी, बेहद शुक्रिया।
वाह क्या बात है। बहुत ख़ूब नैनवाल जी।
सुंदर रचना।
जी आभार…
वैसे तुझ में मुझ में कुछ फर्क ही नहीं तू निर्मल में सामल हूं बस .. वाह अद्भुत।
जी आभार…..
आपकी इस रचना पर देर से आया मगर दुरूस्त आया विकास जी । पता नहीं था आपकी इस प्रतिभा का । बहुत अच्छी, बहुत सराहनीय प्रस्तुति । ग़ुलाम-ए-मुस्तफ़ा फ़िल्म का एक बहुत अच्छा गाना याद आ गया इसे पढ़कर – तेरा ग़म मेरा ग़म, इक जैसा सनम; हम दोनों की एक कहानी ।
जी आभार सर….
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१९-१२-२०२०) को 'कुछ रूठ गए कुछ छूट गए ' (चर्चा अंक- ३९२०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी