उग आया टहनियों पर, आफताब हो जैसे

उग आया टहनियों पर आफताब हो जैसे
उग आया टहनियों पर आफताब हो जैसे
दिखता है वो, एक ख्वाब हो जैसे
उग आया टहनियों पर,  आफताब हो जैसे

आये छत पर, तो हो जाते खुश इस तरह
 उतर आया जमीं पर महताब हो जैसे
झटकना गेसुओं का, होना यूँ सुर्ख गालों का
मेरी  इकरार ए मोहब्बत  का जवाब हो जैसे  
करके सीना जोरी लूट खसोट यूँ इतराने लगा वो 
पाया है उसने कोई बड़ा खिताब हो जैसे
चेहरे पर हँसी और दोस्तानी फितरत, ‘अंजान’
देखूँ, तो लगे पहना कोई  नकाब हो जैसे
© विकास नैनवाल ‘अंजान’

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहत हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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