बुढ़िया के बाल | हिन्दी कविता | बाल कविता

बुढ़िया के बाल | हिन्दी कविता | विकास नैनवाल 'अंजान'
Image by Amol Sharma from Pixabay 
नोट:  मुझे बुढ़िया के बाल हमेशा से ही पसंद रहे हैं। बचपन में भी यह पसंद आते थे और आज भी बहुत पसंद आते हैं। मुझे याद है जब बचपन में घंटी बजाते हुए भैया बुढ़िया के बाल बेचने आते थे तो मैं काफी उत्साहित हो जाता था। इसी उत्साह को मैंने इस रचना के माध्यम से दर्शाने की कोशिश की है। 
योगेश मित्तल
लेखक: योगेश मित्तल
यहाँ पर मैं यह भी बताना चाहूँगा कि मैंने ‘बुढ़िया के बाल’ कविता लिख तो दी थी लेकिन इससे संतुष्ट नहीं था। कुछ चीजें थी जो मुझे खटक रही थीं लेकिन मेरे पकड़ में नहीं आ रही थी।  इसलिए आखिरकार मैंने यह कविता श्री योगेश मित्तल जी को सम्पादन के लिए दी और उनके द्वारा सम्पादित होकर जब यह कविता निकली तब इसका रंग रूप कुछ और ही था। यह बहुत निखर चुकी थी।
मैं कविता को सम्पादित करने के लिए योगेश मित्तल जी का दिल से आभारी  हूँ।
योगेश मित्तल जी का पूरा परिचय निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
योगेश मित्तल जी कविता, संस्मरण, लेख इत्यादि नियमित रूप से लिखते रहते हैं। उनकी रचनाएँ उनके ब्लॉग प्रतिध्वनि पर पढ़ी जा सकती हैं। योगेश जी के ब्लॉग का लिंक:
दुई बात में योगेश मित्तल द्वारा लिखी हुई या सम्पादित रचनाएँ:
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बुढ़िया के बाल

फेरी  वाले  भैया  हैं आये
देखो देखो हैं भैया आये ! 

साथ में देखो, क्या वो लाये,
बुढ़िया  के  बाल  वो  लाये !
घंटी बजा कर दी आवाज,
बच्चों, क्या मैं लाया आज!
खाओगे तो होगे खुशहाल!
लाया मैं  बुढ़िया  के बाल!
चिंटू   दौड़ा  दौड़ा  आया,
देख भैया को वह मुस्काया!
पूछा,  कितने  के  हैं  बाल?
पाँच रुपये के हैं – मेरे लाल!
चिंटू  गया  मम्मी  के  पास,
बोला – लगा मम्मी से आस!
मम्मी   दे   दो   पाँच  रुपैय्या,
बुढ़िया का बाल होता है बढ़िया !
बुढ़िया  के  बाल  हैं भैया लाये,
देख-देख   मेरा   मन   ललचाये!
मम्मी ने किया पैसे देने से इन्कार
बोलीं – खाकर  होंगे  दाँत  बेकार!
अब  चिंटू जी   थोड़ा   घबराये,
सोचा, कैसे बुढ़िया के बाल पायें!
तभी  निकले  कमरे  से  पापा,
देख चिंटू ने उन्हें – रास्ता नापा!
पापा   ने   अखबार   उठाया,
फिर  कुर्सी  पर  डेरा  जमाया!
चिंटू   पहले   तो   घबराया,
फिर वो फटाफट सामने आया!
“पापा पापा, मेरे अच्छे पापा,
देखो फेरीवाले  भैया हैं आये ! ||
मेरी पसन्द की चीज वो पापा
बुढ़िया   के   बाल   हैं   लाये !
दे दो  आप  मुझे  पाँच  रुपैय्या,
बुढ़िया का बाल होता है बढ़िया !
पापा ने पहले अखबार गिराया,
देखा मम्मी को – फिर समझाया!
सुनो   प्यारे   बेटा   चिंटू  राम,
आज  दाँतों को – दो तुम आराम!
नहीं मिलेगा तुम्हें कोई रुपया,
चाहें हो – बुढ़िया का बाल बढ़िया!
यह  सुन  –  चिंटू राम  दुखियाये
अब  बुढ़िया  के  बाल कैसे पायें?
तभी दिमाग में आया एक ख्याल
अब तो मिलेगा, बुढ़िया का बाल!
चिंटू  अब  सरपट – सा भागा,
दादी को देख, आनंद था जागा !
दादी – दादी, मेरी  प्यारी  दादी,
दे दो  –  मुझ को पाँच  रुपैय्या !
बुढ़िया का बाल  मुझे  खाने  हैं,
लाये हैं – बाल,  फेरीवाले  भैया!
दादी,  मेरी प्यारी प्यारी दादी,
सबसे ज्यादा तुम करती हो प्यार!
और  सभी  मुझे  टाल  देते  हैं,
बस तुम ही करती हो खूब दुलार !
कर दो दादी मुझ पर अहसान,
रख लो तुम मेरी इच्छा का मान !
दादी ने चिंटू का गाल सहलाया,
फिर उसको पाँच रुपया पकड़ाया!
रुपया   पा  –  चिंटू   मुस्कुराया
अब मिलेगा मुझे बाल, चिल्लाया!
रुपया  लेकर, चिंटू  बाहर  आया,
मगर  बाहर  भैया  को  न  पाया!
चिंटू जी,  इधर – उधर भी भागे,
भैया  चले गये थे  – कहीं  आगे!
 कैसे मिले अब बुढ़िया का बाल,
 सोचकर हुआ चिंटू का बुरा हाल!
होकर  हताश  चिंटू  घर आया,
कोने में जाकर उसने बैग उठाया!
करूँ पढ़ाई  –  उसने यह सोचा,
फिर निकाली थी  एक किताब!
तभी आई उसको एक आवाज
उसे लगा – जैसे देखा हो ख्वाब!
आओ प्यारे बेटा — मेरे चिंटू राम
किधर हो तुम, क्या करते हो काम!
देखो – देखो,  कौन   है   आया
क्या   वह  तुम्हारे  लिए  है लाया!
चिंटू था गुमसुम, था वह परेशान
लगा अब दादाजी भी खायेंगे कान!
करके किताब बंद चिंटू बाहर आया,
दादाजी को उसने मुस्कराता पाया!
क्या हुआ दादा जी, क्यों लगाई आवाज?
आज प्यारा चिंटू है सभी से नाराज!
दादाजी ने अब चिंटू को उठाया,
बोले – देखो, मैं क्या हूँ लाया!
चिंटू राम ने जब दादाजी को देखा,
गुस्से को झट उसने बाहर को  फेंका!
बोला- दादा जी आपने किया कमाल,
ला दिये मुझे बढ़िया बुढ़िया  के बाल!
चिंटू राम अब खुश बहुत ज्यादा,
कहते हैं – सबसे अच्छे मेरे दादा !

– विकास नैनवाल ‘अंजान’, सम्पादक: योगेश मित्तल

© विकास नैनवाल ‘अंजान’

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहत हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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0 Comments on “बुढ़िया के बाल | हिन्दी कविता | बाल कविता”

  1. बहुत ही बढ़िया कविता है। हम लोग बचपन मे बुढ़िया के बाल को बम्बइया मिठाई कहते थे।

  2. वाह!!
    बुढ़िया के बाल पर कविता । गुलाबी रेशेदार मीठे गुच्छे को बुढ़िया के बाल क्यों कहते हैं ? यह प्रश्न ही रहा यन में… लाजवाब सृजन । बचपन की यादें ताजा हो गई कविता पढ़ कर ।

  3. जी हमारे यहाँ इन्हें गुड़िया के बाल भी कहते थे…..वैसे ये शुरुआत में सफेद रंग के आते थे जो कि दिखने में बुढ़िया के बालों जैसे लगते हैं….शायद इसीलिए इन्हें यह नाम दिया गया हो….आभार

  4. आपकी कविता मुझे बचपन में लेकर चली गई,मुझे भी बहुत पसंद था ये "बुढ़िया के बाल"
    एक बार मेरे साथ बिलकुल ऐसा ही हुआ था
    बहुत सुंदर बचपन को याद दिलाने वाली कविता।
    अब ये नजारा कहा देखने को मिलता है

  5. वाह ! बचपन में ले गई कविता।
    वैसे मैं तो ये बुढ़िया के गुलाबी गुलाबी बाल और लाल पीले बर्फ के गोले खाने का मौका मिलता है तो आज भी नहीं छोड़ती।
    और उनसे वो जो गुलाबी रंग आता है ना ओठों पर वह दुनिया की किसी लिपस्टिक से नहीं आ सकता।

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