मनुष्य से पहले: O से Opabinia

 

इस शृंखला में मैंने अभी तक जितने जीवों के विषय में बताया है उनमें से ज्यादातर मेरा फोकस उन जीवों पर रहा है जो कि विशालकाय होते थे। यह इसलिए भी रहा है क्योंकि विशालकाय जीव रोमांचक होते हैं और एक तरह की उत्सुकता रहती है उन्हें लेकर। लेकिन आज मैं एक ऐसे जीव के विषय में बताना जा रहा हूँ जो विशालकाय न होकर बहुत ही छोटा सा था। ऐसा इसलिए भी क्योंकि हमें ये पता होना चाहिए कि धरती में मनुष्यों से पहले जितने जीव थे वो विशालकाय ही नहीं बल्कि आम आकार के भी होते थे। हाँ, कुछ अजीब जीव भी उस वक्त होते थे। ऐसा ही एक जीव था ओपाबिनिया (Opabinia) और यह भी जल में ही रहता था। पहले इस जीव पर एक नजर मार लीजिए फिर आगे की बात करेंगे। 
मनुष्य से पहले: O से Opabinia
ओपाबिनिया, स्रोत: फ़रमैन यूनिवर्सिटी

क्या थे ओपाबिनिया (Opabinia)?

ओपाबिनिया (Opabinia) कोमल शरीर वाले जीव होते थे जो कि आज से 50 करोड़ साल पहले तक धरती पर पाये जाते थे। यह 7 सेंटीमीटर (3 इंच) तक लंबे होते थे। इसकी पूँछ में पंख जैसे फ्लैप होते थे। वहीं  इसके सिर पर पाँच आँखें, दो सिर के आगे हिस्से में, एक बीच में और दो सिर के पिछले हिस्से में, होती थी और इसका मुँह सिर के नीचे पीछे की तरफ होता था। इनके मुँह से एक सूंड निकली रहती थी जिसके अंत में दो पंजे होते थे जिससे वह चीजों को पकड़ सकते थे। 
ऐसा भी कहा जाता है कि यह जीव इतने अजीब दिखते थे कि जब पहली बार हैरी बी व्हिटिंगटन (Harry B. Whittington), वो वैज्ञानिक जिन्होंने 1966-67 में इनका एक जीवाश्म ढूंढा और इसके बारे में विस्तृत तौर पर लिखा, जब लोगों को अपने विश्लेषण के विषय में बता रहे थे तो वो लोग भी इस अजीब से जीव के विषय में जानकर हँस गए थे। 
 

कहाँ पाये जाते थे ओपाबिनिया (Opabinia)?

ओपाबिनिया (Opabinia) के जीवाश्म कनाडा के ब्रिटिश कोलम्बिया में पाये गए हैं। वहीं वैज्ञानिकों का मानना है कि यह जीव सागरतल में पाये जाते थे जहाँ ये अपनी सूंड से छोटे छोटे कोमल शरीरों वाले जीवों का भक्षण करते थे। 
 तो यह थी ओपाबिनिया (Opabinia) के विषय में कुछ जानकारी। उम्मीद है इस अजीब से जीव से मिलकर आपको अच्छा लगा होगा। 
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About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहता हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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