गाँव चलूँगा…! | हिंदी कविता | योगेश मित्तल

गाँव चलूँगा...! | हिंदी कविता | योगेश मित्तल

वरिष्ठ लेखक योगेश मित्तल की पहली कविता व कहानी 1964 में कलकत्ता के सन्मार्ग में प्रकाशित हुई थी। तब से लेकर आजतक वह लेखन क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं। कविता, संस्मरण, लेख इत्यादि नियमित रूप से लिखते रहते हैं। लोकप्रिय साहित्य भी उन्होंने कई छद्दम नामों से लिखा है।

हाल ही में लोकप्रिय साहित्य पर उनकी लिखी पुस्तकें प्रेत लेखन का नंगा सच और वेद प्रकाश शर्मा: यादें, बातें और अनकहे किस्से पाठकों को काफी पसंद आई हैं। (पुस्तकों के नाम पर क्लिक करके पुस्तकों को खरीदा जा सकता है।)

अब  वह अपनी रचनाएँ फेसबुक,ब्लॉग इत्यादि पर लिखते रहते हैं।

आज दुई-बात पर पढ़िए उनकी कविता ‘गाँव चलूँगा’


बचपन में मुझे भी देहरादून के निकट ‘हर्रावाला’ और बड़ौत के निकट ‘बड़का’ गाँव में कुछ दिन बिताने का अवसर मिला था। उन दिनों गाँव में बिताए क्षणों की याद आज भी ताजा है।

आज जब बहुत से लोग गाँव से शहर की ओर पलायन कर रहे हैं! मेंरी उपरोक्त पंक्तियाँ गाँव की महत्ता जताने की छोटी सी कोशिश है।

मेरी ख्वाहिश है कि हमारे गाँव प्रगतिशील बनें! वहाँ की सड़कें, रास्ते और सुविधाएँ शहरों से कमतर न हो, लेकिन बरकरार रहे गाँव की वह आत्मा, जिसकी मीठी मीठी याद और हरियाली तथा अपनेपन की खुश्बू आज भी लोगों के दिलों को जीतने का क्षमता रखती है।

गाँव चलूँगा…!

 अब मन लगता नहीं शहर में,
अब  मैं   यारों   गाँव  चलूँगा!
मखमल जैसी हरी  घास पर,
नंगे  –   नंगे    पाँव   चलूँगा!

मिट्टी  की   सोंधी  खुश्बू  से,
मन उपवन – सा खिल जायेगा!
कदम  जिधर भी  ले जाएँगे,
कोई   अपना    मिल   जायेगा!

शोर-शराबा, धक्कम-धुक्की,
रोज़   किसी  से  झगड़ा-रगड़ा!
गाँव में यह सब न होगा,
नहीं  किसी  से  होगा  लफड़ा।

हरे – भरे  पेड़ों  के  नीचे,
ठण्डी – ठण्डी छाँव चलूँगा!
अब मन लगता नहीं शहर में,
अब  मैं   यारों   गाँव  चलूँगा!

मखमल जैसी हरी  घास पर,
नंगे  –   नंगे    पाँव   चलूँगा!

कोई भाई, कोई काका-चाचा
कोई ताऊ कोई दादा होगा।
होंगी बहन, भौजाई, अम्माँ
जीवन सीधा-सादा होगा।

कहीं महकती होगी सरसों
कहीं बगीचा होगा फूलों का!
कहीं फलों से लदे पेड़ पर
बच्चे लेते मज़ा झूलों का।

गाँव को सब समझें – जाने,
अब  मैं  ऐसे  दांव  चलूँगा!
अब मन लगता नहीं शहर में,
अब मैं यारों गाँव चलूँगा!

मखमल जैसी हरी घास पर,
नंगे –  नंगे  पाँव   चलूँगा!

योगेश मित्तल

 


लेखक परिचय
योगेश मित्तल

योगेश मित्तल जी का विस्तृत परिचय
योगेश मित्तल

उनकी रचनाएँ उनके ब्लॉग प्रतिध्वनि पर पढ़ी जा सकती हैं। योगेश जी के ब्लॉग का लिंक:

प्रतिध्वनि

योगेश मित्तल जी की पुस्तकें अमेज़न पर उपलब्ध हैं। निम्न लिंक पर क्लिक करके उन्हें खरीदा जा सकता है:

  1. प्रेत लेखन का नंगा सच
  2. वेद प्रकाश शर्मा: यादें, बातें और अनकहे किस्से

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहता हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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29 Comments on “गाँव चलूँगा…! | हिंदी कविता | योगेश मित्तल”

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार 4 सितम्बर, 2022 को     "चमन में घुट रही साँसें"   (चर्चा अंक-4542)  (चर्चा अंक-4525)
       
    पर भी होगी।

    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

  2. माटी की खुशबू से लबरेज़ भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
    आभार आपका सुंदर कविता पढ़वाने के लिए।
    सादर।

  3. गाँव को सब समझें – जाने,
    अब मैं ऐसे दांव चलूँगा!
    अब मन लगता नहीं शहर में,
    अब मैं यारों गाँव चलूँगा!
    मखमल जैसी हरी घास पर,
    नंगे – नंगे पाँव चलूँगा!///
    हे उत्तम स्वपन दृष्टा कविराज! आपका ये स्वपन पूरा हो।पलायनवादी संसार के मृगमरीचिका में खोये कदम जिस दिन अपने गाँव की तरफ लौटेंगे,वह दिन सृष्टि का सबसे सुन्दर दिन होगा।हार्दिक आभार और नमन सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए 🙏🌺🌺

  4. वाह!!!
    बहुत ही सुंदर एवं भावपूर्ण कविता आदरणीय मित्तल जी की ।
    बहुत बहुत धन्यवाद आपका इतनी सुंदर रचना शेयर करने हेतु ।

  5. मित्तल जी की कविता बहुत ही प्यारी है। लेकिन अब शायद ऐसा गांव सिर्फ कल्पना, कविताओं और कहानियों में मिलेगा।

  6. योगेश मित्तल जी के परिचय के साथ उनकी सहज सरल प्रवाह लिए सुंदर भाव प्रवण रचना मन लुभा गई।
    सुंदर।

  7. जी तुलनात्मक रूप से देखें तो आज भी शहर से अधिक मिल जाएगा। वैसे अगर आप शरत चंद्र जी की देहाती समाज पढ़ें तो उसमें जो उन्होंने गांव का खाका खींचा है उससे ज्यादा जुदा हालात नहीं है।

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