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भात
न होता तो
न मालूम होता मुझे
तृप्ति का अर्थ,
भात
न होता
तो न मालूम होता मुझे
संतुष्टि का अर्थ
पर क्योंकि
भात है
तो मैं सो पाता हूँ
तृप्त होकर
संतुष्ट होकर
मुझे बचपन से ही रोटी खानी पसन्द नहीं है। वहीं अगर तीनों टाइम भात खाना हो तो मुझे उसमें कोई दिक्कत नहीं होती है। मुझे मज़ा ही आता है। कितना भी फैंसी खाना क्यों न खा लो लेकिन भात खाने से जो तृप्ति और संतुष्टि मिलती है वो किसी और चीज को खाकर नहीं मिलती।
कभी किसी कारणवश मुझे भात खाने को नहीं मिल पाता तो उस दिन मुझे ऐसा लगता ही नहीं है कि मैंने कुछ खाया होगा। पेट तो भरा रहता है लेकिन वो संतुष्टि और वो तृप्ति मन में नहीं रहती है। इसी भावना को ऊपर लिखी पंक्तियाँ दर्शाती हैं।
आपके लिए ऐसा कौन सी चीज है जो अगर आप दिन में न खायें तो आपको लगता है कि आपने कुछ खाया ही नहीं है? आपको वो तृप्ति वो संतुष्टि नहीं मिलती है।
सोचकर देखें तो ज्यादातर ज़िन्दगी की सबसे बड़ी खुशियाँ सबसे सरल चीजों में ही मिल जाती हैं। हम बिना मतलब इधर से उधर मारे मारे फिरते हैं। खुशियाँ इकट्ठा करने के चक्कर में खुश होने के मौके ही नजरअंदाज कर देते हैं। उन्हें महसूस ही नहीं कर पाते हैं।
©विकास नैनवाल ‘अंजान‘
होती है सब की पसन्द भी अपनी अपनी खाने के मामले में…बहुत साफगोई से अपनी खाने से संबंधित मन की खुशी का बयान सरलता से किया है आपने ।
जी शुक्रिया।
हहहहह… अच्छी बात है। भात खाने की संतुष्टि का आनंद ही कुछ और है।
विकास भाई,सही कहा आपने कि छोटी छोटी चीजों में भी खुशी ढूंढने से ही जीवन आनंदमय होता हैं।
जी आभार।
जी शुक्रिया।