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ज़िन्दगी
अजनबी
दोस्त होते गए
दोस्त
अजनबी होते गए
कभी
दोस्त अजनबी से लगे
कभी
अजनबी दोस्त से लगे
और मैं
करता रहा असफल कोशिश
पहचानने की
कौन है दोस्त और कौन अजनबी
जो थे साथ
उन्हें चले जाने दिया
उनके लिए
जो नहीं रहना चाहते थे साथ
और
रह गया निपट अकेला
जैसे
रह जाता है शरीर
आत्मा
के निकल जाने के बाद
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 13 जनवरी 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है…. "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा….धन्यवाद!
सांध्य दैनिक मुखरित मौन में मेरी रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार,मैम….
सुन्दर सृजन
जी आभार
सुन्दर प्रस्तुति।
मकर संक्रान्ति का हार्दिक शुभकामनाएँ।
जी आभार…. आपको भी मकर संक्रान्ति की हार्दिक बधाई….
कभी दोस्त अजनबी तो कभी अजनबी दोस्त..यही जीवन है और इसका सफर अनवरत इसी तरह चलता है अपनी धुरी पर । हृदयस्पर्शी सृजन।
जी आभार….