रोटी, पराठे और बचपन

भारतीय घरों की बात की जाए तो खाने में रोटी का एक महत्वपूर्ण स्थान है। नाश्ता हो, दिन का खाना या फिर रात का खाना। अधिकतर घरों में रोटी बनने की संभावना अधिक रहती है। पर मैं अपनी बात करूँ तो मुझे बचपन से ही रोटी इतनी पसंद नहीं रही है। पराठे रोटी से बेहतर लगते हैं और पूरियाँ पराठों से बेहतर। पर असल में चावल वो चीज है जो मैं तीनों टाइम बिना किसी शिकायत के खा सकता हूँ। सच बताऊँ तो पता नहीं क्यों रोटी हो या पराठे या पूरियाँ, इन्हें खाकर पेट तो भरता लेकिन तृप्ति का अहसास चावल खाकर ही होता है। यही कारण है कि जब मैं अकेले रहने गया तो रोटी खाना लगभग मैंने बंद ही कर दिया। ऐसा नहीं है कि रोटी बनानी नहीं आती मुझे। मुझे रोटी बनानी भी आती है और अक्सर चावल दाल की तुलना में देखा जाए तो अकेले व्यक्ति के लिए रोटी बनाना ज्यादा आसान होता है। सर्दियों के दिनों में तो आटा गूँथ के रख दो। और जब मन करे तवा चढ़ाओ और बना दो। पर सच बताऊँ फिर भी मैं चावल ही बनाना पसंद करता था। कॉलेज के वक्त तो मैं फिर भी आटा घर ले आता था लेकिन जब जॉब लगी तो तब तो आटे से किनारा ही कर दिया। तब आटा घर में तभी आता था जब घरवाले आते थे।

अब शादी के बाद की बात की जाए तो चूँकि पत्नी जी को रोटी पसंद है तो आटा आता है। पर तब भी मैं रोटी न के बराबर ही खाता हूँ। हाँ, पराठे महीने में एक आध बार खा लेता हूँ।

लेकिन अगर मैं अपने बचपन का देखूँ तो क्योंकि उस वक्त रोटी खानी पड़ती थी तो ऐसे कुछ तरीके होते थे जिस तरह से मुझे रोटी खानी पसंद आती थी। काफी समय से मैंने इस तरह रोटी नहीं खायी लेकिन मुझे पता है कि अगर कभी खाऊँगा तो इसे खाना बुरा नहीं लगेगा। ये तरीके थे:

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दूध रोटी

बचपन की बात करूँ तो उस समय रोटी से ज्यादा जो चीजें मुझे नापसंद होती थी वो होती थी सब्जी। मैं चुनिंदा सब्जी ही खाता था। जैसे कि मटर, गोभी, छीमी, आलू के गुटके, कटहल। ऐसे में घर वालों को तब मुझे रोटी खिलाने में ज्यादा मेहनत करनी पड़ती थी जब ऊपर बतायी तरकारी में से अलग कुछ घर में पकता था। ऐसे में दूध रोटी उनका सहारा बनता था।

दूध रोटी खाने का तरीका भी मेरा अलग था।

मेरे लिए एक गिलास दूध गरम होता था और उसमें चीनी मिला दी जाती थी। गिलास में दूध तीन चौथाई ही भरा जाता था। इसके बाद एक रोटी ली जाती थी और उसके छोटे छोटे टुकड़े गिलास में डाले जाते थे। फिर गिलास को पाँच दस मिनट साइड में रख दिया था जाता था ताकि दूध भी ठंडा हो जाए और रोटियों के टुकड़े भी दूध को अच्छे से सोख लें।

दस मिनट बाद गिलास और चम्मच मुझे पकड़ा दिया जाता था और मैं राजकुमारों की तरह पहले चम्मच से दूध से भीगे हुए रोटी के टुकड़े निकाल निकालकर खाता था और फिर बचे हुए दूध को पी जाया करता था।

सच बताऊँ न जाने क्यों चम्मच से इस तरह खाने में बड़ा मज़ा आया करता। ऐसा लगता न जाने कौन सी डिश खा रहा हूँ।

दूध रोटी मुझे इतना पसंद थी कि जब मैं अपनी बुआ के घर जाया करता था तो वहाँ भी रात को खाने के बजाय ऐसे ही दूध रोटी खाया करता था। चूँकि मेहमान नवाजी में होता तो थोड़ा बहुत जिद जो चल जाती थी।

घी-चीनी और बासी रोटी

सुबह की चाय की बात की जाए तो आजकल हम रस्क या बिस्कुट उसके साथ लेना पसंद करते हैं लेकिन सच बताऊँ सुबह की चाय के साथ घी और चीनी लगी बासी रोटी से ज्यादा स्वादिष्ट चीज मैंने बहुत कम खायी है।

यह तब की बात है जब मुझे चाय दी जाने लगी थी। अब सुबह उठकर चाय मिलती तो उसके साथ कुछ न कुछ खाने की इच्छा होती ही थी। बिस्कुट, रस्क, उन दिनों भी रहते थे लेकिन जो चीज सबसे ज्यादा मज़ा देती थी वो बासी रोटी होती थी।

अक्सर हम मम्मी को कहते कि रात को रोटियाँ थोड़ा एक्स्ट्रा बनाना ताकि सुबह के लिए मेरे और मेरी बहन के लिए एक्स्ट्रा रोटी बची रहे।

फिर जब हम सुबह उठते तो उस रोटी पर घी लगाते और ऊपर से चीनी छिड़क देते। रोटी को रोल कर दिया जाता और फिर उसे चाय के साथ खाया जाता। विशेषकर सर्दियों में तो इसे खाने का मज़ा ही अलग होता है। तब घी जमकर गाढ़ा जो हो गया रहता था। ऐसे में उसका एक खास टेक्स्चर होता है जो कि रोटी और चीनी के साथ ज्यादा अच्छा लगता है। अगर घी गला हुआ है तो उसमें वो बात नहीं आ पाती है। ऐसे में मैं इस तरह से रोटी खाने के लिए जमा हुआ घी ही पसंद करता था।

जहाँ दूध रोटी में रोटी दूध में भीगा दी जाती थी। वहीं रोटी के इस रोल को डुबाया नहीं जाता था। हम चाय का एक घूँट लेते और उसके साथ रोटी के रोल का एक टुकड़ा तोड़ देते। बड़ा मज़ा आता था।

रोटी मलाई

बचपन में जब तरकारी पसंद की नहीं बनी होती थी तो मलाई के साथ रोटी खाना भी मुझे बहुत पसंद आता था। दूध उबाल कर मैं अक्सर मलाई निकालकर कटोरी में रख देता और उसके साथ रोटी खाया करता था। घर में कई बार मुझे इसलिए भी सुनाया जाता था क्योंकि सारी मलाई मैं निकाल देता था और घरवाले शिकायत करते थे कि उन्हें पानी पीने को मिल रहा है। लेकिन मलाई रोटी के लालच के चलते उनकी इस शिकायत को भी मैं नजरंदाज कर देता था।

वैसे तो हर तरह की रोटी मलाई के साथ खाने में अच्छी होती है लेकिन मुझे पतली रोटियों के बजाय थोड़ा मोटी रोटी मलाई के साथ खाने में अच्छी लगती हैं। इसके अलावा आलू और हरी फली(फ्रेंच बीन्स/ फ्रासमीन) की सब्जी हो या फिर राय के पत्तों की सब्जी बनी हो तो भी रोटी के साथ मलाई मिल जाए तो इस खाने का स्वाद कई गुना ज्यादा बढ़ जाता है। मैं साल छह महीने में रोटी खाने वाला व्यक्ति तो कई बार दस बारह रोटियाँ खा लेता हूँ।

मुझे आज भी रोटी और मलाई इतना पसंद है कि मैं जब तक अकेला था तब तक केवल अपने गृहनगर पौड़ी जाने पर ही रोटी,, सब्जी और मलाई खाता था। इस तरह के खाने के साथ पौड़ी में बिताए बचपन की याद भी तो जुड़ी थी। ऐसे में मैं कुछ स्पेशल उधर के लिए रखना चाहता था। शादी होने के बाद मैंने गुरुग्राम में भी कभी कभार रोटी मलाई और सब्जी खाना शुरू कर दिया है लेकिन जब भी पौड़ी जाता हूँ तो ये खाना कभी नहीं भूलता।


रोटी की तो बात काफी हो गयी लेकिन पराठों के बारे में भी ऐसी दो बातें जो मैं आपके साथ साझा करना चाहूँगा। यहाँ मैं भरे पराठों की बात नहीं कर रहा। वो तो खैर अभी भी खाता हूँ। लेकिन नॉर्मल पराठे की बात कर रहा हूँ जिन्हें इस तरह से खाए काफी वक्त हो गया।

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लंच के पराठे

जैसे कि मैं ऊपर बता चुका हूँ कि मुझे रोटी इतनी पसंद नहीं आती थी। घर वाले भी इससे परिचित थे लेकिन जबरदस्ती रोटी खिलवाने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे। पर मम्मी को तो पता था कि बच्चे को रोटी पसंद नहीं है और पराठे उससे बेहतर लगते हैं। यही कारण है कि लंच में मेरे लिए पराठे पैक होते थे। लेकिन उन्हें ये भी पता था कि सूखी सब्जी इतनी मुझे पसंद नहीं है तो जब सब्जी नहीं होती थी तो वो पराठे एक खास तरीके से पैक करती थीं।

लंच में मुझे पराठे रोल करके मिलते थे। और पराठों में मलाई लगी होती थी और साथ ही चीनी डली होती थी। इन्हें मैं लंच वाले पराठे कहा करता क्योंकि मुझे याद नहीं है कि स्कूल के लंच के सिवा मैंने पराठे इस तरह कभी खाए हों। आजतक भी नहीं खाए हैं।

सच बताऊँ जब मुझे पता होता कि लंच में मुझे लंच वाले पराठे मिलेंगे तो मेरे मुँह से लार बहना सुबह से ही चालू रहता था। मैं बस इसी बात का इंतजार करता था कि कब मैं वो रोल खा पाऊँगा। और मुझे याद है मुझे ऐसे दो स्वादिष्ट रोल मिला करते थे जिन्हें दोस्तों के साथ साझा करने से भी मैं बचा करता था।

नमकीन पराठे

वैसे तो नमकीन पराठे आम तौर पर घरों पर बनते रहते हैं लेकिन मेरे लिए इसकी विशेष याद है। मुझे याद है कि जब भी हम अपनी बड़ी तायी जी के यहाँ चोपड़ा या डांडापानी जाते थे तो शाम की चाय के साथ वहाँ अक्सर नमकीन पराठे बनते थे। चाय के साथ दो दो नमकीन पराठे चाय का स्वाद बढ़ा देते थे। कई बार तो मैं बड़ी बेसब्री से इनके आने का इंतजार करता था और कभी कभार चाय के साथ नमकीन पराठों की जगह कुछ और आ जाता तो मन दुखी सा हो जाता था।

अभी भी जब भी नमकीन पराठे कहीं खाता हूँ तो तायी जी के चोपड़ा वाले उस घर में पहुँच जाता हूँ जहाँ ड्रॉइंगरूम में हम बैठे होते। अक्सर खेलकर आने के बाद थोड़ी सी भूख लगी होती । ऐसे में जब प्लेट में पराठे और कपों में चाय आती तो हमारी बाँछें खिल जाती थी। शाम के टाइम चाय के साथ उससे ज्यादा स्वादिष्ट चीज मुझे और कोई नहीं लगी थी।


तो यह थी रोटी और पराठे से जुड़े मेरे बचपन की कुछ यादें। मलाई रोटी को छोड़ बाकी इन तरीकों से इन्हें खाना न जाने कब से नहीं हुआ है। लेकिन अब सोचता हूँ कि जल्द ही इनका अनुभव दोबारा लूँ?

आप क्या कहते हैं? क्या आपकी भी ऐसी कोई यादें हैं?

Written as part of #BlogchatterFoodFest

About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहता हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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2 Comments on “रोटी, पराठे और बचपन”

  1. बचपन में रोटी खाने के बहुत से तरीके आपसे मिलते हैं, वह हमारे इधर बच्चे दूध -रोटी,मलाई रोटी, चीनीके साथ ज्यादा पसंद करते हैं।

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