भारत विवधताओं का देश है और यह चीज यहाँ रहने वाले लोगों के चेहरे मोहरे, भाषा-बोली, कपड़ों के साथ साथ खाने पीने पर भी लागू होती है। मैं मूलतः उत्तराखंड के गढ़वाल से आता हूँ और हमारे यहाँ भी काफी ऐसी चीजें बनती हैं जो कि मुझे खानी पसंद हैं। हो सकता है ये चीजें दूसरी जगहों में भी बनती हों लेकिन चूँकि इतनी मेनस्ट्रीम नहीं होती हैं तो पता नहीं लगता है। चलिए देखते हैं ये चीजें कौन सी हैं
कफ़ली
पालक का सीजन आता है तो कफ़ली खाने का मन करने लगता है। पालक को बॉइल करके बनाया गया ये साग मुझे तो चावल के साथ खाने में बड़ा स्वादिष्ट लगता है। मेरी मम्मी कफ़ली बनाते हुए उसमें पालक के साथ थोड़े चावल पीसकर डाल देती हैं जिससे कफ़ली का स्वाद बढ़ जाता है। इसके अलावा लोहे की कढ़ाई में अगर इसे बनाया जाए तो स्वाद और बढ़ जाता है।
इसकी रेसीपी आप देखना चाहें तो आप यहाँ कुक एंड लिव विद कान्फिडन्स नामक यूट्यूब चैनल पर देख सकते हैं।
चैंसू
उड़द की दाल को पीसकर बनाया गया चैंसू भी मुझे पसंद आता है। आजकल तो लोग मिक्सी में चैंसू पीसते हैं लेकिन मेरी मम्मी दाल भिगोकर सिलबट्टे में पीसती थीं जिससे इसका स्वाद बढ़ जाता है। इसे दो तरीके से बनाया जाता है। या तो प्याज टमाटर भून के दूसरी दाल की तरह बनाया जाए या फिर टमाटर की जगह आटे या बेसन के साथ थोड़ी दही मिलाकर भी इसे बनाया जा सकता है। यह भी खाने में बहुत स्वादिष्ट होता है। विशेषकर तब जब आपने लोहे की कढ़ाई में इसे बनाया हो।
मुझे अभी भी याद है बचपन में हम लोग मम्मी के साथ बैठकर जब खाना खाते थे तो मुझे चैंसूँ के साथ उस चावल को खाने में बड़ा मज़ा आता था जो कि मम्मी अपनी थाली या कढ़ाई से मिलाकर मेरी थाली में डालती थी। मैं उनसे कहता रहता कि मेरी थाली में चैंसूँ मिलाया चावल डालते रहो और मैं खाता रहूँगा। कई बार जरूरत से ज्यादा खाना भी इस चक्कर में हो जाया करता था।
इसकी रेसेपी आप यहाँ क्लिक करके देख सकते हैं।
मूली की थिचौणी
मूली अगर आपको पता न हो तो दो तरह की होती है। एक तो वो लंबी वाली और दूसरी जो मोटी होती है और आकार में शलजम की तरह होती है। इस मोटी मूली की खासियत ये भी होती है कि ये रेशे वाली भी होते हैं। इसे हम लोग मूला कहते हैं।
मूले की थिचौणी में अक्सर यही मूला प्रयोग किया जाता है। थिचौणी जो शब्द है वो थींचने या हिंदी में कहें तो कूटने से आया है। इस मूले को बड़े बड़े टुकड़ों में काटा जाता है और फिर उन टुकड़ों को सिलबट्टे पर रखकर कूटा जाता है। फिर उन कुटे हुए टुकड़ों से जो साग बनता है वो बड़ा लाजवाब होता है।मूली में रेशे हों तो उस चबाने में भी मुझे बड़ा मज़ा आता है। अक्सर चावल के साथ इसे खाया जाता है। थिचौणी के अलावा इस मूले की और इसके पत्तों की सब्जी भी बनाई जाती है जो कि बड़ी स्वादिष्ट होती है।
इसी तर्ज पर आलू की थिचौणी भी बनती है जो कि मुझे व्यक्तिगत तौर पर पसंद नहीं आती है लेकिन परिवार वाले चाव ले लेकर खाते हैं।
खटाई
पहाड़ों में माल्टे, लिंबे होते हैं। जहाँ मालटे मीठे होते हैं वहीं लिंबे खट्टे होते हैं। जहाँ एक लिंबा आधा पौने किलो का होता है और आकार में भी बड़ा होता है वहीं मालटे संतरों से थोड़ा ही बड़े होते हैं। एक आकार की तुलना की जाए तो एक लिंबा कम से कम दो या तीन माल्टो के बराबर होता होगा।
ये दोनों फल अक्सर तब होते हैं जब पहाड़ों में सर्दी होती है और लोग बाग घर के बाहर चटाई डालकर धूप सेक रहे होते हैं। ऐसे ही किसी दिन में खटाई बनती हैं। इन फलों को छिला जाता है, उनकी फांक को अलग किया जाता है और उसे काटकर उसके टुकड़े कर दिए जाते हैं। फिर घर का बनाया हुआ घर्रया नमक (जो अदरक, लहसन, पयाज के पत्ते और नमक मिलाकर बनाया जाता है), थोड़ा लाल मिर्च और थोड़ा चीनी इन फाँकों के टुकड़ों में मिलाई जाती है। यह सब एक परात में किया जाता है। फिर अखबार के टुकड़ों में इस मिश्रण को थोड़ा थोड़ा सबको बाँट दिया जाता है।
सच मानिए सर्दियों में धूप तापते हुए खटाई खाने का अपना अलग ही आनंद होता है। खट्टा, मीटा, तीखा और नमकीन स्वाद मिलकर एक अलग ही आनंददायक स्वाद का निर्माण करता है और व्यक्ति सी सी करते हुए खाता चला जाता है।
राई के पत्तों की भुज़्जी
राई के पत्तों की भुज़्जी, तरकारी को गढ़वाली में भुज़्जी कहते हैं, काफी पसंद आती है। यह पत्ते सरसों की तरह लग सकते हैं लेकिन उनसे काफी अलग होते हैं और स्वाद भी इनका अलग होता है। राई की पत्ते गुरुगराम में कम ही मिलते हैं लेकिन जब घर जाता हूँ और इनका सीजन चल रहा होता है तो काफी खाते हैं हम लोग। मैंने पहले की पोस्ट में बताया था कि रोटी मुझे इतनी पसंद नहीं है लेकिन राय की सब्जी उन कुछ चुनिंदा सब्जियों में से एक है जिनके साथ मैं रोटी खाने की सोच सकता हूँ। हाँ, अक्सर मलाई साथ में ले लेता हूँ। ताकि स्वाद को चार चाँद लग सकें। लेकिन अगर मलाई नही भी हो तो भी रोटी, राय की सब्जी और भुनी हुई सूखी लाल मिर्च खाने का अपना एक अलग स्वाद होता है।
वैसे राई की सब्जी का असली स्वाद तो इसे अरहड़ की दाल या मिक्स दाल और चावल के साथ खाने में है। चावल, दाल और राई की सब्जी हो तो मेरे द्वारा ज्यादा खाना खाए जाने की गुंजाइश रहती है।
राई की सब्जी की रेसेपी आप यहाँ क्लिक करके देख सकते हैं।
पैतुड़
सरल भाषा में कहूँ ‘पैतुड़’ को पत्ते के पकौड़े कहा जा सकता हैं। गढ़वाल में मरसे (चौलाई), पालक, अरबी, कद्दू के पत्तों इत्यादि को बेसन में लपेट करके फ्राई किया जाता है और इससे कुरकुरे पकौड़े जिन्हे पैतुड़ कहते हैं तैयार होते है। मैं अपनी बात करूँ तो मुझे मरसे और कद्दू के पत्तों के पैतुड़ स्वादिष्ट लगते हैं। शाम की चाय में या सुबह के नाश्ते में पूरी और चाय के साथ इन्हें खाने में बड़ा मज़ा आ जाता है। मैं जब भी घर जाता हूँ मम्मी से इन्हें बनाने की जिद जरूर करता हूँ। अगर ये पत्ते उग रहे होते हैं तो एक या दो बार ये मेरे लिए बनते हैं
वैसे चीजें तो और भी हैं जिनके बारे में लिखा जा सकता है लेकिन फिर पोस्ट काफी लंबी हो जाएगी। आज के लिए यहीं पर विराम देते हैं। कभी अगली पोस्ट में बाकी की चीजें देखेंगे।
क्या आपने भी ये सब चीजें खायी हैं? क्या आपके यहाँ भी इन्हें इन्हीं नामों से पुकारा जाता है? कमेंट करके जरूर बताइएगा।
Written For #BlogchatterFoodFest
Enjoyed reading in Hindi about the Pahari cuisine in detail.
Glad you liked it Anuradha ji… Thanks for visiting…