मनुष्यों से पहले: X से Xiphactinus

 


मनुष्यों से पहले शृंखला में मैंने पिछली बार आपको विवैक्सिया (Wiwaxia) नामक जीव से आपकी मुलाकात कारवाई थी जो कि समुद्र तल में कभी रहा करता था। आज भी मैं आपको एक ऐसे जीव के विषय में बताऊँगा जो कि पानी में ही रहा करता था। यह एक मछली थी जिसे ज़िफैक्टिनस (Xiphactinus) कहा जाता था। ज़िफैक्टिनस (Xiphactinus) के विषय में जानने से पहले आइये जरा ज़िफैक्टिनस (Xiphactinus) के दर्शन कर लें:
मनुष्यों से पहले: X से Xiphactinus
शिकार के पीछे ज़िफैक्टिनस स्रोत: प्रीहिस्टॉरिक अर्थ

तो ऐसे दिखते थे ज़िफैक्टिनस महराज। आइये जानते हैं कि यह क्या थे, कब थे और कब चले गए। 

क्या थे ज़िफैक्टिनस (Xiphactinus)?

ज़िफैक्टिनस (Xiphactinus) एक विशालकाय मछली थी जो कि 15-20 फीट लंबी हुआ करती थी। ऐसा माना जाता है कि यह आज तक हुई दुनिया की सबसे विशालकाय हड्डीदार मछलियों (bony fish) में से एक थीं।  वजन की बात की जाए तो यह एक से डेढ़ हजार किलो तक वजनी हुआ करती थी। 
देखने में यह मछली आज पाये जाने वाली टारपोन मछली के समान ही दिखती थी बस फर्क अगर था तो वो ये कि ज़िफैक्टिनस (Xiphactinus) के जबड़ों में बड़े बड़े दाँत होते थे जो कि शिकार करने में उनके काम आते थे।वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर ज़िफैक्टिनस (Xiphactinus) अपने शिकार को एक बार निगलने में कामयाब नहीं हो पाता था तो यह दाँत एक तरह का कैदखाना सा बना लेते थे जिससे बाहर निकलना शिकार के लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा हो जाता था। ऐसे में वह एक एक बार चबाचबाकर उस जीव को निगलता था। 
चूँकि ज़िफैक्टिनस (Xiphactinus) का शरीर किसी टॉरपीडो के समान लंबा और पतला होता था तो यह जीव शिकार का तेजी से पीछा करने में सक्षम होता था। ऐसा माना जाता है कि ज़िफैक्टिनस (Xiphactinus) आसानी से 60 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार हासिल कर लेने में सक्षम थे। उनकी यह गति ही उन्हें अपने से बड़े शिकारियों से भी बचाया करती थी। ऐसा भी माना जाता है कि यह जीव डॉलफिन के समान आसानी से पानी से बाहर कूद मार सकता था और पानी की सतह में तैरने वाले टेरोसॉर का इस तरह से शिकार किया करता रहा होगा। ऐसा माना जाता है कि यह अपने वक्त के सबसे फुर्तीले शिकारियों में से एक था।
हाँ यहाँ यह बताना भी जरूरी है कि यह जीव अपने वक्त के सबसे बड़े शिकारी नहीं थे। कई बड़े शिकारियों जैसे मोसासॉर, टायलोसॉर या अन्य बड़े शार्क इनका शिकार करने में सक्षम होते थे और ऐसे कई जीवों के पेट में ज़िफैक्टिनस (Xiphactinus) के अंश मिले भी हैं।

कब और कहाँ पाये जाते थे ज़िफैक्टिनस (Xiphactinus)?

ज़िफैक्टिनस (Xiphactinus) आज से 11 करोड़ साल से 6.5 करोड़ साल पहले तक समुद्र में पाये जाते थे। इस मछली के जीवाश्म अमेरिका, कनाडा यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में एक फैले हुए इलाके में पाये गए हैं। 

क्या खाते थे ज़िफैक्टिनस (Xiphactinus)?

ज़िफैक्टिनस (Xiphactinus) को एक भुककड़ जीव माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह जिस किसी का शिकार कर सकें जैसे अपने से छोटी मछलियाँ, कछुए, टेरोसॉर, घायल या बच्चे मोसासॉर इत्यादि का  शिकार करके उसे चट कर जाते थे। ऐसे भी माना जाता है यह मरे हुए जीवों तक को खाने में गुरेज नहीं करते थे। 
ज़िफैक्टिनस (Xiphactinus) के कई जीवाश्म मिले हैं जिसमें इनके पेट के अंदर ऐसे जीव मिले हैं जो कि पूरी तरह से पचाए नहीं गए थे। इन जीवों में से सबसे प्रसिद्ध एक छः फुट लंबी गिलिकस आर्कुआटस (Gillicus arcuatus) नामक मछली है जो कि एक तेरह फुट लंबे ज़िफैक्टिनस (Xiphactinus) के पेट के अंदर पाई गई। इसे ‘फिश विदिन अ फिश’ (मछली के अंदर मछली) का नाम दिया गया है।  वैज्ञानिकों का मानना है कि इतने बड़े शिकार को निगलने के बाद यह जीव वैसे तो मर गया होगा लेकिन यह नमूना ही इनका शिकार को लेकर खूंखार प्रवृत्ति को दर्शाने के लिए काफी है। 
ज़िफैक्टिनस के पेट में गिलिकस आर्कुआटस, By Spacini at English Wikipedia, CC BY-SA 3.0

कब विलुप्त हो गए ज़िफैक्टिनस (Xiphactinus)?

अगर विलुप्ति की बात करें तो ऐसा माना जाता है कि उत्तर चाकमय युग (Late Cretaceous) काल में जब धरती से काफी बड़े बड़े जीव विलुप्त हुए तभी यह जीव भी विलुप्त हो गए थे। 
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तो यह थी समुद्र में पाये जाने वाली शिकारी मछली ज़िफैक्टिनस (Xiphactinus) के विषय में कुछ संक्षिप्त सी जानकारी। उम्मीद है यह जानकारी आपको पसंद आई होगी। 
स्रोत

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

मैं एक लेखक और अनुवादक हूँ। फिलहाल हरियाणा के गुरुग्राम में रहत हूँ। मैं अधिकतर हिंदी में लिखता हूँ और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद भी करता हूँ। मेरी पहली कहानी 'कुर्सीधार' उत्तरांचल पत्रिका में 2018 में प्रकाशित हुई थी। मैं मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी नाम के कस्बे के रहने वाला हूँ। दुईबात इंटरनेट में मौजूद मेरा एक अपना छोटा सा कोना है जहाँ आप मेरी रचनाओं को पढ़ सकते हैं और मेरी प्रकाशित होने वाली रचनाओं के विषय में जान सकते हैं।

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